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राष्ट्रीय कृषि बीमा योजनाआधों को भी नहीं मिला क्लेम
चूरू, 6 नवम्बर। राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना एक बार फिर से जिले के तीस हजार से अधिक किसानों के लिए महज उम्मीद की फसल साबित हुई है। वर्ष 2008-09 के दौरान रबी की फसलों का बीमा करवाने वाले जिले के 59 हजार 556 किसानों में से तारानगर व सुजानगढ़ तहसील के 20 हजार 538 किसानों को हाल ही बीमा क्लेम स्वीकृत हुआ है। जिले की चूरू, सरदारशहर, रतनगढ़ व राजगढ़ तहसील के किसानों को बीमा का लाभ नहीं मिला है। तारानगर तहसील के किसानों को चना तथा सुजानगढ़ तहसील के किसानों को गेहूं, मैथी व सरसों का बीमा क्लेम स्वीकृत किया गया है।
यह है समस्या
योजना के नियमानुसार किसानों को बीमा का लाभ देने के लिए तहसील स्तर पर सूखा घोषित किया जाता है। जिस तहसील को सूखाग्रस्त घोषित किया जाता है उसी के किसानों को बीमा का लाभ मिलता है। भले ही सभी किसानों का नुकसान हुआ हो या नहीं। जबकि दूसरी ओर अन्य तहसीलों के विभिन्न गांवों में नुकसान झेलने के बावजूद किसान बीमा के लाभ से वंचित हो जाते हैं। बीमा क्लेम के निर्धारण में तहसील की बजाय गांव को इकाई माने जाने की मांग किसान व किसान संघों की ओर से लम्बे समय से की जा रही है। लेकिन नतीजा सिफर है।
आंकड़ों की जुबानी
आधिकारिक जानकारी के अनुसार वर्ष 08-09 के दौरान जिले के 59 हजार 556 किसानों ने दो लाख 74 हजार 238 हैक्टेयर में खड़ी फसलों का बीमा करवाया तथा बीमाकर्ता कम्पनी को प्रीमियम के रूप में दो करोड़ 45 लाख 33 हजार 448 रुपए जमा करवाए। बदले में 20 हजार 538 किसानों को 12 करोड़ 42 लाख 51 हजार 6 57 रुपए बीमा क्लेम स्वीकृत हुआ है।
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कम्पनी ने तहसील को इकाई मानकर बीमा क्लेम स्वीकृत किया है। राशि जल्द ही किसानों के खाते में जमा करवा दी जाएगी। तहसील की बजाय गांव को इकाई माने जाने के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है।
-ओमप्रकाश सेन, प्रतिनिधि, एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कम्पनी
योजना के तहत फसल की कम से कम 16 अलग-अलग खेतों से क्रॉप कटिंग होती है। क्रॉप कटिंग के लिए खेतों का चयन औचक (रेंडमली) होता है। फिर पिछले पांच से दस साल तक के औसत उत्पादन से तुलना की जाती है। जिस तहसील का उत्पादन औसत से कम होता उसमें किसानों को बीमा क्लेम स्वीकृत किया जाता है। जिले में सुजानगढ़ व तारानगर तहसील के अलावा अन्य तहसीलों में उत्पादन औसत से कम नहीं रहा इसलिए इनके किसानों के लिए बीमा क्लेम स्वीकृत नहीं हो सका।-
भंवरसिंह राठौड़, उप निदेशक, कृषि विभाग, चूरू
प्रस्तुतकर्ता विश्वनाथ सैनी
प्रतिक्रियाएँ:
1 टिप्पणियाँ:
चेतना के स्वर said...
gazzab dada lage raho congrats
November 9, 2009 7:37 PM
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