रामलीला के पात्रों की असल जिंदगी
चूरू, 23 सितम्बर। संवाद कौशल और अभिनय कला के बूते रंगमंच पर रामायण के पात्रों का जीवंत चित्रण कर लोगों का विशुद्ध मनोरंजन एवं ज्ञानवद्र्धन करने वाले रंगकर्मियों के लिए दर्शकों से मिलने वाली दाद और वाह-वाही भले ही दम तोड़ती नाट्यविधा के लिए संजीवनी बूटी का सा काम करती हो, तालियों की गडग़ड़ाहट सुन इन कलाकारों का मन मयूर नाचने लगता हो और थकान दूर हो जाती हो। किसी की शाबासी या आलिंगन उनके लिए वरदान बन जाता हो। लेकिन सच्चाई यह नहीं है। इन कलाकारों की असल जिंदगी इतनी सुनहरी और रूपहली कतई नहीं है। असल जिंदगी बड़ी ही जटिल, मेहनतकश और दुविधाओं से परिपूर्ण है। चेहरे पर हास्य का भाव है और दिल के किसी कोने में गम और दर्द की टीस छिपी है। महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक मंदी से जूझते हालातों में पारिवारिक रिश्ते और सामाजिक समरसता बनाए रखना इनके लिए भी आम जन की तरह ही मुश्किल है।मर्यादा पुरुषोत्तम राम, महाप्रतापी और आज्ञाकारी लक्ष्मण, धरती पुत्री व पतिव्रता सीता तथा महान पंडि़त, तंत्र-मंत्र-यंत्र के ज्ञाता और तपस्वी अहंकारी रावण जैसे पात्रों को रंगमंच पर अपने अभिनय से जीवंत बना देने वाले इन कलाकारों की असल जिंदगी को पत्रिका ने लोको स्थित हनुमान कला मंच की ओर से मंचित रामलीला के पात्रों में खोजा तो पाया।
हनुमानजी चार बच्चों के पिता
पवन पुत्र एवं बाल ब्रह्मचारी वीर हनुमान की भूमिका निभाने वाले श्रवण कुमार चार बच्चों के पिता हैं। पेशे से फार्मासिस्ट श्रवण पुत्र मोह में परिवार नियोजन नहीं अपना पाए। वैसे रामलीला के पात्र के रूप में भगवान श्रीराम की आज्ञा पर संजीवनी बूंटी के लिए औषधियों से भरा पहाड़ हाथ पर उठाकर लाने वाले श्रवण हारी-बीमारी में परिवारजनों के उपचार के लिए महंगाई से हार जाते हैं।
सीता को डांटते हैं लक्ष्मण
रामायण के पात्र के रूप में भाभी सीता को मां से भी बढ़कर मानने वाले लक्ष्मण (नंदकिशोर बरोड़) असल जिंदगी में पेशे से शिक्षक हैं। मजे की बात है कि रामलीला में सीता बने (पृथ्वी सिंह) उनकी स्कूल में पढ़ते हैं। शिष्य होने के नाते स्कूलमें कभी-कभी गुरुजी की डांट भी सुननी पड़ती है तो मार भी खानी पड़ती है।
श्रीराम की शिष्य है सीता
रामलीला के मंच पर भरे स्वयंवर में भगवान श्रीराम के गले में वर माला डाल कर उनसे परिणयसूत्र में बंधने वाली सीता असल जिंदगी में रामजी का ही शिष्य है। सीता की भूमिका निभा रहे पृथ्वीसिंह का कहना है कि मंच पर उनके पति मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम असल जिंदगी में भी उनके लिए वंदनीय एवं पूजनीय हैं। दरअसल भगवान श्रीराम की भूमिका निभा रहे घनश्याम पेशे से शिक्षक हैं और वे पृथ्वी सिंह को स्कूल में पढ़ाते भी हैं।
हंसी में छुपा गम
चेहरे के हाव-भाव और संवादों से दर्शकों को सबसे अधिक गुदगुदाने वाले हास्य कलाकार (प्रदीप कुमार) की जिंदगी में अन्य कलाकारों की तुलना में सबसे अधिक गम है। डेढ़ माह पहले ही उनकी माता का निधन हुआ। उनके पित तो उन्हें इससे पहले ही छोड़ गए। दिल के किसी कोने में उनके लिए गम और दर्द बसा होने के बावजूद इस हास्य कलाकार ने उसे कभी चेहरे पर झलकने नहीं दिया।
राम जी को चाहिए लव-कुश
महर्षि वशिष्ट के गुरुकुल में रहकर शिक्षा पाने वाले भगवान श्रीराम की भूमिका निभा रहे घनश्याम दत्त असल जिंदगी में भी गुणी, ज्ञानी, अनुशासित और आज्ञावान हैं। बीएससी, बीएड तक शिक्षा ग्रहण करने वाले घनश्याम घर में भी मर्यादित व्यवहार करते हैं। श्रीराम जी बने घनश्याम की अब एक ही मुराद है वे असल जिंदगी में भी लव-कुश के पिता बने।
रफीक है महापंडि़त रावण
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