Sunday, March 21, 2010

कली को खिलने दो

मेरी तरह आपका भी दिल चाहता होगा कि घर के किसी कोने में कोई बगिया हो...उसमें अलग-अलग रंगों के ढेरों फूल मुस्कुराते नजर आए...रोजाना एक नई कली खिले और फूल बने...ताकि घर का कोना-कोना महक उठे...घर का हर सदस्य उनकी महक का आदी हो जाए...बारिश, आंधी या तूफान में उन्हें जरा सी भी चोट पहुंचे तो दिल बेचैन हो उठे...घर आने वाले हर मेहमान उनकी तारीफ करते नहीं थके...एक-एक कली मानो जाने-अनजाने मेहमान से बतियातीं दिखे...।
पर हर कली के खिलने का अपना एक मौसम होता है...किसी को खून जमा देने वाली सर्दी प्यारी लगती है तो कोई भीषण गर्मी में भी खिल उठती है...बगिया में शायद ही कभी ऐसी कली खिले...जो हर मौसम में हंसती रहे...उसकी महक हर वक्त हमारे साथ रहे...लेकिन दोस्तों दुनिया बनाने वाला एक ऐसी कली भी बनाता है...जिसकी हम कल्पना कर रहे हैं...जो घर तो क्या हमारी पूरी दुनिया महका सकती हो...पर विडम्बना है कि लोग उस कली को खिलने से पहले उजाड़ रहे हैं...।
उसके लिए अपनी मां की कोख सबसे सुरक्षित जगह है...फिर भी देश के लाखों लोग रोजाना उसके खून से अपने हाथ रंग रहे हैं...मेरे अपने अंचल शेखावाटी के लोग तो काफी पढ़-लिख रहे हैं...शायद यहां पर उस नन्ही की जान लेने वाले बहुत कम होंगे...यह बात सिर्फ दो दिन पहले तक मेरा भ्रम थी...।
स्वयंसेवी संस्था शिक्षित रोजगार केन्द्र की 20 मार्च को सीकर में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस यह खुलासा हुआ कि शेखावाटी में हर साल 46 हजार कन्याओं की गर्भ में ही हत्या कर दी जाती है...और घिनौने कार्य में सीकर जिला पहले पायदान पर है...जहां हर साल 18 हजार कन्या भ्रूण हत्याएं होती हैं...वहीं झुंझुनूं जिले में 15 हजार व चूरू जिले में 13 हजार कन्याओं को जन्म लेने से पूर्व ही मार दिया जाता है...।
शेखावाटी के तीनों जिलों में से चूरू में इस सामाजिक बुराई का आंकड़ा सबसे कम है। दोस्तों सवाल आंकड़ों का नहीं बल्कि यह है कि आखिर यह अपराध खत्म होने का नाम क्यों नहीं ले रहा...क्यों बेटियों से उनका जन्म लेने का हक छीना जा रहा है...? क्यों उन्हें दुनिया में आने से पहले विदा किया जा रहा है...? आखिर 21वीं सदी में भी लोग पुत्रमोह के जाल से मुक्त क्यों नहीं हो पा रहे हैं...? आज तो बेटियां बुलंद हौसलों के दम पर ऊंची उड़ान भर रही हैं...इसके बावजूद लोग उनकी किलकारी सुनना क्यों पसंद नहीं कर रहे हैं...हरके सवाल मन को झकझोर देता है...।
चूरू में भले ही यह आंकड़ा 13 हजार को छू रहा हो...मगर इसका यह मतलब कतई नहीं कि यहां के वाशिन्दे बेटियों से प्यार नहीं करते...चंद उदाहरण देखें तो सबसे पहले नाम जिला कलक्टर डा. केके पाठक का लेना चाहूंगा...हालांकि उनकी शादी हाल ही हुई है...हाल ही उन्होंने कन्या भू्रण हत्या को रोकने का संदेश देता वार्षिक कलेण्डर जारी किया है...जिसमें संदेश के रूप में लिखी कविताएं पढ़कर उस अबोली के प्रति उनकी समझ का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है...सारी कविताएं उन्होंने खुद लिखी हैं...इसी कड़ी में दूसरा नाम युवा साहित्यकार दूलाराम सहारण का लेना चाहूंगा जो अपनी नन्ही और प्यारी सी बेटी कृतिका चौधरी के नाम से एक ब्लॉग संपादित कर रहे हैं....दोस्तों इस कड़ी में आपका नाम भी शामिल हो सकता है...।
कन्या भ्रूण हत्या रोकें...दूसरों को भी इसकी रोकथाम के लिए प्रेरित करें।

3 comments:

  1. बहुत ही सही मुद्दा उठाया है आपने!!आज हम सब को बेटियों का महत्त्व समझना ही होगा!पाठक जी और दुला राम जी के प्रयासों को भी सराहना चाहिए!!

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  2. हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

    लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

    अनेक शुभकामनाएँ.

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  3. गंभीर एवं सही मुद्दा उठाया है आपने
    । धन्‍यवाद के पात्र हैं आप।


    कृतिका की तरफ से आभार।

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