जिसका नाम लेने भर से रूह को सुकून मिलता है...दुनियाभर के लोग जिसकी आस्था के समुद्र में गोता लगा रहे हैं...जिसके बारे में कहा जाता है कि उसके घर देर है मगर अंधेर नहीं...जिसे लोग हर लम्हा हर पल अपने पास महसूस करते हैं...वह लोगों की खुशियों में भी शरीक होता है और दुखों में भी...गमों का पहाड़ टूटने पर वह जीने का सहारा बनने से भी नहीं कतराता...एक दिन मेरा पागल मन उसको खोजने निकल पड़ा...उसे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरजाघर में ढूंढा...राह में मिलने वाले हर बंदे से उसका ठिकाना पूछा...मगर हर चौखट पर उसका रूप बदला हुआ था...और हर गली में उसका नाम अलग था...उसके इतने सारे रूप देख और नाम सुन तो पागल मन और बावला हो गया...बेचारे मन के कुछ भी समझ में नहीं आया...मुझसे बोल रहा था कि उसे खुदा कहूं या भगवान, उसका नाम रब है या परमेश्वर...रहीम चाचा को तो वो हाथों की लकीरों में दिखाई देता है...और राम को दीये की लो में...करतार सिंह तो पंचों में भी उस परमेश्वर को देख लेता है...और माइकल तो उसे हर लम्हा अपने नजदीक मानता है...दुनिया में वो ही एक ऐसा शख्स है... जो लोगों को आंखें बंद करने के बाद भी साफ नजर आता है...पागल मन का हाल जान तो मैं भी अजीब उलझन में फंस गया...क्योंकि ना तो मैंने कभी उस शख्स को देखा है और ना ही कभी उससे बात की है...बेचैन मन को कैसे समझाऊं कि वह कौन है?...जो संगीत में है...माँ-बाबा में दिखाई देता है...गरीब की दुआओं में जिसका जिक्र होता है...जो हवाओं की दिशा बदलने की ताकत रखता हो...नदियों और नालों की रूख जो मोड़ दे...जिसका वास्ता देने पर लोगों की रूह कांप उठती हो...जिसे लोग पत्थर में देखते हैं... पूजते हैं...यहां तक की उससे बात भी करते हैं...जिसे अग्नि का रूप मान लोग सात जन्मों तक प्यार के बंधन में बंध जाते हैं...जिसको साक्षी मान प्रेमी जोड़े जिंदगीभर के लिए एक-दूसरे के हो जाते हैं...हर शख्स उसके लिए 24 घंटों में से कुछ समय निकालता है...पागल मन ने मेरे चैहरे को पढ़ लिया...उसने भांप लिया कि मैं उस अनदेखे शख्स की टोह लेने में कामयाब नहीं हुआ...उसे बता नहीं पाऊंगा कि वो कौन है?... पागल ने लम्बी सांस ली और तस्सली से मेरे पास आकर बैठ गया...मैं जिस मन को लम्बे समय से पागल समझ रहा था...उसकी बातें सुन तो मेरा वर्षों पुराना भ्रम मिनटों में टूट गया...एकाएक मेरी नजरें उसके सामने झुक गई...उस मन ने मुझे बताया कि मंदिर में भी वही शख्स है जो मस्जिद में है...गुरुद्वारा और गिरजाघर के उसके रूप में भी कोई अंतर नहीं है...इन चारों का असली रूप तो हमारे दिल में बसता है...उसे हम किसी भी नाम से जानें...यह उसने हम पर छोड़ रखा है...---विश्वनाथ सैनी
प्रस्तुतकर्ता विश्वनाथ सैनी
प्रतिक्रियाएँ:
लेबल: मेरा मन...
2 टिप्पणियाँ:
Pankaj Mishra said...
बहूत अच्छा लिखा है आपने
September 14, 2009 2:05 PM
Ram said...
Just install Add-Hindi widget button on your blog. Then u can easily submit your pages to all top Hindi Social bookmarking and networking sites.Hindi bookmarking and social networking sites gives more visitors and great traffic to your blog.Click here for Install Add-Hindi widget
September 14, 2009 2:31 PM
प्रस्तुतकर्ता विश्वनाथ सैनी
प्रतिक्रियाएँ:
लेबल: मेरा मन...
2 टिप्पणियाँ:
Pankaj Mishra said...
बहूत अच्छा लिखा है आपने
September 14, 2009 2:05 PM
Ram said...
Just install Add-Hindi widget button on your blog. Then u can easily submit your pages to all top Hindi Social bookmarking and networking sites.Hindi bookmarking and social networking sites gives more visitors and great traffic to your blog.Click here for Install Add-Hindi widget
September 14, 2009 2:31 PM
Prabhavit karata lekhan hai aapka....Shubhkamnae!!
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/