क्षमता से दोगुने अधिक हिरण करते विचरण
चूरू। काले हिरणों के विश्व प्रसिद्ध तालछापर अभयारण्य वर्षों से अपने विस्तार को तरस रहा है। अभयारण्य में हिरणों का कुनबा लगातार बढ़ता जा रहा है, मगर क्षेत्रफल जस का तस है। स्थिति यह है कि यहां पर हिरणों की संख्या क्षमता से दोगुनी अधिक है। यही वजह है कि भोजन तलाश एवं स्वच्छंद विचरण के लिए अभयारण्य सीमा से बाहर निकलकर कई हिरण अकाल मौत का शिकार हो रहे हैं। वन विभाग पिछले तीन वर्ष से अभयारण्य के विस्तार का प्रयास कर रहा है, परन्तु प्रशासनिक शिथिलता और राज्य सरकार की अनदेखी के चलते योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है। जिम्मेदार जनप्रतिनिधि भी इस कार्य में रुचि लेते नहीं दिख रहे हैं।
वन विभाग अभयारण्य की दक्षिणी-पश्चिमी से सटी से सरकारी भूमि को अभयारण्य में मिलाकर इसके विस्तार का प्रयास कर रहा है। लगभग चार सौ हैक्टेयर में फैली इस भूमि पर नमक की 34 इकाइयां स्थापित हैं। इनमें से 10 इकाइयों के पट्टे निरस्त कर दिए गए हैं जबकि दो इकाइयां बंद हैं। अभयारण्य के विकास को लेकर होने वाली बैठकों में यह मुद्दा प्रमुखता से उठाया जाता रहा है। इस साल 24 जून को जिला कलक्टर की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में जिला उद्योग केन्द्र के महाप्रबंधक नमक की आठ इकाइयों की भूमि, जिस पर कोई नहीं की वजह से वन विभाग को सौंपे जाने की सहमति जता चुके हैं। इसी बैठक में सुजानगढ़ के तहसीलदार ने अभयारण्य के विस्तार के लिए नमक की शेष इकाइयों के पट्टों का नवीनीकरण रोकने तथा पट्टाधारियों को नावा या अन्यत्र क्षेत्र में स्थानांनतरित करने का सुझाव दिया था। आधिकारिक सूत्रों की मानें तो अभयारण्य के विस्तार का प्रस्ताव और नमक इकाइयों के सर्वे की रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी हुई है। लेकिन सरकार अभी तक इस मुदद्े को गंभीरता से नहीं लिया है।
यूं बढ़ेगा क्षेत्रफल
तालछापर अभयारण्य 719 हैक्टेयर में फैला हुआ है। नमक इकाइयों की लगभग 16 सौ बीघा भूमि मिलने पर अभयारण्य का क्षेत्रफल तकरीबन चार सौ हैक्टेयर बढ़कर एक हजार 119 हैक्टेयर हो सकता है। वन विशेषज्ञों के मुताबिक एक हिरण को स्वच्छंद विचरण करने के लिए करीब एक हैक्टेयर क्षेत्रफल की आश्यकता होती है। हालांकि इस लिहाज यह क्षेत्रफल भी पर्याप्त नहीं कहा जा सकता।
इसलिए विस्तार जरूरी
-हिरणों को स्वच्छंद विचरण के लिए मिलेगा अधिक क्षेत्र।
-चारागाह विकसित कर प्राकृतिक चारे की कमी दूरी होगी।
-मीठे पानी के जलस्रोतों की संख्या में होगा इजाफा।
-हिरणों का नमक इकाइयों के गड्ढ़ों में गिरना बंद होगा।
-आवारा कुत्तों व शिकारियों से अधिक सुरक्षित होंगे हिरण।
साल दर साल बढ़ते हिरण
चूरू जिले की सुजानगढ़ तहसील के छापर कस्बे में स्थित अभयारण्य में हिरणों का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है। अपे्रल 2010 में की गई वन्यजीव गणना के मुताबिक अभयारण्य में हिरणों की संख्या एक हजार 910 से बढ़कर दो हजार 25 हो गई है। हिरणों की संख्या अधिक बढ़ सकती थी, मगर बीते दो वर्ष के दौरान तेज अंधड़ व बारिश की वजह से तकरीबन सौ हिरण अकाल मौत का शिकार हो गए थे। अभयारण्य के विस्तार की आवश्यकता सात-आठ वर्ष पूर्व ही महसूस की जाने लगी थी, परन्तु इस दिशा में तीन वर्ष पूर्व कदम बढ़ाए गए हैं।
जसवंतगढ़ में भी तलाशी जगह
हिरणों की संख्या बढऩे के साथ-साथ अभयारण्य के विस्तार का दबाव भी बढ़ता जा रहा है। ्रऐसे में वन विभाग ने नागौर जिले की लाडऩूं तहसील के जसवंतगढ़ कस्बे में हिरणों के लिए अनुकूल जगह तलाशी है। यहां पर तकरीबन पांच सौ हिरण स्थानांनतरित करने की योजना पर विचार किया जा रहा है, लेकिन वहां भारी मात्रा में जूली फ्लोरा होना योजना की राह में
सबसे बड़ी बाधा है।
कुरजां भी हैं पहचान
तालछापर में काले हिरणों के अलावा कुरजां, जंगली बिल्ली, मरु लोमड़ी, साण्डा, गिद्धसमेत अन्य कई वन्यजीव पाए जाते हैं। सात समंदर पार से हर साल सैकड़ों की संख्या में आने वाली कुरजां भी अभयारण्य की पहचान हैं। कुरजां यहां पर अक्टूबर-मार्च तक शीतकालीन प्रवास करती हैं। इस वर्ष अभयारण्य में विश्व स्तर पर संकटग्रस्त पक्षी सोशिएबल लैप विंग भी नजर आया था।
इनका कहना है...
तालछापर में हिरणों की संख्या क्षमता से अधिक हो जाने के कारण गत तीन वर्ष से इसके विस्तार का प्रयास कर रहे हैं, मगर अभी तक सफलता नहीं मिली है। अभयारण्य के पास स्थित सरकारी भूमि को अधिगृहित करने के मामले के निर्णय राज्य सरकार के स्तर पर होना है। जिला प्रशासन, जिला उद्योग केन्द्र व राज्य सरकार को समय-समय पर पत्र लिखते रहते हैं, मगर अभयारण्य का विस्तार कब होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। इसके अलावा लाडनूं के जसवंतगढ़ के पास हिरणों के लिए अनुकूल जगह तलाशी है।
-केसी शर्मा, उप वन संरक्षक, चूरू
नमक इकाइयों का सर्वे करके रिपोर्ट विभाग के उच्चाधिकारियों को सौंप दी है। कुल 34 इकाइयों में से 22 कार्यरत हैं। कइयों के मामले न्यायालय में विचारधीन हैं। उक्त भूमि को अभयारण्य में मिलाए जाने का निर्णय उच्च स्तर पर होना है।
-जितेन्द्र सिंह शेखावत, जिला उद्योग अधिकारी, सुजानगढ़
चूरू। काले हिरणों के विश्व प्रसिद्ध तालछापर अभयारण्य वर्षों से अपने विस्तार को तरस रहा है। अभयारण्य में हिरणों का कुनबा लगातार बढ़ता जा रहा है, मगर क्षेत्रफल जस का तस है। स्थिति यह है कि यहां पर हिरणों की संख्या क्षमता से दोगुनी अधिक है। यही वजह है कि भोजन तलाश एवं स्वच्छंद विचरण के लिए अभयारण्य सीमा से बाहर निकलकर कई हिरण अकाल मौत का शिकार हो रहे हैं। वन विभाग पिछले तीन वर्ष से अभयारण्य के विस्तार का प्रयास कर रहा है, परन्तु प्रशासनिक शिथिलता और राज्य सरकार की अनदेखी के चलते योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है। जिम्मेदार जनप्रतिनिधि भी इस कार्य में रुचि लेते नहीं दिख रहे हैं।
वन विभाग अभयारण्य की दक्षिणी-पश्चिमी से सटी से सरकारी भूमि को अभयारण्य में मिलाकर इसके विस्तार का प्रयास कर रहा है। लगभग चार सौ हैक्टेयर में फैली इस भूमि पर नमक की 34 इकाइयां स्थापित हैं। इनमें से 10 इकाइयों के पट्टे निरस्त कर दिए गए हैं जबकि दो इकाइयां बंद हैं। अभयारण्य के विकास को लेकर होने वाली बैठकों में यह मुद्दा प्रमुखता से उठाया जाता रहा है। इस साल 24 जून को जिला कलक्टर की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में जिला उद्योग केन्द्र के महाप्रबंधक नमक की आठ इकाइयों की भूमि, जिस पर कोई नहीं की वजह से वन विभाग को सौंपे जाने की सहमति जता चुके हैं। इसी बैठक में सुजानगढ़ के तहसीलदार ने अभयारण्य के विस्तार के लिए नमक की शेष इकाइयों के पट्टों का नवीनीकरण रोकने तथा पट्टाधारियों को नावा या अन्यत्र क्षेत्र में स्थानांनतरित करने का सुझाव दिया था। आधिकारिक सूत्रों की मानें तो अभयारण्य के विस्तार का प्रस्ताव और नमक इकाइयों के सर्वे की रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी हुई है। लेकिन सरकार अभी तक इस मुदद्े को गंभीरता से नहीं लिया है।
यूं बढ़ेगा क्षेत्रफल
तालछापर अभयारण्य 719 हैक्टेयर में फैला हुआ है। नमक इकाइयों की लगभग 16 सौ बीघा भूमि मिलने पर अभयारण्य का क्षेत्रफल तकरीबन चार सौ हैक्टेयर बढ़कर एक हजार 119 हैक्टेयर हो सकता है। वन विशेषज्ञों के मुताबिक एक हिरण को स्वच्छंद विचरण करने के लिए करीब एक हैक्टेयर क्षेत्रफल की आश्यकता होती है। हालांकि इस लिहाज यह क्षेत्रफल भी पर्याप्त नहीं कहा जा सकता।
इसलिए विस्तार जरूरी
-हिरणों को स्वच्छंद विचरण के लिए मिलेगा अधिक क्षेत्र।
-चारागाह विकसित कर प्राकृतिक चारे की कमी दूरी होगी।
-मीठे पानी के जलस्रोतों की संख्या में होगा इजाफा।
-हिरणों का नमक इकाइयों के गड्ढ़ों में गिरना बंद होगा।
-आवारा कुत्तों व शिकारियों से अधिक सुरक्षित होंगे हिरण।
साल दर साल बढ़ते हिरण
चूरू जिले की सुजानगढ़ तहसील के छापर कस्बे में स्थित अभयारण्य में हिरणों का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है। अपे्रल 2010 में की गई वन्यजीव गणना के मुताबिक अभयारण्य में हिरणों की संख्या एक हजार 910 से बढ़कर दो हजार 25 हो गई है। हिरणों की संख्या अधिक बढ़ सकती थी, मगर बीते दो वर्ष के दौरान तेज अंधड़ व बारिश की वजह से तकरीबन सौ हिरण अकाल मौत का शिकार हो गए थे। अभयारण्य के विस्तार की आवश्यकता सात-आठ वर्ष पूर्व ही महसूस की जाने लगी थी, परन्तु इस दिशा में तीन वर्ष पूर्व कदम बढ़ाए गए हैं।
जसवंतगढ़ में भी तलाशी जगह
हिरणों की संख्या बढऩे के साथ-साथ अभयारण्य के विस्तार का दबाव भी बढ़ता जा रहा है। ्रऐसे में वन विभाग ने नागौर जिले की लाडऩूं तहसील के जसवंतगढ़ कस्बे में हिरणों के लिए अनुकूल जगह तलाशी है। यहां पर तकरीबन पांच सौ हिरण स्थानांनतरित करने की योजना पर विचार किया जा रहा है, लेकिन वहां भारी मात्रा में जूली फ्लोरा होना योजना की राह में
सबसे बड़ी बाधा है।
कुरजां भी हैं पहचान
तालछापर में काले हिरणों के अलावा कुरजां, जंगली बिल्ली, मरु लोमड़ी, साण्डा, गिद्धसमेत अन्य कई वन्यजीव पाए जाते हैं। सात समंदर पार से हर साल सैकड़ों की संख्या में आने वाली कुरजां भी अभयारण्य की पहचान हैं। कुरजां यहां पर अक्टूबर-मार्च तक शीतकालीन प्रवास करती हैं। इस वर्ष अभयारण्य में विश्व स्तर पर संकटग्रस्त पक्षी सोशिएबल लैप विंग भी नजर आया था।
इनका कहना है...
तालछापर में हिरणों की संख्या क्षमता से अधिक हो जाने के कारण गत तीन वर्ष से इसके विस्तार का प्रयास कर रहे हैं, मगर अभी तक सफलता नहीं मिली है। अभयारण्य के पास स्थित सरकारी भूमि को अधिगृहित करने के मामले के निर्णय राज्य सरकार के स्तर पर होना है। जिला प्रशासन, जिला उद्योग केन्द्र व राज्य सरकार को समय-समय पर पत्र लिखते रहते हैं, मगर अभयारण्य का विस्तार कब होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। इसके अलावा लाडनूं के जसवंतगढ़ के पास हिरणों के लिए अनुकूल जगह तलाशी है।
-केसी शर्मा, उप वन संरक्षक, चूरू
नमक इकाइयों का सर्वे करके रिपोर्ट विभाग के उच्चाधिकारियों को सौंप दी है। कुल 34 इकाइयों में से 22 कार्यरत हैं। कइयों के मामले न्यायालय में विचारधीन हैं। उक्त भूमि को अभयारण्य में मिलाए जाने का निर्णय उच्च स्तर पर होना है।
-जितेन्द्र सिंह शेखावत, जिला उद्योग अधिकारी, सुजानगढ़
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