Wednesday, June 2, 2010

सशक्तीकरण खुद से शुरू

राजस्थान के चूरू में पैदा हुई मंजु राजपाल अभी भीलवाडा जिले की कलेक्टर हैं। अपने बेहतरीन काम के बलबूते बेस्ट कलेक्टर का अवार्ड पाने वाली मंजु से खास बातचीत।

क्या बचपन से ही आईएएस बनने का ख्वाब था
मैं पढाई में बचपन से होनहार थी। तभी प्रशासनिक सेवा में जाना तय कर लिया था। पोस्ट गे्रजुएट (अर्थशास्त्र) में गोल्ड मैडल हासिल किया। इसके बाद कभी किसी दूसरे क्षेत्र के बारे में सोचा तक नहीं। मैंने ठान लिया था कि प्रशासनिक सेवा में जाकर रहूंगी। पहली बार आरएएस बनी। फिर आईआरएस और उसके बाद छठी रैंक हासिल करके आईएएस बनने का ख्वाब पूरा हुआ।

सपनों को पूरा करने में परिवार की मदद।
परिवार का सपोर्ट नहीं मिलता तो शायद यहां नहीं होती। हमारे परिवार में लडके इतना नहीं पढ पाए, लेकिन हम लडकियों ने पढकर आगे बढना चाहा तो सबने हौसला बढाया। मैंने सिविल परीक्षा की तैयारी चूरू जैसे छोटे शहर में रहकर की। यह सब परिवार की सोच और सहयोग से ही मुमकिन हुआ।

प्रशासनिक जिम्मेदारी निभाने के दौरान कोई मुश्किल क्षण।
डूंगरपुर में कलेक्टर रहते हुए (2006 में) मैंने जिन चुनौतियों सामना किया, वो आज भी स्मृतियों में है। पूरा इलाका बाढ के पानी से घिर गया था। चारों ओर हाहाकार मच गया। लोग डूब रहे थे। उन्हें बचाने वाला कोई नहीं था। उच्च अघिकारियों से हमारा संपर्क टूट चुका था। उस दौरान बाढ पीडितों को चिकित्सा और राशन सुविधा मुहैया करवाने के साथ-साथ उन्हें यकीन दिलाना जरूरी था कि प्रशासन उनके साथ है। हमने रातों-रात सारी व्यवस्था दुरूस्त की। पीडितों तक समय पर भोजन सामग्री पहुुंचाई और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर भेजा।

फील्ड में ज्यादातर लोगों की क्या मांगें रहती हैं
लोगों की मांगें क्षेत्र विशेष निर्भर पर करती हैं। भीलवाडा में रोजगार की कोई कमी नहीं है, मगर यहां लोग पानी को लेकर सबसे अघिक परेशान रहते हैं। डूंगरपुर में सबसे बडी समस्या रोजगार की थी। सीकर में लोग शिक्षित हैं। वहां लोगों में प्रशासनिक सिस्टम को लेकर अच्छी समझ है। यही कारण है कि सीकर जिले में लोग कोई विशेष्ा मांग करने की बजाय सिस्टम में बदलाव चाहते हैं।

प्रशासनिक काम के बीच जनप्रतिनिघियों के बेवजह दखल के बारे में राय।
इस मामले में अब तक भाग्यशाली हूं। कहीं भी इस तरह की समस्या का सामना नहीं करना पडा। मेरा मानना है कि जनता की पहली पहुंच जनप्रतिनिघि हंै। जनता की समस्या प्रशासन के पास चाहे सीधी आए या जनप्रतिनिघि के माध्यम से, प्रशासन को इसे अपने काम में दखलअंदाजी नहीं मानना चाहिए। वैसे भी प्रशासन का लक्ष्य जनता की समस्याओं का समाधान करना है। इस बीच जनप्रतिनिघियों का सुझाव और मार्गदर्शन मिले तो बेहतर होगा।

जीवन की सबसे बडी खुशी।
करीब चार साल पहले डूंगरपुर में एक साथ दो से ढाई लाख लोगों को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के माध्यम से रोजगार दिलाया तो बडी खुशी हुई। दरअसल डूंगरपुर ट्राइबल एरिया है। वहां रोजगार काफी कम था। लोग पलायन करने को मजबूर थे, लेकिन अघिक पढे-लिखे नहीं होने के कारण दूसरों शहरों में भी अच्छा रोजगार नहीं मिल पा रहा था। मुझे खुशी इस बात की है कि डूंगरपुर में नरेगा की शुरूआत मेरे समय में हुई।

महिलाओं से क्या कहना चाहेंगी
महिलाओं को तय करना चाहिए कि जिन कठिन परिस्थितियों से उन्हें गुजरना पडा है, उस स्थिति से उनकी बेटी को न गुजरना पडे। इसका एकमात्र रास्ता शिक्षा है। शिक्षा से ही महिलाएं आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बन सकती हैं। वैसे भी सशक्तीकरण खुद से आता है। बाल विवाह और अशिक्षा महिलाओं के लिए सबसे बडी चुनौतियां हैं।

3 comments:

  1. सचमुच गजब है आपका अंदाजे-बयां...
    बधाई और शुभकामनाएं...
    ye bhi dekhen
    www.geegalo.blogspot.com
    www.srijandharmi.blogspot.com

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  2. bhut achha laga aapka ye pryas...
    yakinan zindagi...m unchaiyo ko chhuoge
    Kunj Bihari

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