चूरू, 26 फरवरी। ड्राईविंग लाइसेंस बनवाने के लिए अब चालक को सड़क सुरक्षा नियमों की पूरी जानकारी रखनी होगी। लर्निंग लाइसेंस बनाने की नई व्यवस्था के तहत जिला परिवहन कार्यालय में टच स्क्रीन मशीन आवेदक का सड़क सुरक्षा जानकारी का टेस्ट लेगी। टेस्ट में खरा उतरने वाले चालक को ही ट्रायल के बाद लाइसेंस जारी किया जा सकेगा। राज्य सरकार ने डीटीओ कार्यालय में टच स्क्रीन मशीन उपलब्ध करवा दी है। मार्च से यह व्यवस्था लागू हो जाएगी।
देना होगा सही जबाव
टच स्क्रीन मशीन में सड़क सुरक्षा से संबंधित 100 सवाल फीड हैं। टेस्ट में टच स्क्रीन मशीन की स्क्रीन पर आवदेक के सामने एक-एक करके 15 सवाल उभरेंगे। 15 सवालों में से नौ का सही जवाब देने वाला आवेदक लाइसेंस लेने लायक समझा जाएगा। फेल घोषित किए गए आवेदक को लाइसेंस के लिए एक सप्ताह बाद दुबारा फीस जमा करवाकर टेस्ट उत्तीर्ण करना पड़ेगा।चार में से एक सहीटेस्ट में टच स्क्रीन मशीन की स्क्रीन पर प्रत्येक सवाल के साथ ही चार वैकल्पिक उत्तर भी प्रदर्शित होंगे। आवेदक को चार में से एक सही सवाल को टच करना होगा। करीब दस मिनट के टेस्ट के तुरंत बाद मशीन परिणाम घोषित कर देगी। टेस्ट के लिए मशीन में हिन्दी और अंग्रेजी भाषा की सुविधा उपलब्ध है। चालक अपनी सुविधानुसार भाषा का चयन कर सकेगा।
निरीक्षक नहीं लेंगे साक्षात्कार
टच स्क्रीन मशीन का टेस्ट उत्तीर्ण करने के बाद परिवहन विभाग के निरीक्षक आवेदक का साक्षात्कार नहीं लेंगे। फिलहाल आवेदक की सड़क सुरक्षा की जानकारी का स्तर परिवहन विभाग के निरीक्षक परखते हैं। जान-पहचान के चलते कई आवेदक एकाध सवालों का जवाब देकर लर्निंग लाइसेंस हथिया लेते हैं। टच स्क्रीन टेस्ट व्यवस्था शुरू होने के बाद आवेदक अब ऐसा नहीं कर सकेंगे। ये होंगे सवालटच स्क्रीन मशीन में साइन बोर्ड, इंडीकेटर, ट्रैफिक सिग्नल, जेब्रा व डिवाइडर लाइन, यातायात पुलिस, लाल, पीली और हरी लाइट समेत सड़क सुरक्षा से सम्बन्धित सौ सवालों की प्रश्नावली फीड की गई है।
इनका कहना...
लाइसेंस लेने वालों में यातायात नियमों की जानकारी का स्तर बढ़ाने के लिए टच स्क्रीन मशीन से टेस्ट लिया जाएगा। मशीन उपलब्ध हो गई है। मार्च से टेस्ट शुरू हो जाएगा।
-जीआर मेहरड़ा, जिला परिवहन अधिकारी, चूरू--विश्वनाथ सैनीआगे पढ़ें...
प्रस्तुतकर्ता विश्वनाथ सैनी
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Sunday, February 22, 2009
सरकार बदली, योजनाएं अटकीं
वित्तीय स्वीकृति पर रोकराज बदलने के साथ ही जिले में भाजपा सरकार की ओर से शुरू की गई योजनाओं के क्रियान्वयन पर नई सरकार ने ब्रेक लगा दिए हैं। ऐसे में गांवों में विकास कार्य प्रभावित होने को हैं।चूरू, 22 फरवरी। सरकार बदलने से जिले में गुरु गोलवलकर जन भागीदारी विकास योजना एवं दीनदयाल उपाध्याय आदर्श ग्राम योजना के करीब पचास से अधिक गांवों में लाखों के विकास कार्य अटक गए हैं। प्रदेश की नई सरकार के भाजपा कार्यकाल में शुरू हुई इन योजनाओं को हाल ही बंद करने का निर्णय किए जाने से ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है। गुरु गोलवलकर योजना में वर्ष 2008-09 के दौरान 69 कार्यो की प्रशासनिक स्वीकृतियां जारी की गई। इनमें से 37 कार्यों को ही वित्तीय स्वीकृति मिली है। शेष 32 कार्यों की वित्तीय स्वीकृति पर रोक लगा दी गई है। उधर, वर्ष 2007-08 में दीनदयाल उपाध्याय आदर्श ग्राम योजना के लिए चयनित गांव चूरू तहसील के दूधवाखारा और सरदारशहर तहसील के पूलासर में करीब 15-15 लाख रुपए के विकास कार्यों की स्वीकृति अब जारी नहीं की जाएगी।लौटाने लगे पंजीयन शुल्कगुरु गोलवलकर योजना के प्रस्ताव के साथ पंजीयन शुल्क के रूप में जमा किए पांच-पांच हजार रुपए प्रशासन लौटाने लगा है। योजना बंद होने की भनक लगते ही ग्रामीण पंजीयन शुल्क लेने के जिला परिषद पहुंचने लगे हैं। योजना के तहत जिले को आवंटित किए गए 83.50 लाख के बजट में से 41.75 लाख रुपए अटक गए हैं।अटक गए ये कामअधिकारिक जानकारी के अनुसार सरदारशहर के सवाई बड़ी में गोशाला के चारदीवारी, थिरपाली बड़ी के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में बरामदा व एक भवन, चूरू के ढाढर में श्मशाम भूमि में विश्राम घर, राजगढ़ के रतनपुरा में सामुदायिक भवन व खेल मैदान के चारदीवारी, घणाऊ के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के खेल मैदान के चारदीवारी, सिद्धमुख में प्रवेश निर्माण, रतनगढ़ के गोगासर में सभा भवन का निर्माण, लाछड़सर के गोशाला में टिन शेड निर्माण, नोसरिया में सहकारी समिति के चारदीवारी, सुजानगढ़ के जोगलिया में सामुदायिक भवन निर्माण, सालासर के चांदपोल मंदिर के पास सीमेंट सड़क, ठठावता में धर्मशाला में दो कमरों का निर्माण, तारानगर के कालवास के राजकीय माध्यमिक विद्यालय में दो भवन निर्माण समेत जिलेभर कुल 32 स्थानों के कार्य अटक गए हैं।
योजना के माध्यम से गांव में दो विश्राम घर व दो स्कूलों में हॉल का निर्माण करवाया जा चुका है। अब शमशान भूमि में विश्राम घर बनवाने चाहते थे। योजना बंद होने पर पंजीयन शुल्क लेने आए हैं।-चिमनाराम, ग्रामीण, ढाढर
जिन कार्यों की वित्तीय स्वीकृत जारी की जा चुकी है। उन्हें पूरा करवाया जाएगा। अन्य कार्यों की वित्तीय स्वीकृति जारी नहीं की जा रही है। गुरु गोलवलकर योजना के पंजीयन शुल्क राशि लौटा रहे हैं।-बीआर डेलू, सीईओ, जिला परिषद, चूरू-----विश्वनाथ सैनी आगे पढ़ें...
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Saturday, February 21, 2009
थळी में चंग के रंग
कारीगरों ने शुरू की तैयारी
चूरू, 20 फरवरी। फिजा में बासंती बयार है...थळी में फाग की मस्ती छाने को है...चौक, गुवाड़ और गली-मोहल्लों में शाम को युवाओं की भीड़ जुटने लगी है...ऐसे में फाग प्रेमियों को मस्ती से सराबोर कर देने के लिए चंग बनाने वालों ने अपने काम की गति दे दी है।जिला मुख्यालय पर नरसिंह भवन के पीछे 12 महादेव के पास दो हजार से अधिक चंग तैयार करने का काम प्रगति पर है। 29साल से चंग बनाने में जुटे भागीरथ चंदेल ने बताया कि फाल्गुन से दो माह पहले चंग बनाने की तैयारी शुरू हो गई थी।शिवपंचमी के बाद से चंग की बिक्री शुरू होगी और महाशिवरात्रि के बाद इनकी बिक्री परवान चढ़ेगी। चंदेल ने बताया कि चूरू में ढाई सौ से लेकर साढ़े चार सौ रुपए तक के चंग उपलब्ध हैं। बीकानेर का प्लास्टिक से बना चंग करीब ढाई सौ रुपय में बेचा जा रहा है। चंग बनाने के लिए हरियाणा के रेवाड़ी जिले के कोसली गांव से बड़ी संख्या में घेरे मंगवाए गए हैं।पड़ौसी शहरों में भी मांगजिला मुख्यालय पर ऑर्डर पर चंग बनाए जा रहे हैं। चूरू समेत पड़ौसी जिलों के फतेहपुर, मंडावा, रामगढ़, लक्ष्मणगढ़, कोलिंडा, भादरा, बिसाऊ कस्बे से भी चंग की मांग है। चूरू में बनी चंग की सबसे अधिक खरीदारी तारानगर, सीकर के लक्ष्मणगढ़ व फतेहपुर तथा झुंझुनूं के मंडावा व बिसाऊ के फाग प्रेमी करते हैं।कम हो गया रुझानचंग बनाने से जुड़े लोगों की मानें तो शेखावाटी और थळी में चंग के शौकीन कम होते जा रहे हैं। शहरी क्षेत्र में चंग की मांग काफी कम हो गई है। अब अंचल में वह जमाना नहीं रहा जब फाग के रसिए होली से महीने भर पहले चंग थाम लेते थे। ग्रामीण क्षेत्र में होली से दस दिन पहले चंग की थाप सुनाई देती है। ऐसे बनता है चंगथळी में बकरा व भेड़ की खाल के चंग तैयार किए जाते हैं। खाल को नमक के पानी साफ कर आक के दूध में भिगो देते हैं। इससे खाल कड़क होकर आवाज करने लगती है। तैयार खाल को घेरे पर चढ़ा कर मैदा और गौंद की सहायता से चस्पा कर दी जाती है। करीब दो घंटे धूप में सूखाने के बाद चंग तैयार हो जाता है।विरासत में मिला हुनरबकौल भागीरथ चंदेल चंग बनाने का काम उन्हें विरासत में मिला है। चंदेल परिवार वर्षों से चंग बनाने में जुटा है। वर्षों गिरधारी लाल चंदेल और बिरजाराम चंदेल के बनाए चंग भी फाग प्रेमियों को खासे रास आते थे। वर्तमान में चंदेल परिवार के करीब 30 से अधिक महिला-पुरुष परंपरागत काम को जारी रखे हुए हैं।प्रस्तुति-विश्वनाथ सैनी आगे पढ़ें...
प्रस्तुतकर्ता विश्वनाथ सैनी
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नरेगा की हालत भी खस्ता
काम पूरा, मजदूरी कम
चूरू 20 फरवरी। मेहनतकश लोगों की नैया पार लगाने वाली राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना (नरेगा) की जिले में हालत खस्ता है। योजना को लागू हुए एक वर्ष होने को है मगर अनियमितताएं इसका पीछा नहीं छोड़ रही हैं। आठ घंटे तक खून-पसीना एक करने के बावजूद कम मजदूरी मिलना श्रमिकों के लिए पीड़ादायी बना हुआ है। प्रशासन के पास उचित मजदूरी दिलाने की गुहार लगाते ज्ञापनों का अम्बार लग चुका है मगर प्रशासन ने अभी तक किसी भी कार्य पर मजदूरी का सत्यापन कराने की जहमत नहीं उठाई है। कागजों में सिमटी सुविधाएंयोजना के तहत श्रमिकों को मिलने वालीं सुविधाएं कागजों में सिमट गई हैं। नियमानुसार कार्यस्थल पर श्रमिकों के पांच वर्ष से छोटे बच्चों के लिए पालने की सुविधा होनी चाहिए मगर जिले में पालनों की खरीद निविदाओं में उलझ कर रह गई है। मौके पर टैंट और पेजयल सुविधाओं की स्थिति भी किसी छिपी नहीं। नियम ताक मेंजिला प्रशासन ने योजना के नियमों को ठेंगा दिखाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। आंकड़ों पर गौर करें तो गत दस माह में योजना के नियमों को ताक में रख 33 हजार 366 श्रमिकों को मजदूरी का नकद भुगतान किया गया। नकद भुगतान में श्रमिकों के साथ अन्याय की गुंजाइश रहती है। जिले में योजना के तहत एक लाख 63 हजार 624 लोगों को रोजगार मिला है। इनमें से एक लाख 30 हजार 258 श्रमिकों के ही बैंक व डाकघर में खाते खोले गए हैं। योजना के नियमों में स्पष्ट उल्लेख है कि श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान बैंक व डाकघर खाते के माध्यम से ही किया जाना है।मजदूरी 17 रुपएतारानगर के राजपुरा के हिमताणा जोहड़ पर खुदाई में लगे श्रमिकों को फरवरी में 17 रुपए प्रतिदिन मजदूरी मिली है। श्रमिकों ने मजदूरी लेने से इनकार कर विरोध में पंचायत समिति कार्यालय पहुंचकर जेईएन का घेराव किया। इससे पहले सुजानगढ़ के गांवों में श्रमिकों को दस रुपए से भी कम मजदूरी का भुगतान किए जाने की शिकायतें मिली थी।श्रमिक बेराजगारवर्ष 2008-09 की स्वीकृत कार्य पूरे होने से सरदारशहर तहसील के पिचकराई ताल में 15 फरवरी से नरेगा कार्य बंद। ऐसे में सैकड़ों लोग बेरोजगार हो गए। नरेगा कार्य शुरू करवाने के लिए ग्रामीण पंचायत समिति मुख्यालय पर धरना देने की चेतावनी दी है।फैक्ट फाइल-8 हजार 392 कार्यों के प्रस्ताव मिले-1 हजार 313 कार्य पूरे-2 हजार 45 कार्य जारी-5 हजार 34 काम नहीं हुए शुरू-2 लाख 20 हजार 200 बने जॉबकार्ड-10 माह में 382 से अधिक शिकायत-33 हजार 366 श्रमिकों का नहीं खुला खाता-32 हजार 833 श्रमिक हुए बेरोजगारआगे पढ़ें...
प्रस्तुतकर्ता विश्वनाथ सैनी
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लेबल: मिले रोजगार तो बदले तस्वीर-2
Thursday, February 19, 2009
खेती नहीं फायदे का सौदा
थळी अंचल में मेहनतकश लोगों की कमी नहीं है मगर रोजगार के साधन अंगुलियों पर गिने जा सकते हैं। उपलब्ध रोजगार के साधनों में से अधिकांश की स्थिति दयनीय है। ऐसे में जिले की आबादी के एक बड़े हिस्से के सामने पेट भरने का संकट उत्पन्न हो गया है। समस्या के प्रति न सरकार गंभीर है ना ही जनप्रतिनिधि। रोजगार के लिहाज से महत्वपूर्ण कृषि, उद्योग, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना व पलायन की राह में आ रही समस्याओं को उजागर करती समाचार श्रंखला की पहली रिपोर्ट।न अधिकारी चिन्तित ना राजनेताओं को परवाहविश्वनाथ सैनीचूरू, 19 फरवरी। जिले का कृषि क्षेत्र लोगों को रोजगार मुहैया करवाने में नाकारा साबित हो रहा है। करीब 13 लाख से अधिक हैक्टेयर में फैले कृषि क्षेत्र में जहां भौगोलिक परिस्थितियां लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर रही हैं वहीं सरकार की अनदेखी भी इस क्षेत्र को रोजगार विहीन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। स्टाफ के नाम पर गिनती के कर्मचारियों की बदौलत कृषि विभाग चाहकर भी किसानों का मददगार नहीं बन पा रहा है। स्टाफ की कमी के चलते अधिकांश योजनाएं विभाग की फाइलों से ही बाहर नहीं निकल पाती हैं। ऐसे में ना तो किसानों को खेतों में योजना का लाभ मिल पाता और ना ही लोगों को रोजगार उपलब्ध हो पा रहा। जिले के करीब ढाई लाख से अधिक किसानों के सामने कृषि क्षेत्र की मौजूदा स्थिति अखरने वाली है। विभाग को दरकारकृषि अधिकारियों के अनुसार जिले में करीब 27 सहायक कृषि अधिकारी, 180 कृषि पर्यवेक्षक व कम से कम प्रत्येक पंचायत समिति सहायक निदेशक (कृषि विस्तार) की दरकार है। जिले में सहायक कृषि अधिकारी के पांच पद स्वीकृत हैं। फिलहाल सभी पद खाली हैं। कृषि पर्यवेक्षक के स्वीकृति नौ पदों में तीन खाली चल रहे हैं। पडौसी जिले श्रीगंगानगर, नागौर, झुंझुनूं, सीकर, हनुमानगढ़ के कृषि स्टाफ की तुलना में चूरू जिले में स्टाफ की स्थिति ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।उम्मीदों पर पानीजिले की भौगोलिक परिस्थितियां भी कृषि क्षेत्र में रोजगार की दृष्टि से अनुकूल नहीं है। कृषि से रोजगार मिलने की संभावना पर पिछले दिनों हुई ओलावृष्टि के बाद एक बड़े क्षेत्र में पूरी तरह पानी फिर चुका है। प्रतिकूल मौसम के चलते कड़ाके की सर्दी और झुलसा देने वाली गर्मी भी प्राय: प्रतिवर्ष किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर देती है। अंचल में गर्मियों में अधिकतम तापमान 50 तथा सर्दियों में न्यूनतम तापमान शून्य से 4.6 डिग्री सैल्शियस नीचे तक रिकॉर्ड किया गया है। हाल ही में ओलावृष्टि से रबी की अधिकांश फसलें तबाह हो गई हैं। जिले के अकेले राजगढ़ इलाके के 21 गांवों में 75 फीसदी तक नुकसान आंका गया है।-- फैक्ट फाइल--> कृषि भूमि-13 लाख 85 हजार हैक्टेयर> सिंचित-85 हजार हैक्टेयर> असिंचित-13 लाख हैक्टेयर> कुल किसान-ढाई लाख से अधिक>कृषि तकनीकी स्टाफ-12 व्यक्ति____स्टाफ बढऩे से सरकारी योजनाओं की जानकारी किसानों तक तत्काल पहुंचाने में मदद मिलेगी साथ ही योजनाओं का लाभ उठाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित भी किया जा सकेगा। ऐसे में निश्चित रूप से जिले के कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।-भंवरसिंह राठौड़, उपनिदेशक, कृषि विभाग, चूरू आगे पढ़ें...
प्रस्तुतकर्ता विश्वनाथ सैनी
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लेबल: मिले रोजगार तो बदले तस्वीर-1
पानी न बन जाए कहानी
विश्व भू-जल दिवस आजभू-जल का अत्यधिक दोहन व पानी बचाने के प्रति जागरूकता के अभाव के कारण जिले का भू-जल स्तर रसातल में जा चुका है। स्थिति ये है कि भू-जल स्तर के लगातार गिरने से पीने योग्य पानी रासायनिक गुणवत्ता की कसौटी पर खरा नहीं उतर रहा है। बरसात के पानी की बूंद-बूंद नहीं बचाई गई तो वो दिन दूर नहीं जब जिलेवासी पीने के पानी के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हो जाएंगे। चूरू, 9 जूनपानी के अंधाधुंध दोहन के चलते जिले में भू-जल स्तर में निरंतर गिरावट दर्ज की जा रही है जिससे कुओं की जल देय क्षमता पर विपरीत असर पड़ा है। भू-जल विभाग के सर्वे के मुताबिक जिले में भू-जल दोहन में राजगढ़ तहसील की स्थिति सबसे खतरनाक है। भू-जल दोहन में चूरू, सरदारशहर व रतनगढ़ तहसील की स्थिति वर्ष 2006 में वर्षा पूर्व हुए सर्वे के मुताबिक तो संतोषजनक है। पानी के संरक्षण व अनावश्यक दोहन के प्रति जागरूकता नहीं आई तो जिले में पानी एक दिन कहानी बनकर रह जाएगा।कारण- बढ़ती जनसंख्या- अनियंत्रित दोहन- बारिश कम होना- जल की अधिक खपत वाली फसलों का उत्पादन- परम्परात जल स्रोत पर ध्यान नहींसमस्याएं- भू-जल स्तर रसातल में जाएगा- भू-जल संसाधनों में कमी- सूख जाएंगे कुएं-बावड़ी- भू-जल की गुणवत्ता में गिरावट- भू-जल दोहन के लिए ऊर्जा की अधिक खपतउपाय- जल संरक्षण के परम्परागत स्रोतों की सुध लें- बारिश के पानी की बूंद-बूंद बचाएं- पानी का व्यर्थ उपयोग न हो- सिंचाई में आधुनिक तकनीक का उपयोग- कम पानी में होने वाली फसलों को बढ़ावाऐसे घटा भू-जल स्तरतहसील पुनर्भरण---उपलब्धता--- दोहनराजगढ़ 6.4------5.7------ 25.2सुजानगढ़ 37.16---33.44---- 32.56 रतनगढ़ 26.93----24.90---- 14.57सरदारशहर62.26---56.04---- 16.18 चूरू----9.79-----8.81-----7.82(आंकड़े भू-जल सम्भावित क्षेत्रों में वार्षिक पुनर्भरण और दोहन से संबंधित हैं। सभी आंकड़े एमसीएम इकाई में हैं)गांवों में स्थिति खतरनाकजिले की प्रत्येक तहसील में कुछ गांवों में भू-जल स्तर गिरने की स्थिति खतरनाक है। भू-जल स्तर में अधिक गिरावट वाले गांवों में कुओं की जलदेय क्षमता भी कम होती जा रही है।तहसील---गांव----स्तर गिराचूरू-----41-----0.33 मीटरराजगढ़---38----1.06 मीटरसुजानगढ़--21----2.36 मीटररतनगढ़--35-----0.42 मीटरसरदारशहर--06---1.42 मीटर(आंकड़े 2005 से 2006 की अवधि में ऐसे गांवों के हैं जिनमें सबसे अधिक मीटर भू-जल स्तर गिरा है। )कहां-कितनी गिरावटवर्ष 1984 से 2006 की अवधि में चूरू तहसील के भू-जल स्तर में 0.13 मीटर, सुजानगढ़ तहसील में 4.08, राजगढ़ तहसील में 4.18 व रतनगढ़ में 2.10 मीटर औसत गिरावट दर्ज की गई है। इस अवधि में तारानगर तहसील में भू-जल स्तर बढ़ा है। तारानगर तहसील का अधिकांश भू-जल लवणीय होने के कारण दोहन की दर लगभग शून्य है।इनका कहना...निश्चित रूप से जिले में भू-जल स्तर की स्थिति चिंताजनक है। हर साल जिले में भू-जल स्तर गिरता जा रहा है। पानी के संरक्षण को बढ़ावा नहीं दिया गया तो कुछ सालों में स्थिति ज्यादा खतरनाक हो सकती है।- लक्ष्मण सिंह राठौड़, भू-जल वैज्ञानिक, चूरू---विश्वनाथ सैनीआगे पढ़ें...
प्रस्तुतकर्ता विश्वनाथ सैनी
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Saturday, February 14, 2009
धरती पुत्रों को मिलेगी कृषक रत्न उपाघि
चूरू। सोना उगाने वाले प्रदेश के किसानों को राज्य सरकार ने तीन प्रकार की उपाघि से अलंकृत करने की तैयारी शुरू कर दी है। एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी (आत्मा) के माध्यम से किसानों को नकद पुरस्कार के साथ-साथ कृषक रत्न, कृषक श्री और कृषक मित्र की उपाघि से नवाजा जाएगा।कृषि निदेशालय ने जिले से सम्मानित होने योग्य किसानों की सूची मांगी है। सूची के आधार पर प्रदेश के तीन किसानों को कृषक रत्न, प्रत्येक जिले के तीन किसानों को कृषक श्री और प्रदेश की प्रत्येक पंचायत समिति के तीन किसानों को कृषक मित्र की उपाघि से सम्मानित किया जाएगा।समिति करेगी चयनजिला आत्मा प्रबंधन समिति प्रत्येक पंचायत समिति में चार-चार किसानों का पुरस्कार के लिए चयन करेगी। चयन में जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर पूर्व में सम्मानित हो चुके किसानों को प्राथमिकता दी जाएगी। चयनित सूची का जिला कलक्टर एवं जिला प्रमुख से अनुमोदन करवाकर एक किसान का नाम कृषि निदेशालय को राज्य स्तरीय पुरस्कार के लिए भेजा जाएगा। कृषक रत्न पुरस्कार प्राप्त करने वाले किसान के अलावा पुरस्कार के लिए जिले के शेष किसानों के नामों की घोषणा जिला स्तर पर की जाएगी।विशेष दक्षता जरूरीपुरस्कार की दौड में शामिल होने के लिए किसानों का कृषि, उद्यान, डेयरी व पशुपालन में से किसी एक में दक्ष होना जरूरी है। कृषि क्षेत्र से खेती के 21 मूलमंत्रों की पालना करते हुए गुणवत्तायुक्त उत्पादन लेने वाले, उद्यान क्षेत्र से हाइटेक उद्यानिकी व माइक्रो इरिगेशन से सिंचाई तथा पशुपालन क्षेत्र से उन्नत नस्ल के पशु रखने, पशुओं के नियमित टीकाकरण, संतुलित आहार, कृत्रिम गर्भाधान पर विशेष्ा ध्यान देने वाले किसानों को चयन प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा।अघिक अंक वाला होगा हकदारपुरस्कार का हकदार वही किसान होगा जो चयन प्रक्रिया में शामिल किसानों में सबसे अघिक अंक हासिल करेगा। प्रत्येक किसान को कुल उत्पादन के 20 अंक, उत्पादन की गुणवत्ता के 20 अंक, आधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल करने के 40 अंक तथा नवाचार के 20 अंक दिए जाएंगे।पुरस्कार की राशिकृषक रत्न, कृषक श्री और कृषक मित्र प्राप्त करने वाले प्रत्येक किसान को प्रशस्ति पत्र के साथ क्रमश: 21, 11 व पांच हजार का नकद पुरस्कार प्रदान किया जाएगा।किसानों को उपाधि से अलंकृत करने की इस अनूठी योजना के तहत आत्मा के परियोजना निदेशकों को मार्च तक किसानों की सूची भेजने के निर्देश दिए हैं। सूची प्राप्त होने के बाद सम्मान समारोह की तिथि तय की जाएगी।-हरवंश यादव, अतिरिक्त निदेशक (कृषि विस्तार), कृषि निदेशालय, जयपुरयोजना से किसान प्रोत्साहित होंगे। कृषि निदेशालय के निर्देश पर पंचायत समितिवार किसानों की सूची तैयार की जा रही है।-हरजीराम बारूपाल, परियोजना निदेशक, आत्मा, चूरूआगे पढ़ें...
प्रस्तुतकर्ता विश्वनाथ सैनी
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Friday, February 6, 2009
विद्यार्थी होंगे फेल, कौन कसेगा नकेल !
चूरू। जिले के ढाई सौ से अघिक सरकारी विद्यालयों में व्यवस्थाएं नियंत्रण से बाहर है। संस्था प्रधान की कुर्सी खाली होने के कारण इनमें विद्यार्थियों की पढाई और शिक्षकों के आने-जाने पर नियंत्रण नहीं है। माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक विद्यालयों की तुलना में उच्च प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति ज्यादा खराब है। संस्था प्रधान के खाली पदों की लम्बी फेहरिस्त आठवीं तक के विद्यालयों में है। शिक्षा विभाग के आंकडों की मानें तो जिले के 767 उच्च प्राथमिक विद्यालयों में से 217 व तीन सौ नौ माध्यमिक विद्यालयों में से दस तथा एक सौ सात उच्च माध्यमिक विद्यालयों में से 26 में संस्था प्रधान नहीं है।आसान नहीं नियंत्रण रखनाआठवीं तक के विद्यालयों में संस्था प्रधान की जिम्मेदारी तृतीय श्रेणी के सीनियर शिक्षक को सौंपी जाती है। अस्थायी तौर पर हैडमास्टर बने तृतीय श्रेणी शिक्षक के लिए समान गे्रड के अन्य शिक्षकों पर नियंत्रण रखा पाना आसान नहीं है।वित्तीय मामलों में भी देरीमाध्यमिक विद्यालयों में संस्था प्रधान का पद रिक्त होने के कारण प्रशासनिक जिम्मेदारी द्वितीय श्रेणी शिक्षक एवं वित्तीय अघिकार जिला शिक्षा अघिकारी को सौंपे जाते हैं। उच्च माध्यमिक विद्यालयों में वित्तीय अघिकार सीनियर व्याख्याता को सौंपने की प्रक्रिया में दो माह से अघिक समय लग जाता है। ऎसे में बिना संस्था प्रधान वाले विद्यालयों के वित्तीय मामलों में अक्सर देरी हो जाती है।माध्यमिक विद्यालयजिले में माध्यमिक स्तर तक के 309 विद्यालय हैं। इनमें से मंदीताल, साण्डवा, ईयारा, सारसर, पांचेरा, बरजांगसर, पिचकराईताल, लुहारा, न्यांगल छोटी और बूंटिया के विद्यालय में संस्था प्रधान का पद खाली है।उ.मा. विद्यालयजिले में उच्च माध्यमिक स्तर के 107 विद्यालय हैं। इनमें सिधमुख, सरदारशहर, मालकसर, सुजानगढ, बालरासर आथूना, भामासी, जोडी, रतनगढ, पडिहारा, बीरमसर, जयसंगसर, राघाबडी, हरासर, सिरसला, धीरवासबडा, भगेला, लाखाऊ, मेणासर, पाबूसर, सोनपालसर, भींवसर, चक राजियासर मीठा, खण्डवा, बंधानाऊ, नुहंद व रेडी भूरावास विद्यालय में संस्था प्रधान नहीं है।घर का मालिक नहीं होगा तो व्यवस्था तो गडबडाएगी ही। सेवानिवृति व तबादले के कारण कई स्कूलों में संस्था प्रधान का पद रिक्त है।
-गजेन्द्र सिंह शेखावत, जिला शिक्षा अघिकारी (माध्यमिक), चूरू
अनेक स्कूलों की यह मुख्य समस्या है। हम वर्षों से इसका सामना कर रहे हैं। निदेशालय ने संस्था प्रधान की समस्त जिम्मेदारी बीईईओ को सौंप रखी है।
-हरनारायण, जिला शिक्षा अघिकारी (प्रारम्भिक), चूरूआगे पढ़ें...
प्रस्तुतकर्ता विश्वनाथ सैनी
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March 2009 January 2009 Home
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