चूरू। विश्व स्तर पर दुर्लभ प्रजातियों में शामिल पक्षी सोशिएबल लैप विंग इन दिनों चूरू जिले के तालछापर कृष्णमृग अभयारण्य में देखी जा रहा है । कजाकिस्तान से शीतकालीन प्रवास पर भारत के सूखी घास और सूखे मैदानी इलाकों में आने वाला यह पक्षी इस बार देशभर में सबसे पहले तालछापर में नजर आया है। फिलहाल अभयारण्य में ऎसे पांच पक्षी विचरण करते देखे जासकते हैं। रेड डेटा बुक में लुप्तप्राय प्रजातियों में शामिल सोशिएबल लैप विंग अभयारण्य में 12 साल बाद पहुंची है। अभयारण्य के रिकॉर्ड के मुताबिक इससे पूर्व 1998 में इसने अभयारण्य में पहुंचकर सर्दियां गुजारी थी। एक दशक से अधिक लम्बे अंतराल के बाद इसके यहां दुबारा आगमन को वन अधिकारी अभयारण्य के बदलते वातावरण के लिए शुभ संकेत मान रहे हैं।
दुनिया भर में सिमटी संख्या
इण्डियन बर्ड्स कन्जर्वेशन नेटवर्क के स्टेट कोऑर्डिनेटर सुरेश चन्द्र शर्मा के अनुसार रेड डाटा बुक में विश्व में सोशिएबल लैप विंग की संख्या काफी कम बताई गई है। भारत में गुजरात का कुछ हिस्सा और सम्पूर्ण राजस्थान में इनके आवास के अनुकूल वातावरण है। मगर दोनों प्रदेशों में लम्बे समय से इनके दर्शन दुर्लभ हो गए हैं। राजस्थान में मुख्य रूप से तालछापर, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान व अन्य छोटे दलदली क्षेत्रों में यह पक्षी कभी-कभार ही दिखाई देता है।
बड़ा शर्मिला पक्षी
लगभग तीस सेंटीमीटर लम्बा यह पक्षी बड़ा शर्मिला है। सफेद भौंहे, सिर पर चमक और पेट पर काला व मेहरून धब्बा इसकी खास पहचान है। इस मेहमान पक्षी का मुख्य भोजन कीड़े-मकोड़े हैं। कजाकिस्तान में बर्फ गिरने के कारण अक्टूबर में शीतकालीन प्रवास के लिए यह अफगानिस्तान होता हुआ तालछापर पहुंचा है। यहां पर यह पक्षी मार्च तक प्रवास करेगा।
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दुनिया भर में सिमटी संख्या
इण्डियन बर्ड्स कन्जर्वेशन नेटवर्क के स्टेट कोऑर्डिनेटर सुरेश चन्द्र शर्मा के अनुसार रेड डाटा बुक में विश्व में सोशिएबल लैप विंग की संख्या काफी कम बताई गई है। भारत में गुजरात का कुछ हिस्सा और सम्पूर्ण राजस्थान में इनके आवास के अनुकूल वातावरण है। मगर दोनों प्रदेशों में लम्बे समय से इनके दर्शन दुर्लभ हो गए हैं। राजस्थान में मुख्य रूप से तालछापर, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान व अन्य छोटे दलदली क्षेत्रों में यह पक्षी कभी-कभार ही दिखाई देता है।
बड़ा शर्मिला पक्षी
लगभग तीस सेंटीमीटर लम्बा यह पक्षी बड़ा शर्मिला है। सफेद भौंहे, सिर पर चमक और पेट पर काला व मेहरून धब्बा इसकी खास पहचान है। इस मेहमान पक्षी का मुख्य भोजन कीड़े-मकोड़े हैं। कजाकिस्तान में बर्फ गिरने के कारण अक्टूबर में शीतकालीन प्रवास के लिए यह अफगानिस्तान होता हुआ तालछापर पहुंचा है। यहां पर यह पक्षी मार्च तक प्रवास करेगा।
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सोशिएबल लैप विंग दुर्लभ पक्षी है। दुनिया भर में इनकी संख्या तेजी से घटती जा रही है।
-हरकीरत सिंह सांगा, वन्यजीव विशेषज्ञ
तालछापर अभयारण्य में सात रोज पूर्व ही सोशिएबल लैप विंग नजर आई है।इससे पूर्व इसे अभयारण्य में 1998 में देखा गया था। रेड डाटा बुक में शामिल इस पक्षी का एक दशक बाद यहां पहुंचना अभयारण्य के वातावरण तथा पक्षी संवर्द्धन के लिहाज से अच्छा संकेत है।
-सूरत सिंह पूनिया, क्षेत्रीय वन अधिकारी, तालछापर
अभयारण्य में प्रवासी पक्षियों के प्राकृतिक आवास को बढ़ावा देने के लिए लम्बे समय से अनेक काम किए जा रहे हैं। यही वजह है विश्वभर में दुर्लभ पक्षी मानी जा रही सोशिएबल लैप विंग यहां नजर आई है।
-केसी शर्मा, डीएफओ, चूरू
-हरकीरत सिंह सांगा, वन्यजीव विशेषज्ञ
तालछापर अभयारण्य में सात रोज पूर्व ही सोशिएबल लैप विंग नजर आई है।इससे पूर्व इसे अभयारण्य में 1998 में देखा गया था। रेड डाटा बुक में शामिल इस पक्षी का एक दशक बाद यहां पहुंचना अभयारण्य के वातावरण तथा पक्षी संवर्द्धन के लिहाज से अच्छा संकेत है।
-सूरत सिंह पूनिया, क्षेत्रीय वन अधिकारी, तालछापर
अभयारण्य में प्रवासी पक्षियों के प्राकृतिक आवास को बढ़ावा देने के लिए लम्बे समय से अनेक काम किए जा रहे हैं। यही वजह है विश्वभर में दुर्लभ पक्षी मानी जा रही सोशिएबल लैप विंग यहां नजर आई है।
-केसी शर्मा, डीएफओ, चूरू
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