Friday, January 9, 2015

लो बंध गए पग घुंघरू


नन्हों ने शुरू की स्कूल जाने की तैयारी
चूरू. एक जुलाई से शुरू हो रहे नए शिक्षा सत्र से घर-घर में नन्हों को स्कूल भेजे जाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। अभिभावक बच्चों को पाटी-पौथी के साथ-साथ बैग, लंच बॉक्स और पानी की बोतल लाकर देने लगे हैं। वहीं बच्चे सुबह खाना खाने, खेलने यहां तक की सोते समय भी स्कूली चीजों को साथ रखना पसंद कर रहे हैं। अभिभावकों की स्थिति यह है कि वे इस चिंता में रहते हैं कि मम्मी-पापा से पलभर की दूरी भी नहीं सहने वाला उनका बच्चा इस बार स्कूल में अकेले समय कैसे बिताएगा। कई बच्चे तो स्कूल का नाम सुनते ही रो पड़ते हैं जबकि कई बच्चों की जुबां पर इन दिनों स्कूल का ही नाम चढ़ा हुआ है। स्कूल के नाम से रोने वाले बच्चों को बार-बार समझाया जा रहा है। कई घरों में तो बच्चों को दिन में परिजनों से दूर रखने का अभ्यास करवाया जाने लगा है। अनेक परिजन बच्चों को कखगघड़ सिखाने लगे हैं। नन्हों को स्कूल भेजने की तैयारी में अभिभावक कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। बच्चों की हर जिद पूरी कर रहे हैं। परिजन शुरुआती दिनों में कुछ समय उसके साथ स्कूल में बिताने को भी तैयार हो रहे हैं।

स्कूल में पकडूंगा बिल्ली
वार्ड 39 के विक्रम गोयनका का ढाई वर्षीय बेटा कृष्णा इस बार से स्कूल जाएगा। कृष्णा के दादा व बुआ ने कोलकाता से उसके लिए बैग, लंच बॉक्स और पानी की बोतल भेजी हंै। अपने चाचा चंचल के साथ स्कूल जाने को तैयार कृष्णा कहता है कि वह स्कूल में बिल्ली पकड़ेगा।

मम्मी मुझे तैयार कर दो
मम्मी मुझे तैयार कर दो। स्कूल में देर हो जाएगी। वार्ड 38 के कैलाश बगडिय़ा के तीन वर्षीय बेटे हर्षित को उठते ही स्कूल जाने की चिंता सताने लगी है। इस बार से स्कूल जा रहे हर्षित का उत्साह देखते ही बनता है। हर्षित बताता है कि शुरुआत में तो वह दीदी पलक की कक्षा में बैठता था मगर अब तो स्कूल में उसके कई दोस्त बन गए हैं इसलिए वह अपनी कक्षा में बैठने लगा है।

पापा जुलाई कब आएगी
नयाबास के दीपक स्वामी के तीन वर्षीय बेटे प्रणव को जुलाई का बेसब्री से इंतजार है। उसके पापा ने उसे बताया कि वह जुलाई से स्कूल जाना शुरू करेगा। प्रणव अपने बैग व लंच बॉक्स को दिनभर साथ रखता है। मम्मी बबीता व दादी उमा देवी ने बताया कि प्रणव कहता रहता है कि वह पापा को भी अपने साथ स्कूल लेकर जाएगा।

घर पर लिखते हैं कखगघ
लाल घंटाघर के पास मनोज जांगिड़ का बेटा लक्की व सुनील जांगिड़ की बेटी डिम्पल भी इस बार से स्कूल जाने वालों में से हैं। दोनों ने घर पर ही कखगघड़ लिखने का अभ्यास शुरू कर दिया है। लक्की व डिम्पल गत वर्ष से ही स्कूल जाने की जिद करने लगे थे। इस बार दोनों की जिद पूरी हो जाएगी।

इनकी खरीदारी शुरू
सामान कीमत रु.
टिफिन- 20-90
स्लेट- 5-20
डे्रस- 150-170
बैग- 60-300
पानी की बोतल- 25-40
फैंसी स्टेशनरी- 20-30
पुस्तक (सरकारी सेट) 39
पुस्तक (प्राइवेट सेट) 150-600
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स्टेशनरी की मांग शुरू हो गई है। जुलाई से बिक्री परवान चढ़ेगी। छोटे बच्चों में फैंसी स्टेशनरी का क्रेज है।
-संजय बजाज, स्टेशनरी विक्रेता, चूरू

शहर में रेडीमेड स्कूल डे्रस के 22 सेंटर हैं। सभी पर ग्राहक उमडऩे लगे हैं। पहली बार स्कूल जा रहे बच्चों में डे्रस को लेकर खासा उत्साह है।-लक्ष्मीनारायण चौधरी, स्कूल डे्रस टेलर, चूरूजो बच्चे अपने भाई-बहन के साथ आते हैं उनसे अधिक परेशानी नहीं होती मगर जो अकेले आते हैं, उनको संभालना काफी मुश्किल है।
-महेन्द्र शर्मा, प्रधानाचार्य,एसके मेमोरियल स्कूल, चूरू
प्रस्तुतकर्ता विश्वनाथ सैनी

खिलाडिय़ों की उम्मीदें होंगी जवां
बीस गांवों में बनेंगे खेल मैदान
चूरू। खेल मैदान के अभाव में गांव के गुवाड़ में खेलने को मजबूर खिलाडिय़ों की उम्मीदें अब जवां होंगी। खेल महकमे की ओर से खिलाडिय़ों को गांव में खेल मैदान की सुविधा मुहैया करवाई जाएगी। केन्द्र सरकार ने पंचायत युवा क्रीड़ा और खेल अभियान (पायका) के अन्तर्गत जिले के बीस गांवों में खेल मैदान बनाने के लिए साढ़े ग्यारह लाख रुपए स्वीकृत किए हैं।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार खेल मैदान गांव ढाढऱ, लम्बोर बड़ी, सिद्धमुख, अड़सीसर, मेलूसर, भालेरी, रैयाटुण्डा, सात्यूं के राजकीय माध्यमिक विद्यालय व गांव नौरंगपुरा, मेलूसर, पडि़हारा, देराजसर, मालकसर, मलसीसर, साण्डवा, धीरवास बड़ा के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय तथा गांव रामपुरा, बुचावास व साहवा में जिला खेल अधिकारी के नाम से आवंटित भूमि पर बनाया जाएगा।
ये मिलेगी सुविधाअभियान के तहत खिलाडिय़ों को कबड्डी, खो-खो, वॉलीबाल, हॉकी व फुटबाल के मैदान की सुविधा एक ही स्थान पर उपलब्ध होगी। खेल मैदान से विद्यार्थियों के साथ-साथ गांव के युवा भी लाभान्वित हो सकेंगे। प्रत्येक गांव में खेल मैदान पर कम से कम पचास हजार खर्च किए जाएंगे। रतनपुरा को विशेष पैकेजअभियान के अन्तर्गत जिले के बीस गांवों में से सादुलपुर तहसील के गांव रतनपुरा को विशेष पैकेज दिया गया है। गांव के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय की भूमि पर बनने वाले खेल मैदान पर पचास हजार रुपए की बजाय ढाई लाख रुपए खर्च किए जाएंगे। खेल महकमे की मंशा इस गांव को खेल सुविधाओं की दृष्टि से आदर्श गांव बनाने की है।
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जिले के बीस गांवों में खेल मैदान बनाने की कवायद शुरू हो चुकी है। इनमें रतनपुरा में खेल मैदान पर विशेष राशि खर्च की जाएगी। खेल मैदान चालू वर्ष में बनने की उम्मीद है।
-मनीराम नायक, जिला खेल अधिकारी, चूरूप्रस्तुतकर्ता विश्वनाथ सैनी
बिन बरसे फिरा पानी
बूटा-बूटा तोडऩे लगा दम-

40 हजार हैक्टेयर की फसलें चौपट 
-2 हजार हैक्टेयर रोजाना प्रभावित
चूरू, 7 अगस्त। थळी के धोरों में नीली छतरी वाले की मेहरबानी नहीं होने से खरीफ का बूटा-बूटा दम तोडऩे लगा है। मेहनत को मिट्टी में मिलती देख काश्तकारों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी होने लगी है। हालात इस कदर बिगड़ते जा रहे हैं कि दस-बारह दिन में फसलों की प्यास नहीं बुझी तो काश्तकारों की उम्मीदों पर बिन बरसे ही पानी फिर जाएगा। खेतों से अनाज की पैदावार तो दूर चारे के भी लाले पड़ जाएंगे। विभागीय जानकारी के अनुसार जिले में खरीफ फसलों की कुल बुवाई के करीब पांच प्रतिशत यानि 40 हजार 275 हैक्टेयर में फसलें पूरी तरह से तबाह हो चुकी हैं। इसमें चारा पैदा होने की भी गुंजाइश नहीं बची है। 
घट गया उत्पादन
फसल---- नुकसान
बाजरा---- 25-30
ग्वार----- 25
मोठ----- 30
मूंग------40
मूंगफली---15-20
(कृषि विभाग के अनुसार नुकसान प्रतिशत में)
पैदावार में घाटा
ब्लॉक---- नुकसान
रतनगढ़---40
चूरू------35
सरदारशहर- 32-33
तारानगर--31
राजगढ़--- 28
सुजानगढ़--20-25
(कृषि विभाग के अनुसार नुकसान प्रतिशत में)
कितनी प्यास, कितनी उम्मीदकृषि अधिकारियों की मानें तो आगामी पांच दिन में बारिश होती है तो खरीफ फसलों की प्रति हैक्टेयर अनुमानित पैदावार में से ग्वार की 75 प्रतिशत, बाजरा व मोठ की 70-70 प्रतिशत पैदावार ही हासिल हो सकेगी। तीन-चार रोज में बारिश होने पर मूंग की साठ प्रतिशत पैदावार प्राप्त होने की गुंजाइश है। खरीफ की अन्य फसलों की स्थिति दयनीय है।
तापमान बना दुश्मन
सावन में अच्छी बारिश के बाद अगर तापमान 35 से 38 डिग्री सेल्सियस रहे तो फसलों के लिए वरदान साबित होता है मगर इस बार सावन सूखा बितने पर तापमान भी फसलों का दुश्मन बना हुआ है। कृषि विभाग के मौटे अनुमान के तौर पर जिले में रोजाना करीब दो हजार हैक्टेयर में फसल दम तोड़ रही है।
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बारिश नहीं होने से आगामी सप्ताह में किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरा जाएंगी। फसलों से पैदावार तो दूर चारे की भी गुंजाइश नहीं रहेगी।-रणजीत सिंह सर्वा, कृषि अधिकारी
प्रस्तुतकर्ता विश्वनाथ सैनी
प्रतिक्रियाएँ:


1 टिप्पणियाँ:

काजल कुमार Kajal Kumar said...
पूरे उत्तर भारत का ही से हाल है, बहुत चिंता व दुख की बात है.
August 9, 2009 3:04 PM



प्यासे हलक होंगे तर

चूरू।गर्मी में उपभोक्ताओं के हलक तर करने के लिए जलदाय विभाग ने कमर कस ली है।विभाग ने शहरी एवं ग्रामीण उपभोक्ताओं को पेयजल समस्या से निजात दिलाने के लिए मुख्यालय को 162 लाख रूपए का प्रस्ताव भेजा है। कंटीजेंसी प्लान के दूसरे चरण (अपे्रल से जून09 तक) के तहत भेजे गए प्रस्ताव में शहरी व ग्रामीण इलाकों में पेयजल समस्या संबंधी विभिन्न कार्यो को शामिल किया गया है। प्रस्ताव के तहत इनमें से 112 लाख रूपए ग्रामीण एवं 50 लाख रूपए शहरी इलाकों में खर्च किए जाने का अनुमान है।इससे पहले कंटीजेंसी प्लान के प्रथम चरण में (सितम्बर08 से मार्च 09 तक) के लिए ग्रामीण और शहरी इलाकों में पानी की किल्लत दूर करने लिए 512.50 लाख रूपए का प्रस्ताव भेजे गए थे। दोनों प्रस्तावों को मंजूरी का इंतजार है।खोदे जाएंगे टयूबवैल-हैण्डपम्पप्लान के दूसरे चरण के तहत जिले के ग्रामीण इलाकों में 42 लाख रूपए की लागत से 12 टयूबवैल व 12 लाख रूपए की लागत से 15 हैण्डपम्प तथा शहरी इलाकों में 24 लाख रूपए की लागत से चार टयूबवैल खोदे जाने का प्लान है। योजना में चूरू के दोनों क्षेत्रों में दो टयूबवैल, रतनगढ में चार टयूबवैल व 10 हैण्डपम्प, सुजानगढ में चार टयूबवैल व पांच हैण्डपम्प तथा तारानगर में 6 टयूबवैल खोदे जा सकते हैं।टैंकरों से भी पहुंचेगा पानीयोजना के तहत टैंकरों से भी लोगों की प्यास बुझाई जाएगी। ग्रामीण क्षेत्रों में टैंकर से पानी पहुंचाने के लिए छह लाख रूपए खर्च किए जाने का अनुमान है। इनमें रतनगढ और सुजानगढ के गांवों को शामिल किया गया है। इनके अलावा योजना के तहत पेयजल आपूर्ति के लिए ग्रामीण इलाकों में 22 लाख रूपए की लागत से 11 किलोमीटर तक तथा शहरी क्षेत्रों में 14 लाख रूपए की लागत से सात किलोमीटर तक पाइप लाइन बिछाने का अनुमान है।
इनका कहना है...
प्लान के तहत दो चरणों में प्रस्ताव सरकार को भेजे हैं। फरवरी के अंत तक स्वीकृति मिलने की उम्मीद है।मदन सिंह राठौड, अधीक्षण अभियंता, पीएचईडी, चूरूआगे पढ़ें... प्रस्तुतकर्ता विश्वनाथ सैनी प्रतिक्रियाएँ: 1 टिप्पणियाँ इस संदेश के लिए लिंक लेबल:

Saturday, February 26, 2011

पानी में डूबे दस करोड़

आपणी योजना की हकीकत, 99 गांवों ने ठुकराया 'अमृत'
चूरू। धोरों में मीठा पानी मुहैया करवाने वाली आपणी योजना के दस करोड़ से अधिक रुपए पानी में डूब गए हैं। अभियंता छह साल से प्रयासरत हैं, परन्तु एक भी रुपया वापस नहीं निकल पा रहा है। यह सब चूरू व झुंझुनूं जिले के 99 गांवों के अपने वादे से मुकरने के कारण हुआ है। गांवों में दफन 120 किलोमीटर लम्बी पाइप लाइन, बूंद-बूंद पानी को तरसतीं पेयजल टंकियां और धूल फांकते पेयजल उपकरण इसके गवाह हैं। सूचना का अधिकार के तहत जानकारी मांगने पर आपणी योजना और ग्रामीणों की यह हकीकत सामने आई है।
योजना के तहत 2000-2005 के दौरान शेखावाटी की चूरू, झुंझुनूं व अलसीसर पंचायत समिति के 71 गांवों को मीठा पानी उपलब्ध करवाने के लिए 8.72 करोड़ रुपए खर्च कर 120 किलोमीटर लम्बी पाइप लाइन डालने के साथ ही गांव गाजसर व जुहारपुरा में पांच-पांच सौ किलोमीटर क्षमता की पेयजल टंकियों का निर्माण किया गया। इनमें सरदारशहर पंचायत समिति के 28 गांवों के लिए खर्च की गई राशि शामिल की जाए तो आंकड़ा दस करोड़ रुपए से ऊपर जाता है। योजना का कार्य पूर्ण होने के बाद सभी 99 गांवों ने मीठा पानी लेने से साफ इनकार कर दिया है। ऐसे में पाइप लाइन और पेयजल टंकियां कोई काम नहीं आ रही हैं।
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इसलिए मुकरे वादे से
आधिकारिक जानकारी के अनुसार योजना की शुरुआत में ग्रामीणों ने मीठा पानी लेने की सहमति जताई थी, लेकिन बाद में अपने वादे से मुकर गए। इस पर ग्रामीणों के अपने तर्क हैं। ग्रामीणों को घर-घर पेयजल कनेक्शन चाहिए जबकि योजना में सामुदायिक नल की व्यवस्था है। योजना के पानी की नियमित आपूर्ति और गुणवत्ता पर ग्रामीणों भी को संदेह है। आपणी योजना से जुडऩे के बाद गांव में पीएचईडी के जलस्रोतों से जलापूर्ति बंद हो जाती है। ऐसे में ग्रामीण अपने पुराने जलस्रोत नहीं खोना चाहते। पीएचईडी की ओर से कई गांवों में खारा पानी मुफ्त में पिलाया जाता है। जबकि आपणी योजना के पानी की कीमत प्रति व्यक्ति प्रति माह पांच रुपए है। हालांकि पैसों के लालच में लोग खारा पानी पीकर खुद अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। ग्रामीणों ने घर-घर में बरसाती कुण्ड बना रखे हैं, जिनसे गर्मियों में भी पानी की कमी नहीं अखरती।
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थमाए नोटिस दर नोटिस
आपणी योजना से जोड़े जाने के बावजूद पानी नहीं लेने पर अधिकारियों ने संबंधित ग्राम पंचायत व गांव की जल एवं स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष को गत छह वर्ष के दौरान अनेक नोटिस जारी किए हैं। 26 अगस्त 2010 को जारी नोटिस में तो यहां तक लिखा गया कि अगर गांव वाले मीठा लेने को तैयार नहीं हुए तो पीएचईडी की ओर से खारा भी बंद करवा दिया जाएगा, परन्तु नोटिसों का जवाब नहीं आया और ना ही पीएचईडी से जलापूर्ति बंद करवाई गई।
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क्या है योजना
जर्मन सरकार की उच्च तकनीक व आर्थिक सहयोग से करीब पांच अरब रुपए की आपणी योजना चूरू, झुंझुनंू व हनुमानगढ़ जिले में एक दशक से संचालित है। वर्तमान में योजना के तहत तीनों जिले में 508 गांव के लोग मीठा पानी पी रहे हैं।
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इन्होंने किया मना
सरदारशहर व चूरू पंचायत समिति में गांव आ्सलू, ढाढऱ, लाखाऊ, झारिया, दूधवाखारा, बूंटियां, गाजसर, घंटेल, कड़वासर, सहजूसर, मेघसर, देपालसर, खासोली, ऊंटवालिया, हणुतपुरा, थैलासर, मेहरावनसर, सोमासी, छाजूसर, जुहारपुरा, मोलीसर बड़ा, रायपुरिया, सहनाली बड़ी, सहनाली छोटी, सातड़ा, सूरतपुरा, ढाढ़रिया चारणान, धोधलिया, नाकरासर, धीरासर बीकान, चारणान, शेखावतान, जासासर, जसरासर, बालरासर तंवरान, दांदू, घांघू, राणासर, हरियासर घड़सोतान, चारणवासी, ढाणी सुवाना, मेहरासर चाचेरा, सवाई बड़ी, बलवानिया, दूलरासर, मांगासर, गोमटिया, रामसीसर भेड़वालिया, चन्नाई, छजलानिया, भीकमसरा, पनपालिया, मेलूसर, अड़मालसर, राणासर बिकान, भैंरूसर, खींवासर, पूलासर, बरलाजसर, मेहरी रिजवान, पुरोहितान, कामासर, जीवणदेसर, आसासर, अजीतसर व उदासर बीदावतान तथा झुंझुनूं व पंचायत समिति अलसीसर के गांव हनुतपुरा, बाजला, बीदासर, भीखनसर, बिसनपुरा, चंदवा, चूडेला, डाबड़ी, धीरासर, डिलाई, दूलचास, हंसासरी, हमीरवास रिजानी, हनुमानपुरा, कंकडेउ खुर्द, कालियासर, कांट, खिदरसर, लादूसर, नांद, पाडासी, पाटोदा, श्री किशनपुरा, टांई, ढाणी चारण, हंसासर, कमलासर, कोलिण्डा, लूट्टू, मेहनसर, सोनासर, धनूरी व श्यामपुरा आपणी योजना का पानी लेने को तैयार नहीं है।
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इनका कहना है...
चूरू-झुंझुनूं जिले के 99 गांव मीठा पानी पीने को तैयार नहीं हैं, जबकि आपणी योजना के तहत करोड़ों रुपए खर्च कर गांवों तक पाइप लाइन डाली हुई है। वर्षों पूर्व हुए सर्वे के दौरान ग्रामीणों ने मीठा पानी लेने की सहमति जताई थी लेकिन बाद में मना कर दिया। मामला राज्य सरकार के ध्यान में है। सरपंच व ग्राम जल एवं स्वास्थ्य समितियों को इस संबंध में नोटिस में दिए गए, परन्तु किसी ने कोई जवाब नहीं दिया।
-एसके शर्मा, अधीक्षण अभियंता, आपणी योजना चूरू

Wednesday, February 23, 2011

"हक" पर कब्जा,"सम्मान" पर चुप्पी



चूरू । "वतन पर मरने वालों का बाकी यही निशां होगा" कि शहीद वीरांगनाएं अपने हक और पति के सम्मान के खातिर कार्यालय दर कार्यालय चक्कर काटेंगी। बात भले ही गले नहीं उतर रही हो, परन्तु रतनगढ़ के गांव भुखरेड़ी निवासी दो शहीद वीरांगनाओं को प्रशासन ने ऎसा करने पर मजबूर कर रखा है। एक शहीद वीरांगना को भूखण्ड आवंटन के बावजूद उस पर कब्जा नहीं मिल पाया जबकि दूसरी को शहीद स्मारक बनवाने के लिए जमीन आवंटित करने में अधिकारी रूचि नहीं ले रहे हैं।आधिकारिक जानकारी के अनुसार 1986 में ऑपरेशन मेघदूत में शहीद हुए भुखरेड़ी निवासी सिपाही तोलाराम की वीरांगना सुप्यार देवी को 25 अगस्त 2008 को चूरू की सैनिक बस्ती के सेक्टर1-बी-189 में 10.5 गुणा 21 मीटर भूखण्ड आवंटित किया गया। सुप्यार देवी को भूखण्ड का पट्टा भी दिया गया, परन्तु भूखण्ड पर उसे आज तक कब्जा नहीं मिल पाया। प्रशासन की मिलीभगत से भूखण्ड पर अन्य व्यक्ति ने कब्जा कर रखा है। ऎसे में सुप्यार देवी भूखण्ड आवंटन के ढाई वर्ष बाद भी अपने हक से वंचित है। उधर, जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में मच्छाल सेक्टर में 30 जून 2010 को शहीद हुए भुखरेड़ी के मुकेश भास्कर की वीरांगना सुमन उनके सम्मान में शहीद स्मारक बनवाना चाहती है। स्मारक के नाम पर गांव में भूमि आवंटित करने के लिए सुमन ने ग्राम पंचायत, तहसीलदार व कलक्टर कार्यालय में अनेक चक्कर काट चुकी है। बार-बार चक्कर कटवाने से दुखी होकर सुमन ने 21 फरवरी को जिला कलक्टर को ज्ञापन देकर शहीद मुकेश का इस तरह अपमान नहीं करने की गुहार लगाई है।प्रशासन ने केवल पट्टा थमायाप्रशासन ने सैनिक बस्ती में भूखण्ड आवंटित करने में महज कागजी खानापूर्ति की है। पट्टा मिलने पर मैंने नम्बरों के आधार पर भूखण्ड पर ढूंढ़ा तो उस पर किसी अन्य का अवैध कब्जा मिला। अवैध रूप से किया गया कब्जा हटवाकर मुझे अपने भूखण्ड पर कब्जा दिलवाने के लिए मैंने प्रशासन के सामने अनेक बार गुहार लगाई, मगर अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला।-सुप्यार देवी, शहीद तोलाराम की वीरांगनाअधिकारियों ने दबाई फाइलपति के सम्मान में शहीद स्मारक बनवाना चाहती हूं। स्मारक के नाम पर भूमि आवंटित करने की फाइल पहले रतनगढ़ तहसीलदार ने पांच माह तक दबाए रखी और अब तीन माह से फाइल जिला कलक्टर के पास अटकी पड़ी है। गांव में गोचर भूमि पर स्मारक बनाया जा सकता है। जनप्रतिनिधि स्मारक निर्माण के लिए आर्थिक सहयोग देने के लिए तैयार हैं। इसके बावजूद प्रशासन मामले को गंभीरता से नहीं ले रहा है। -सुमन देवी, शहीद मुकेश की वीरांगनाप्रशासन को बताया दोनों ही शहीद वीरांगनाओं के साथ ठीक नहीं हो रहा है। वीरांगना सुप्यार ने भूखण्ड पर कब्जा नहीं मिलने की शिकायत थी, जिससे प्रशासन को अवगत करवा दिया गया। शहीद स्मारक का मामला भी कलक्टर की जानकारी में लाया हुआ है।-रामकुमार कस्वां, जिला सैनिक कल्याण अधिकारी, चूरूदूंगा आर्थिक सहयोगशहीद मुकेश की अत्येष्टि के समय ही मैंने उनके स्मारक के लिए आर्थिक सहयोग देने का वादा किया था और अब भी तैयार हंू। प्रशासन जमीन तो आवंटन करें, राशि की कोई कमी नहीं दी जाएगी।-रामसिंह कस्वां, सांसद, चूरूमुझे जानकारी नहींशहीद वीरांगनाओं की समस्याएं प्राथमिकता से दूरी की जाती हैं। सैनिक बस्ती में शहीद वीरांगना को भूखण्ड आवंटन और गांव भुखरेड़ी में शहीद स्मारक बनवाए जाने का मामला मेरी जानकारी में नहीं है। यदि आप जैसा बता रहे हो, वैसा हो रहा है तो तत्काल दोनों मामलों की जांच करवाएंगे।-विकास एस भाले, कलक्टर, चूूरू विश्वनाथ सैनी

Sunday, January 30, 2011

हर दूसरा शिक्षक लापरवाह

[शिक्षा अधिकारी भी गंभीर नहीं]
शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के कार्यक्रमों के प्रति बेरुखी
चूरू। शिक्षक संघों के सम्मेलन, आंदोलन व धरना-प्रदर्शन हो तो शिक्षकों की फौज खड़ी नजर आती है, परन्तु शिक्षा में नवाचार, आधुनिक तकनीक और अध्यापन में दक्षता बढ़ाने की बात आए तो शिक्षक पीठ दिखाने से नहीं चूकते। राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान उदयपुर की ओर से जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) में चलाए जा रहे कार्यक्रमों से इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है।
पिछले ढाई साल में चूरू जिले के पचास फीसदी शिक्षक इन कार्यक्रमों को गंभीरता से नहीं लिया है। कार्यक्रमों के प्रति केवल शिक्षक ही नहीं बल्कि शिक्षा अधिकारी और खुद डाइट प्रबंधन भी लापरवाह है। शिक्षा अधिकारी कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में उपस्थित नहीं हुए जबकि डाइट प्रबंधन ने अनेक कार्यक्रम आयोजित ही नहीं किए। डाइट कार्यालय से सूचना के अधिकार के तहत सूचना मांगने पर यह खुलासा हुआ है।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार एक अप्रेल 2008 से 30 नवम्बर 2010 के दौरान प्रशिक्षण, कार्यगोष्ठी एवं प्रसार के 474 कार्यक्रमों में 12 हजार 128 शिक्षकों, बीईईओ व एबीईईओ को बुलाया गया, लेकिन 6 हजार 75 ने ही उपस्थिति दर्ज करवाई। उधर, डाइट प्रबंधन में ढाई साल में प्रस्तावित 555 कार्यक्रमों में से 81 कार्यक्रम आयोजित नहीं किए।

क्या हैं कार्यक्रम
डाइट में प्रतिवर्ष समय-समय पर प्रशिक्षण, कार्यगोष्ठी एवं प्रसार कार्यक्रम के माध्यम से शिक्षकों तथा शिक्षा अधिकारियों को कार्यानुभव, मूल्यांकन, पाठ्य पुस्तकों की समीक्षा, क्षेत्रीय सम्पे्रषण, अध्यापन दक्षता, योजनाएं बनाने, स्कूल प्रबंधन, इनोवेटिव नॉलेज और शिक्षा की आधुनिक तकनीक की विस्तृत जानकारी एवं प्रशिक्षण दिया जाता है। जिसका लाभ अप्रत्यक्ष रूप से बच्चों को होता है। कार्यक्रम के लिए लाखों रुपए भी खर्च किए जाते हैं। जिनमें संभागियों को आने-जाने का किराया भी देय है।

एक हजार से अधिक अधिकारी लापरवाह
ब्लॉक प्रारम्भिक शिक्षा अधिकारी तथा अतिरिक्त ब्लॉक प्रारम्भिक शिक्षा अधिकारियों को उनके ब्लॉक के विद्यालयों से जुड़ीं तमाम योजनाएं बनाने एवं विद्यालयों के बेहतर संचालन के लिए विभिन्न कार्यक्रमों से लाभान्वित किया जाता है। इसके लिए एक अप्रेल 2008 से तीस नवम्बर 2010 के दौरान एक हजार 881 शिक्षा अधिकारियों को डाइट बुलाया गया परन्तु एक हजार 32 शिक्षक आनाकानी कर गए।

आंकड़ों की जुबानी
कार्यक्रम ~~~~बुलाए~~~~आए
प्रशिक्षण ~~~~८५७६~~~~ ४१८५
कार्यगोष्ठी~~~~ 2478 ~~~~१३८२
प्रसार~~~~ १०७४~~~~ ५०८
कुल ~~~~१2128 ~~~~६०७५
(आंकड़े एक अपे्रल 09 से 30 नवम्बर 10 तक)

पूरा नहीं हुआ लक्ष्य
वर्ष~~~~ प्रस्तावित~~~~ आयोजित
2008-09 ~~~~२४४~~~~२३०
2009-10 ~~~~१९४ ~~~~१७३
2010 ~~~~११७ ~~~~७१
कुल ~~~~555~~~~ 474
(कार्यक्रमों में प्रशिक्षण, कार्यगोष्ठी व प्रसार शामिल)

इनका कहना है...
यह सही है कि अनेक शिक्षक डाइट में लगाए जा रहे कार्यक्रमों को गंभीरता से नहीं ले रह हैं। कार्यक्रम में प्रस्तावित संभागियों की सूची समस्त बीईईओ को भेजते हैं। कई बार तो बीईईओ शिक्षकों को कार्यक्रम में भाग लेने के लिए पाबंद नहीं करते जबकि कई शिक्षक खुद लापरवाह हैं। कार्यक्रम समाप्ति के बाद अनुपस्थित शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई के लिए डीईओ व बीईईओ को लिखा जाता है।
-महावीर सिंघल-डाइट, प्राचार्य, चूरू
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शिक्षकों को कार्यक्रम में भाग लेने के लिए केवल आने-जाने का किराया देय है। ठहरने का भत्ता नहीं दिया जाता। ऐसे में एकाध शिक्षक कार्यक्रम से नदारद रहता है। हजारों शिक्षकों के अनुपस्थित रहने के बारे में आपने बताया है। लापरवाह शिक्षकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेंगे।
-हीरालाल आर्य, जिला शिक्षा अधिकारी(प्रारम्भिक), चूरू

Thursday, January 6, 2011

'भूगोल' मे छिपी ठण्ड की 'केमिस्ट्री'

चूरू। सर्दियो में हाड कंपकंपा देने वाली ठण्ड और गर्मियों में भीषण गर्मी की विशेषता प्रदेशभर में एकमात्र चूरू जिले में देखने को मिलती है। यह कोई इत्तफाक नहीं है, बल्कि जिले की भौगोलिक परिस्थितियां इसकी जिम्मेदार है। पारा जमाव बिन्दू की ओर जाना, ठण्ड के तेवर तीखे होना और नश्तर चुभती सर्द हवाओं के चलने की सारी केमिस्ट्री जिले के भूगोल में छिपी है।
इसलिए शून्य से नीचे तक जाता है पारा
प्रदेश के बीकानेर, श्रीगंगानगर, जैसलमेर व बाडमेर आदि जिलों की तरह चूरू भी मैदानी है। ऎसे में यहां पर सूर्य से आने वाला विकिरण धरातल से परावर्तित होकर तेजी से वायुमण्डल में चला जाता है। वायुमण्डल में जल वाष्प की अघिक मौजूदगी परावर्तित विकिरण को रोक कर तापमान बढाने में सहायक होती है। लेकिन चूरू के वायुमण्डल में मौजूद वायु शुष्क होने के कारण परावर्तित विकिरण बिना किसी रूकावट के ऊपर चला जाता है, जिससे यहां अन्य जिलों की तुलना में पारा नीचे दर्ज होता है।
जल्दी ठण्डी होती मिट्टी
प्रदेश के मरूस्थलीय जिलों में चूरू सबसे पूर्व में स्थित है। इसलिए पश्चिम से आने वाली हवाओं के साथ बालू मिट्टी के बारिक कण भी यहां आकर जमा होते हैं। ये कण आपस में पूरी तरह से जुडे रहते हैं और सूर्य के ताप को ज्यादा गहराई तक जाने से रोकते हैं। ऎसे में धरातल का ऊपरी भाग जितना जल्दी गर्म होता है उतना ही जल्दी ठण्डा हो जाता है। जिले की मिट्टी की ऊष्मा ग्रहण करने की क्षमता अन्य जिलों की तुलना में कम होेने के कारण ठण्ड के तेवर अघिक तीखे रहते हैं।
जम्मू से आती शीतलहर
चूरू की स्थिति देशान्तरीय रूप में जम्मू कश्मीर के भागों से दक्षिण में स्थित है। उत्तरी भारत के बर्फबारी वाले क्षेत्रों से चलने वाली शीतलहर जिले में सीधी पहंुचती हैं। जो नश्तर चुभती हैं। हालांकि जम्मू-कश्मीर व चूरू के बीच प्रदेश के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ जिले भी स्थित हैं, लेकिन यहां पर नहरी पानी की उपलब्धता के कारण आद्रüता अघिक रहती है। जिससे तापमान अमूमन शून्य से नीचे नहीं जा पाता है। चूरू से पश्चिम में बीकानेर स्थित है, परन्तु वहां अघिक प्रदूष्ाण के चलते तापमान चूरू की अपेक्षा अघिक रहता है। उधर, उत्तरी हवाओं के रास्ते से बाडमेर व जैसलमेर की दूरी ज्यादा है। ऎसे में उत्तरी हवाओं से सबसे अघिक प्रभावित चूरू ही होता है।
भौगोलिक स्थिति जिम्मेदार
चूरू की भौगोलिक परिस्थितियां ही ठण्ड की जिम्मेदार है। यहां की वायु में अघिक शुष्कता व मिट्टी की ऊष्मा ग्रहण करने की क्षमता कम होने तथा उत्तरी भारत से आने वाली सर्द हवाएं सीधी पहुंचने की वजह से सर्दी अघिक पडती है। चूरू और इसके पडोसी जिलों की भौगोलिक स्थितियों में काफी अंतर है।-डॉ। रविन्द्र कुमार बुडानिया, व्याख्याता (भूगोल), लोहिया महाविद्यालय, चूरू
'केमिस्ट्री'

Tuesday, December 14, 2010

प्रशासन तक होगी सीधी पहुंच

'सुगम' करेगा राह आसान : जिला और तहसील मुख्यालयों पर बनेंगे सुगम सेंटर
चूरू। प्रदेश में जाति प्रमाण पत्र बनवाने से लेकर हथियार लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाले लोगों तक को अब अधिकारी और कर्मचारियों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। जन-जन की यह परेशानी सुगम प्रोजेक्ट दूर करेगा। प्रोजेक्ट के तहत प्रदेश के जिला और तहसील स्तर पर एक-एक सुगम सेंटर खोला जाएगा। सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार विभाग ने सेंटर शुरू करने की अंतिम तिथि 31 मार्च 2011 निर्धारित की है। सेंटर पर कम्प्यूटर, प्रिंटर, स्केनर व विभिन्न प्रमाण पत्र के आवेदन फार्म उपलब्ध कराए जाएंगे। सब कुछ योजनानुसार हुआ तो आमजन की न केवल प्रशासन तक पहुंच आसान होगी बल्कि प्रमाण पत्र बनवाने में लगने वाला समय और अनावश्यक खर्च भी बचाया जा सकेगा।

प्रारूप पर नहीं उठेगी अंगुली
सुगम सेंटर शुरू होने के बाद प्रदेशभर में जाति, मूल निवास व आय समेत अनेक प्रमाण पत्र का स्टैण्डर्ड प्रारूप तय हो जाएगा। जिससे नौकरी के दौरान या अन्य कभी आवश्यकता पडऩे पर प्रमाण पत्र के प्रारूप पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकेगा। साथ ही फर्जी प्रमाण पत्र बनवाने पर भी काफी हद तक अंकुश लगेगा। फिलहाल प्रदेशभर में प्रमाण पत्रों के अलग-
अलग प्रारूप प्रचलित हैं।

जाति नहीं करा सकेगी गड़बड़ी
सुगम सेंटर पर उपलब्ध 'सुगम सॉफ्टवेयरÓ में एससी, एसटी व ओबीसी वर्ग में भारत सरकार की ओर से निर्धारित जाति एवं उनकी उप जाति की सूची फीड रहेगी। प्रमाण पत्र बनवाते समय किसी जाति विशेष के वर्ग को लेकर विवाद होने पर सूची में मिलान किया जा सकेगा। इससे गलत जाति का प्रमाण पत्र बनवाने की संभावना पूरी तरह समाप्त हो जाएगी। वर्तमान में किसी वर्ग विशेष में शामिल जाति का मिलान करने के लिए कार्मिकों को काफी समय खपाना पड़ता है।

ऐसे होगा आवेदन, यूं मिलेगा प्रमाण पत्र
आवेदक को सेंटर से फार्म लेना होगा। जिस पर फार्म के साथ संलग्र किए जाने वाले अन्य दस्तावेजों की सूची भी रहेगी। फार्म जमा कराने पर आवेदक को जमा की रसीद या नम्बर देने के साथ ही भविष्य में सेंटर पर आकर प्रमाण पत्र प्राप्त का दिन और समय भी बताया जाएगा। प्रमाण पत्र पर संबंधित अधिकारियों के हस्ताक्षर एवं मोहर लगवाने का काम सेंटर अपने स्तर पर पूरा करेगा।
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प्रदेश के एकाध जिले में सुगम प्रोजेक्ट चल रहा है, मगर तहसील स्तर पर सेंटर पहली बार बना रहे हैं। जिला कलक्टरों को इस संबंध में दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं। जाति, मूल निवास, राशन कार्ड व लाइसेंस बनवाने समेत अनेक सुविधाएं सेंटर पर उपलब्ध करवाई जाएगी। जिला कलक्टर स्व विवेक से सेंटर पर अन्य सुविधाएं बढ़ा भी सकेंगे।
-संजय मलहोत्रा, सचिव व आयुक्त
सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार विभाग


जिला व तहसील स्तर पर सुगम सेंटर स्थापित करने के लिए कार्य शुरू कर दिया है। एक अप्रेल से हर हाल में लोगों को इनका लाभ मिलने लगेगा। सेंटर से संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। फिलहाल भवन की तलाश व अन्य संसाधन जुटाए जा रहे हैं।
-विकास एस भाले, जिला कलक्टर, चूरू