Tuesday, December 14, 2010

प्रशासन तक होगी सीधी पहुंच

'सुगम' करेगा राह आसान : जिला और तहसील मुख्यालयों पर बनेंगे सुगम सेंटर
चूरू। प्रदेश में जाति प्रमाण पत्र बनवाने से लेकर हथियार लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाले लोगों तक को अब अधिकारी और कर्मचारियों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। जन-जन की यह परेशानी सुगम प्रोजेक्ट दूर करेगा। प्रोजेक्ट के तहत प्रदेश के जिला और तहसील स्तर पर एक-एक सुगम सेंटर खोला जाएगा। सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार विभाग ने सेंटर शुरू करने की अंतिम तिथि 31 मार्च 2011 निर्धारित की है। सेंटर पर कम्प्यूटर, प्रिंटर, स्केनर व विभिन्न प्रमाण पत्र के आवेदन फार्म उपलब्ध कराए जाएंगे। सब कुछ योजनानुसार हुआ तो आमजन की न केवल प्रशासन तक पहुंच आसान होगी बल्कि प्रमाण पत्र बनवाने में लगने वाला समय और अनावश्यक खर्च भी बचाया जा सकेगा।

प्रारूप पर नहीं उठेगी अंगुली
सुगम सेंटर शुरू होने के बाद प्रदेशभर में जाति, मूल निवास व आय समेत अनेक प्रमाण पत्र का स्टैण्डर्ड प्रारूप तय हो जाएगा। जिससे नौकरी के दौरान या अन्य कभी आवश्यकता पडऩे पर प्रमाण पत्र के प्रारूप पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकेगा। साथ ही फर्जी प्रमाण पत्र बनवाने पर भी काफी हद तक अंकुश लगेगा। फिलहाल प्रदेशभर में प्रमाण पत्रों के अलग-
अलग प्रारूप प्रचलित हैं।

जाति नहीं करा सकेगी गड़बड़ी
सुगम सेंटर पर उपलब्ध 'सुगम सॉफ्टवेयरÓ में एससी, एसटी व ओबीसी वर्ग में भारत सरकार की ओर से निर्धारित जाति एवं उनकी उप जाति की सूची फीड रहेगी। प्रमाण पत्र बनवाते समय किसी जाति विशेष के वर्ग को लेकर विवाद होने पर सूची में मिलान किया जा सकेगा। इससे गलत जाति का प्रमाण पत्र बनवाने की संभावना पूरी तरह समाप्त हो जाएगी। वर्तमान में किसी वर्ग विशेष में शामिल जाति का मिलान करने के लिए कार्मिकों को काफी समय खपाना पड़ता है।

ऐसे होगा आवेदन, यूं मिलेगा प्रमाण पत्र
आवेदक को सेंटर से फार्म लेना होगा। जिस पर फार्म के साथ संलग्र किए जाने वाले अन्य दस्तावेजों की सूची भी रहेगी। फार्म जमा कराने पर आवेदक को जमा की रसीद या नम्बर देने के साथ ही भविष्य में सेंटर पर आकर प्रमाण पत्र प्राप्त का दिन और समय भी बताया जाएगा। प्रमाण पत्र पर संबंधित अधिकारियों के हस्ताक्षर एवं मोहर लगवाने का काम सेंटर अपने स्तर पर पूरा करेगा।
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प्रदेश के एकाध जिले में सुगम प्रोजेक्ट चल रहा है, मगर तहसील स्तर पर सेंटर पहली बार बना रहे हैं। जिला कलक्टरों को इस संबंध में दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं। जाति, मूल निवास, राशन कार्ड व लाइसेंस बनवाने समेत अनेक सुविधाएं सेंटर पर उपलब्ध करवाई जाएगी। जिला कलक्टर स्व विवेक से सेंटर पर अन्य सुविधाएं बढ़ा भी सकेंगे।
-संजय मलहोत्रा, सचिव व आयुक्त
सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार विभाग


जिला व तहसील स्तर पर सुगम सेंटर स्थापित करने के लिए कार्य शुरू कर दिया है। एक अप्रेल से हर हाल में लोगों को इनका लाभ मिलने लगेगा। सेंटर से संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। फिलहाल भवन की तलाश व अन्य संसाधन जुटाए जा रहे हैं।
-विकास एस भाले, जिला कलक्टर, चूरू

Tuesday, December 7, 2010

कल्याण की राह में अधिकारी रोड़ा

झण्डा दिवस के ध्वज व स्टीकरों के लाखों बकाया
चूरू। शहीदों की शहादत पर गर्व महसूस करने वाले अधिकारी ही उनके परिवार और आश्रितों के कल्याण की राह में बाधा बने हुए हैं। बात भले ही गले नहीं उतर रही हो, परन्तु सरकारी कार्यालयों में धूल फांकते सशस्त्र सेना झण्डा दिवस के स्टीकर और ध्वज देख इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। आलम यह है कि अधिकांश अधिकारी शहीदों के आश्रितों को संभल प्रदान करने मेंं कतई गंभीर नहीं है। झण्डा दिवस के मौके पर पत्रिका टीम ने जिला सैनिक कल्याण अधिकारी कार्यालय के रिकॉर्ड खंगाले तब अधिकारियों का यह दूसरा चेहरा सामने आया।
जिलेभर में 63 अधिकारी शहीदों के आश्रितों के कल्याण के 11 लाख 62 हजार 750 रुपयों पर कुंडली मारे बैठे हैं। अधिकारियों को इस राशि के स्टीकर और ध्वज 1996 से 2009 के दौरान वितरित किए गए थे। ऐसे में अधिकारियों के भरोसे शहीदों के परिवारों का मनोबल बढ़ाने की सोचना बेमानी होगा। हालांकि प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी जिलेभर के 96 अधिकारियों को 100 से 6000 स्टीकर व ध्वज वितरित किए जाएंगे। लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ अगर कोई कदम नहीं उठाया गया तो इस साल के स्टीकरों और ध्वज को भी सरकारी कार्यालयों में धूल फांकने में देर नहीं लगेगी।

बढ़ता बकाया का आंकड़ा
वर्ष ------बकाया
1996------ 2000
1997------ 2000
1998------ 500
1999------ 2300
2000------ 1200
2001------ 400
2003------ 13000
2004------ 3000
2005------ 5700
2006------ 26920
2007------ 43600
2008------ 476800
2009------ 585330
कुल------ 11,62,750

सर्वाधिक लापरवाह डीटीओ
कल्याण की राह में रोड़ा बनने वाले अधिकारियों में बकाया के लिहाज से जिला परिवहन अधिकारी पहले पायदान पर हैं। डीटीओ पर वर्ष 2008 के एक लाख 97 हजार रुपए तथा वर्ष 2009 के दो लाख 25 हजार रुपए बकाया हैं। पीएचईडी के एसई व एसपी पर बकाया का आंकड़ा एक लाख को पार कर चुका है। बकाया के मामले में अन्य अधिकारियों की स्थिति भी ज्यादा अच्छी नहीं है।

क्या झण्डा दिवस
देश की आन, बान और शान के लिए जान की बाजी लगाने वाले शहीद की याद और सेवारत सैनिकों के साथ राष्ट्र की एकजुटता दर्शाने के उदे्श्य से प्रतिवर्ष सात दिसम्बर को देशभर में झण्डा दिवस मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न विभागों को विशेष प्रकार के ध्वज व स्टीकर वितरित किए जाते हैं। जिन्हें वाहनों पर लगाकर या जन समूह को वितरित कर राशि जुटाई जाती है। यह राशि जिला सैनिक कल्याण कार्यालय के माध्यम से अमल गमैटेड फण्ड में भेजी जाती है। जिसका उपयोग युद्ध विकलांग एवं शहीदों के परिवारों का पुर्नवास, सेवानिवृत व सेवारत सैनिकों एवं उनके परिवारों के लिए संचालित कल्याणकारी योजनाओं में किया जाता है।

यूं जमा होगी राशि
इस वर्ष प्रति स्टीकर दस रुपए तथा प्रति वाहन पताका (ध्वज) पचास रुपए निर्धारित किए गए हैं। स्टीकर व ध्वज से एकत्रित की गई राशि अधिकारियों को नकद, ड्राफ्ट या चेक के माध्यम से जिला सैनिक कल्याण अधिकारी कार्यालय में जनवरी तक जमा करानी होगी।

अधिकारियों के वेतन में से काटेंगेइस वर्ष स्टीकर एवं ध्वज का वितरण करने के एक माह ही इसकी समीक्षा की जाएगी। वर्षों पुराने बकाया की भरपाई संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतन में से काटकर करेंगे। इस बार बचे हुए स्टीकर व ध्वज को कार्यालय में रखने की बजाय सैनिक कल्याण अधिकारी कार्यालय वापस लौटा देंगे।
-विकास एस भाले, जिला कलक्टर एवं जिला सैनिक बोर्ड के अध्यक्ष, चूरू

Monday, December 6, 2010

घर छोटा परिवार बढ़ा

क्षमता से दोगुने अधिक हिरण करते विचरण
चूरू। काले हिरणों के विश्व प्रसिद्ध तालछापर अभयारण्य वर्षों से अपने विस्तार को तरस रहा है। अभयारण्य में हिरणों का कुनबा लगातार बढ़ता जा रहा है, मगर क्षेत्रफल जस का तस है। स्थिति यह है कि यहां पर हिरणों की संख्या क्षमता से दोगुनी अधिक है। यही वजह है कि भोजन तलाश एवं स्वच्छंद विचरण के लिए अभयारण्य सीमा से बाहर निकलकर कई हिरण अकाल मौत का शिकार हो रहे हैं। वन विभाग पिछले तीन वर्ष से अभयारण्य के विस्तार का प्रयास कर रहा है, परन्तु प्रशासनिक शिथिलता और राज्य सरकार की अनदेखी के चलते योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है। जिम्मेदार जनप्रतिनिधि भी इस कार्य में रुचि लेते नहीं दिख रहे हैं।
वन विभाग अभयारण्य की दक्षिणी-पश्चिमी से सटी से सरकारी भूमि को अभयारण्य में मिलाकर इसके विस्तार का प्रयास कर रहा है। लगभग चार सौ हैक्टेयर में फैली इस भूमि पर नमक की 34 इकाइयां स्थापित हैं। इनमें से 10 इकाइयों के पट्टे निरस्त कर दिए गए हैं जबकि दो इकाइयां बंद हैं। अभयारण्य के विकास को लेकर होने वाली बैठकों में यह मुद्दा प्रमुखता से उठाया जाता रहा है। इस साल 24 जून को जिला कलक्टर की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में जिला उद्योग केन्द्र के महाप्रबंधक नमक की आठ इकाइयों की भूमि, जिस पर कोई नहीं की वजह से वन विभाग को सौंपे जाने की सहमति जता चुके हैं। इसी बैठक में सुजानगढ़ के तहसीलदार ने अभयारण्य के विस्तार के लिए नमक की शेष इकाइयों के पट्टों का नवीनीकरण रोकने तथा पट्टाधारियों को नावा या अन्यत्र क्षेत्र में स्थानांनतरित करने का सुझाव दिया था। आधिकारिक सूत्रों की मानें तो अभयारण्य के विस्तार का प्रस्ताव और नमक इकाइयों के सर्वे की रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी हुई है। लेकिन सरकार अभी तक इस मुदद्े को गंभीरता से नहीं लिया है।

यूं बढ़ेगा क्षेत्रफल
तालछापर अभयारण्य 719 हैक्टेयर में फैला हुआ है। नमक इकाइयों की लगभग 16 सौ बीघा भूमि मिलने पर अभयारण्य का क्षेत्रफल तकरीबन चार सौ हैक्टेयर बढ़कर एक हजार 119 हैक्टेयर हो सकता है। वन विशेषज्ञों के मुताबिक एक हिरण को स्वच्छंद विचरण करने के लिए करीब एक हैक्टेयर क्षेत्रफल की आश्यकता होती है। हालांकि इस लिहाज यह क्षेत्रफल भी पर्याप्त नहीं कहा जा सकता।

इसलिए विस्तार जरूरी
-हिरणों को स्वच्छंद विचरण के लिए मिलेगा अधिक क्षेत्र।
-चारागाह विकसित कर प्राकृतिक चारे की कमी दूरी होगी।
-मीठे पानी के जलस्रोतों की संख्या में होगा इजाफा।
-हिरणों का नमक इकाइयों के गड्ढ़ों में गिरना बंद होगा।
-आवारा कुत्तों व शिकारियों से अधिक सुरक्षित होंगे हिरण।

साल दर साल बढ़ते हिरण
चूरू जिले की सुजानगढ़ तहसील के छापर कस्बे में स्थित अभयारण्य में हिरणों का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है। अपे्रल 2010 में की गई वन्यजीव गणना के मुताबिक अभयारण्य में हिरणों की संख्या एक हजार 910 से बढ़कर दो हजार 25 हो गई है। हिरणों की संख्या अधिक बढ़ सकती थी, मगर बीते दो वर्ष के दौरान तेज अंधड़ व बारिश की वजह से तकरीबन सौ हिरण अकाल मौत का शिकार हो गए थे। अभयारण्य के विस्तार की आवश्यकता सात-आठ वर्ष पूर्व ही महसूस की जाने लगी थी, परन्तु इस दिशा में तीन वर्ष पूर्व कदम बढ़ाए गए हैं।

जसवंतगढ़ में भी तलाशी जगह
हिरणों की संख्या बढऩे के साथ-साथ अभयारण्य के विस्तार का दबाव भी बढ़ता जा रहा है। ्रऐसे में वन विभाग ने नागौर जिले की लाडऩूं तहसील के जसवंतगढ़ कस्बे में हिरणों के लिए अनुकूल जगह तलाशी है। यहां पर तकरीबन पांच सौ हिरण स्थानांनतरित करने की योजना पर विचार किया जा रहा है, लेकिन वहां भारी मात्रा में जूली फ्लोरा होना योजना की राह में
सबसे बड़ी बाधा है।

कुरजां भी हैं पहचान
तालछापर में काले हिरणों के अलावा कुरजां, जंगली बिल्ली, मरु लोमड़ी, साण्डा, गिद्धसमेत अन्य कई वन्यजीव पाए जाते हैं। सात समंदर पार से हर साल सैकड़ों की संख्या में आने वाली कुरजां भी अभयारण्य की पहचान हैं। कुरजां यहां पर अक्टूबर-मार्च तक शीतकालीन प्रवास करती हैं। इस वर्ष अभयारण्य में विश्व स्तर पर संकटग्रस्त पक्षी सोशिएबल लैप विंग भी नजर आया था।

इनका कहना है...
तालछापर में हिरणों की संख्या क्षमता से अधिक हो जाने के कारण गत तीन वर्ष से इसके विस्तार का प्रयास कर रहे हैं, मगर अभी तक सफलता नहीं मिली है। अभयारण्य के पास स्थित सरकारी भूमि को अधिगृहित करने के मामले के निर्णय राज्य सरकार के स्तर पर होना है। जिला प्रशासन, जिला उद्योग केन्द्र व राज्य सरकार को समय-समय पर पत्र लिखते रहते हैं, मगर अभयारण्य का विस्तार कब होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। इसके अलावा लाडनूं के जसवंतगढ़ के पास हिरणों के लिए अनुकूल जगह तलाशी है।
-केसी शर्मा, उप वन संरक्षक, चूरू

नमक इकाइयों का सर्वे करके रिपोर्ट विभाग के उच्चाधिकारियों को सौंप दी है। कुल 34 इकाइयों में से 22 कार्यरत हैं। कइयों के मामले न्यायालय में विचारधीन हैं। उक्त भूमि को अभयारण्य में मिलाए जाने का निर्णय उच्च स्तर पर होना है।
-जितेन्द्र सिंह शेखावत, जिला उद्योग अधिकारी, सुजानगढ़

Sunday, December 5, 2010

'खाकी' के सामने बेबस है 'करंट'

[ चौकी-थानों पर बढ़ता बकाया ] : बिल के नाम पर ठेंगा
चूरू.जिले में 'खाकी' का रौब विद्युत निगम पर भारी पड़ रहा है। किसी दिन बिजली की कटौती हो जाए तो 'खाकियों' का तत्काल टेलीफोन पहुंच जाता है, लेकिन बिल जमा करवाने की बारी हो तो खाकी 'ठेंगा' दिखाने से भी नहीं चूकते। विद्युत निगम के खिलाफ होने वाले आन्दोलन एवं धरने प्रदर्शन के दौरान पुलिस महकमे की जरूरत पडऩे के कारण विद्युत निगम के अभियंता भी इनके सामने बेबस नजर आते हैं। हालत यह है कि चूरू जिले व लाडनूं के 28थानों एवं चौकियों में फूंकी जाने वाली बिजली के बिलों के पेटे हर साल औसतन एक लाख रुपए बकाया हो जाता है। बिलों की बकाया राशि सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती जा रही हैं, वहीं विद्युत निगम इनके कनेक्शन काटने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहा है।
एक लाख हो गए दस लाख
सूचना का अधिकार कानून के तहत खुलासा हुआ है कि पुलिस महकमा बिजली के बिल चुकाने के प्रति गम्भीर नहीं है। महकमे पर जिले में बिजली बिलों के पेटे 2001 में करीब एक लाख 21 हजार रुपए बकाया थे। लेकिन बिल जमा नहीं करवाने से यह राशि अगस्त 2010 में बढ़कर 10 लाख 19 हजार के पार पहुंच गई।
आधा दर्जन के हालात खराब
जिले के आधा दर्जन थानों एवं चौकियों के बिलों के आंकड़े खुलासा करते हैं कि दस साल में अधिकांशतया इनका बिल नहीं चुकाया गया। राजगढ़ एवं छापर पुलिस थाने एवं साण्डवा पुलिस चौकी पर बकाया का आंकड़ा करीब डेढ़-डेढ़ लाख रुपए को पार कर गया है। राजगढ़ चौकी पर एक लाख 27 हजार 178 रुपए बकाया होने पर विद्युत कनेक्शन काट दिया गया। हालांकि बिल जमा करवाने के मामले में सभी जगह हालात एक जैसे नहीं है। सादुलपुर ग्रामीण, चूरू ग्रामीण और चूरू शहर पुलिस थाना ऐसे भी हैं, जिन पर बिजली बिल पेटे एक रुपया भी बकाया नहीं है।
जानते ही नहीं बिल चुकाना
थाना/चौकी-2001-----२०१०
साण्डवा---6703.76--1,63,481.45
राजगढ़----1541----1,61,259.64
छापर-----13609---1,49,781.20
विभाग का दावा, पुराना है बकाया
वर्तमान में बिजली के बिलों का नियमित रूप से भुगतान किया जा रहा है। पांच-सात साल पूर्व के कुछ बिल बकाया हैं। जिनका भुगतान करवाने का प्रयास कर रहे हंै। बजट के लिए मुख्यालय को लिखा गया है।
- अनिल कयाल, एएसपी, चूरू
क्या करें, पुलिसवाले जो हैं
थानों व चौकियों पर बिजली के बिलों की राशि लगातार बढ़ती जा रही है। बकाया वसूली के लिए बार-बार नोटिस जारी करते हैं। पुलिस विभाग के अधिकारी सुनवाई नहीं करते। आम उपभोक्ता का तो शीघ्र ही कनेक्शन काट देते हैं, लेकिन पुलिस के रौब के चलते कोई सख्त कदम नहीं उठा पाते हैं। गत एक दशक के दस लाख रुपए से अधिक बकाया हैं।
-के.एल. घुघरवाल, अधीक्षण अभियंता, जोधपुर विद्युत वितरण निगम, चूरू

Monday, November 29, 2010

पानी की चाबी अब 'टाइमर' के पास

चूरू। जिला मुख्यालय पर जन स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग (पीएचईडी) के माध्यम से आपूर्ति किए जा रहे पानी की चाबी अब डिजिटल टाइमर के पास होगी। पेयजल का समुचित वितरण और पानी के व्यर्थ बहाव पर लगाम कसने के लिए विभाग ने यह आधुनिक कदम उठाया है। इसके तहत विभाग ने शहर में स्थित अपने कुओं और नलकूपों पर डिजिटल टाइमर स्विच लगाना शुरू कर दिया है।

अत्याधुनिक तकनीकी से निर्मित टाइमर लगने के बाद कुएं और नलकूप अपने आप संचालित होंगे। इन्हें चालू या बंद करने के लिए ना तो पीएचईडी के कर्मचारियों को रातभर जगना पडेगा और ना ही घरों में रात को बिना आवश्यकता के जलापूर्ति होगी।

उपभोक्ताओं से पूछेंगे टाइम
शहर में पीएचईडी के लगभग सौ जलस्त्रोत संचालित हैं। स्टाफ की कमी या कार्मिकों की लापरवाही की वजह से अघिकांश जलस्त्रोत ना तो समय पर चालू हो पाते हैं ना ही बंद। कई जलस्त्रोत चौबीस घंटे चालू रहते हैं, जिनका पानी नलों के जरिए नालियों में व्यर्थ बह जाता है। विभागीय अभियंताओं की मानें तो जलस्त्रोत पर लगाए जाने वाले टाइमर में जलापूर्ति शुरू या बंद करने का समय उससे जुडे उपभोक्ताओं से राय-मशविरा करके सेट किया जाएगा। ताकि विभाग और उपभोक्ता के बीच तालमेल बना रहे।

यूं करता है काम
टाइमर की साइज मोबाइल से थोडी बडी है। इसेकुएं या नलकूप के पम्प को संचालित करने वाले पैनल बोर्ड के साथ लगाया जाएगा। जिससे पम्प को चालू या बंद करने वाले स्टार्टर पर टाइमर का पूरा नियंत्रण हो सके। खास बात यह है कि टाइमर में पम्प को चालू या बंद करने का समय पूर्व में निर्घारित किया जा सकेगा। निर्घारित समय पर बिना किसी व्यक्ति की मदद से पम्प स्वत: चालू या बंद हो जाएगा। टाइमर में एक बार टाइम सेट करने पर लम्बे समय तक बदलने की जरूरत नहीं पडेगी। हालांकि आवश्यकता पडने पर टाइमर के समय में कभी भी फेरबदल किया जा सकेगा।

शुरूआत में दो, बाद में पचास
विभाग ने चूरू के चांदनी चौक व गढ के पास स्थित नलकूप पर टाइमर लगाकर योजना की शुरूआत कर दी है। शहर के नौ तथा ग्रामीण क्षेत्र के दो जलस्त्रोतों पर भी जल्द ही टाइमर लगेगा। फिलहाल जलस्त्रोत चिह्नित किए जा रहे हैं। उन जलस्त्रोतों को प्राथमिकता दी जा रही है, जहां पानी अघिक व्यर्थ बहता हो। आगामी दो माह के दौरान कुल पचास जलस्त्रोतों पर टाइमर लगाया जाएगा।

ये भी होंगे फायदे
टाइमर का सबसे बडा फायदा पानी को व्यर्थ बहने से रोकना होगा। जलस्त्रोत चालू या बंद करने में लगा स्टाफ विभाग के अन्य कार्यो में काम लिया जा सकेगा। इसके साथ चौबीसों घंटे जलस्त्रोत चलने की वजह से मोटर जलने तथा पेयजल टंकियां ओवर फ्लो होने की समस्या भी अब नहीं रहेगी।
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पानी व बिजली की बचत तथा स्टाफ की कमी को दूर करने के लिए शहर में विभाग के जलस्त्रोतों पर पहली बार टाइमर लगा रहे हैं। पहले दिन दो जगह टाइमर लगाए हैं। आगामी दो माह में पचास जलस्त्रोत पर टाइमर लगाएंगे। -अम्बिका प्रसाद तिवाडी, एक्सईएन, पीएचईडी

Sunday, November 14, 2010

तालछापर में नजर आया दुर्लभ पक्षी

चूरू। विश्व स्तर पर दुर्लभ प्रजातियों में शामिल पक्षी सोशिएबल लैप विंग इन दिनों चूरू जिले के तालछापर कृष्णमृग अभयारण्य में देखी जा रहा है कजाकिस्तान से शीतकालीन प्रवास पर भारत के सूखी घास और सूखे मैदानी इलाकों में आने वाला यह पक्षी इस बार देशभर में सबसे पहले तालछापर में नजर आया है। फिलहाल अभयारण्य में ऎसे पांच पक्षी विचरण करते देखे जासकते हैं। रेड डेटा बुक में लुप्तप्राय प्रजातियों में शामिल सोशिएबल लैप विंग अभयारण्य में 12 साल बाद पहुंची है। अभयारण्य के रिकॉर्ड के मुताबिक इससे पूर्व 1998 में इसने अभयारण्य में पहुंचकर सर्दियां गुजारी थी। एक दशक से अधिक लम्बे अंतराल के बाद इसके यहां दुबारा आगमन को वन अधिकारी अभयारण्य के बदलते वातावरण के लिए शुभ संकेत मान रहे हैं।

दुनिया भर में सिमटी संख्या
इण्डियन बर्ड्स कन्जर्वेशन नेटवर्क के स्टेट कोऑर्डिनेटर सुरेश चन्द्र शर्मा के अनुसार रेड डाटा बुक में विश्व में सोशिएबल लैप विंग की संख्या काफी कम बताई गई है। भारत में गुजरात का कुछ हिस्सा और सम्पूर्ण राजस्थान में इनके आवास के अनुकूल वातावरण है। मगर दोनों प्रदेशों में लम्बे समय से इनके दर्शन दुर्लभ हो गए हैं। राजस्थान में मुख्य रूप से तालछापर, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान व अन्य छोटे दलदली क्षेत्रों में यह पक्षी कभी-कभार ही दिखाई देता है।

बड़ा शर्मिला पक्षी
लगभग तीस सेंटीमीटर लम्बा यह पक्षी बड़ा शर्मिला है। सफेद भौंहे, सिर पर चमक और पेट पर काला व मेहरून धब्बा इसकी खास पहचान है। इस मेहमान पक्षी का मुख्य भोजन कीड़े-मकोड़े हैं। कजाकिस्तान में बर्फ गिरने के कारण अक्टूबर में शीतकालीन प्रवास के लिए यह अफगानिस्तान होता हुआ तालछापर पहुंचा है। यहां पर यह पक्षी मार्च तक प्रवास करेगा।

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सोशिएबल लैप विंग दुर्लभ पक्षी है। दुनिया भर में इनकी संख्या तेजी से घटती जा रही है।
-हरकीरत सिंह सांगा, वन्यजीव विशेषज्ञ

तालछापर अभयारण्य में सात रोज पूर्व ही सोशिएबल लैप विंग नजर आई है।इससे पूर्व इसे अभयारण्य में 1998 में देखा गया था। रेड डाटा बुक में शामिल इस पक्षी का एक दशक बाद यहां पहुंचना अभयारण्य के वातावरण तथा पक्षी संवर्द्धन के लिहाज से अच्छा संकेत है।
-सूरत सिंह पूनिया, क्षेत्रीय वन अधिकारी, तालछापर

अभयारण्य में प्रवासी पक्षियों के प्राकृतिक आवास को बढ़ावा देने के लिए लम्बे समय से अनेक काम किए जा रहे हैं। यही वजह है विश्वभर में दुर्लभ पक्षी मानी जा रही सोशिएबल लैप विंग यहां नजर आई है।
-केसी शर्मा, डीएफओ, चूरू

फाइलों में अटके सामुदायिक कुण्ड

कुण्ड निर्माण में लाखों का मिलता है अनुदान,
12 का लक्ष्य, 7 की चयन प्रक्रिया जारी
चूरू। सामूहिक प्रयासों से बड़े कुण्ड बनाकर धोरों को हरा-भरा करने की सामुदायिक कुण्ड निर्माण योजना दो साल से फाइलों में अटकी हुई है। योजना में लाखों रुपए के अनुदान का प्रावधान होने के बावजूद जिले में एक भी कुण्ड नहीं बन पाया है।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार चालू वित्तीय वर्ष में 12 कुण्ड बनाए जाने का लक्ष्य है, परन्तु अभी तक सात ही समूहों ने आवेदन किया है। फिलहाल इन्हीं समूहों के आवेदनों को भी अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है। ऐसे में इस बार तय लक्ष्य निर्धारित समय में हासिल होने की सोचना बेमानी होगी।
योजना के तहत कम से कम पांच किसानों को मिलकर सामुदायिक कुण्ड निर्माण के लिए आवेदन करना होता है। 50 मीटर लम्बा व इतना ही चौड़ा और तीन मीटर गहरा कुण्ड बनाने पर राज्य सरकार की ओर से साढ़े सात लाख रुपए का अनुदान उपलब्ध करवाया जाता है। शेष राशि किसान समूह को मजदूरी जैसे मिट्टी खुदाई करके वहन करनी होती है।

इस साल बदले प्रावधान
विभागीय जानकारी के अनुसार पहले वर्ष योजना के तहत अनुदान की राशि तथा कुण्ड की लम्बाई-चौड़ाई दोगुनी थी। जिले की भौगोलिक स्थिति व बारिश की कमी की वजह से इतना बड़ा कुण्ड बन पाना संभव नहीं हुआ। ऐसे में इस वर्ष 12 अक्टूबर को योजना की अनुदान राशि व कुण्ड की साइज में घटाई गई है।

इन्होंने किया आवेदन
कुण्ड निर्माण के लिए गांव परसनेऊ के रामरख मेघवाल, दांदू के जगदीश मेघवाल, पृथ्वीराज मेघवाल व औंकार मेघवाल, बास जैसे का के चूनाराम जाट, ढाणी रणवा के भंवर लाल तथा खण्डवा के अम्मीलाल बुरड़क ने आवेदन किया है।
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चालू वित्तीय वर्ष के दौरान जिले में 12 कुण्ड बनाए जाने हैं। फिलहाल सात आवेदन प्राप्त हुए हैं। आवेदन के आधार पर किसानों का चयन किया जा रहा है। निर्धारित समय में कुण्ड निर्माण का लक्ष्य प्राप्त करने के पूरे प्रयास कर रहे हैं।
-डॉ. होशियार सिंह, उप निदेशक, कृषि विभाग, चूरू

Saturday, November 13, 2010

बिजली होगी अधिक 'दबंग'

ग्राम पंचायत विद्युत वितरण योजना : सर्किल में बनेंगे 43 जीएसएस, हर पंचायत का अलग फीडर
चूरू। जोधपुर विद्युत वितरण निगम ने चूरू सर्किल के ग्रामीण इलाकों की बिजली में नई जान फूंकने वाले तंत्र पर काम करना शुरू कर दिया है। इसके लिए ग्रिड सब स्टेशनों (जीएसएस) की संख्या बढ़ाने के साथ ही 11केवी के लम्बे फीडरों के बीच की दूरी घटाई जाएगी। यही नहीं बल्कि अब प्रत्येक ग्राम पंचायत का अपना अलग फीडर भी होगा। यह सब ग्राम पंचायत विद्युत वितरण योजना के तहत होगा। सब कुछ योजनानुसार हुआ तो जल्द ही बिजली वर्तमान की तुलना में अधिक 'दबंग' हो जाएगी। गांवों को चौबीस घंटे थ्री फेज बिजली मिल सकेगी। फिलहाल गांवों को कृषि कनेक्शनों की तर्ज पर छह से आठ घंटे तक ही थ्री फेज बिजली मिल रही है।
प्रत्येक तीन ग्राम पंचायतों पर होगा जीएसएस
चालू वित्तीय वर्ष से शुरू हुई इस योजना के तहत सर्किल की प्रत्येक तीन ग्राम पंचायतों पर एक-एक 33 केवी जीएसएस स्थापित होगा। चूरू जिले की कुल 249 व लाडऩू उपखण्ड की 32 ग्राम पंचायतों को ध्यान में रखते हुए 43 जीएसएस स्वीकृत किए गए हैं। इनमें से चालू वित्तीय वर्ष के अंत तक 26 जीएसएस स्थापित किए जाने की उम्मीद है। शेष जीएसएस का काम इनके बाद पूरा किया जाएगा।
ढीले नहीं रहेंगे तार
योजना के तहत 11केवी के लम्बी दूरी वाले फीडरों की दूरी घटाई जाएगी। दो फीडरों के बीच नए खम्भे लगाएंगे। इससे गांवों में ढीले तारों की समस्या नहीं रहेगी। छीजत घटने के साथ ही विद्युत व्यवधान भी कम हो जाएगा।
पहले चरण में यहां स्थापित होंगे जीएसएस
ब्लॉक --------गांव
चूरू के चलकोई बीकान
तारानगर के राजपुरा, धीरवास बड़ा, आनंदसिंहपुरा, मिखाला, झाड़सर कांधलान, लूणास व रैयाटुण्डा
राजगढ़ के चैनपुरा छोटा, राघा बड़ी व ढढ़ाल लेखू
सरदारशहर के रामसीसर, खींवणसर, बुकनसर, बिल्यूबास व मालसर
रतनगढ़ के नौसरिया, गौरीसर व बछरारा
सुजानगढ़ के शोभासर, रणधीसर व लोडसर
लाडनूं के मिठड़ी, बलदू, जसवंतगढ़ व रोडू
(शेष 17 जीएसएस अगले वित्तीय वर्ष में स्थापित होंगे।)

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नई योजना के तहत सर्किल में 43 जीएसएस की स्वीकृति मिली है। जल्द ही काम शुरू होगा। इसके बाद तीन पंचायतों पर एक जीएसएस हो जाएगा। साथ ही प्रत्येक ग्राम पंचायत को अपना अलग फीडर भी स्थापित करेंगे।
-केएल गुगरवाल, एसई, जेवीवीएनएल, चूरू

Wednesday, November 10, 2010

कमाल की कृष्णा

राष्ट्रमंडल खेलों की ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला डिस्कस थ्रोअर कृष्णा पूनिया से अंतरंग बातचीत।


किस तरह पहुंचीं इस मंजिल तक?
एक शादी समारोह में मेरे पिता की वीरेंद्रजी से मुलाकात हुई। उस दौरान वीरेंद्र देश के टॉप एथलीट्स में से एक थे। पहली बार में ही पिता ने उनको मेरे लिए पसंद कर लिया। मैं फाइनल ईयर में आई तो हमारी शादी हो गई। मेरी हाइट और पर्सनेलिटी को देखकर वीरेंद्र ने शादी के बाद खेल जारी रखने की इच्छा जाननी चाही। मैंने बिना कुछ सोचे-समझे हां कर दी। इसके बाद मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

पति ही आपके कोच हैं। कैसे तालमेल बिठाते हैं? घर पर किसकी चलती है?
दूसरी महिला खिलाडियों की तुलना में खुद को अधिक खुशनसीब मानती हूं। खेल के मैदान में पहुंचते ही हमारा रिश्ता बदल जाता है। हम पति-पत्नी की बजाय कोच और खिलाड़ी की तरह एक-दूसरे के साथ व्यवहार करते हैं। लेकिन मैदान के बाहर हमारे बीच एक अलग तरह का प्यारभरा रिश्ता है। मैदान में वीरेंद्र कोच के रूप में डांटते-फटकारते हैं तो घर पर पति का फर्ज भी बखूबी निभाते हैं। प्रशिक्षण के दौरान मेरी तकनीकी खामियों को लेकर अक्सर गुस्सा करते हैं, पर मैंने कभी बुरा नहीं माना। क्योंकि उस वक्त वे पति नहीं, बल्कि कोच की भूमिका निभा रहे होते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि हमने मैदान की बातों को कभी घरेलू जिंदगी में नहीं आने दिया।

प्रशिक्षण के वक्त पति के साथ का रोमांचक वाकया?
प्रशिक्षण के समय हम दोनों में छोटा-मोटा मजाक तो चलता रहता है। वैसे हम अलग तरह के रिजर्व नेचर के कपल हैं। पति में हमेशा से ही मैच्योरिटी रही है। वे ना तो अधिक गंभीर रहते हैं और ना ही लापरवाह। हमने अपना दायरा तय कर रखा है और उसी में रहकर खुद को पूरी तरह एंजॉय करते हैं। दोनों को ही बड़ी पार्टियां अच्छी नहीं लगतीं, पर घर पर अपनों के बीच समय बिताने का कभी कोई मौका नहीं छोड़ते।

बचपन की कोई याद?
मैं शुरू से संयुक्त परिवार में रही। बचपन में खूब मस्ती करते थे। घर में 200 भैंसें हुआ करती थीं। घर पर उनका दूध निकालती थी, बड़ा मजा आता था।

बेटे लक्ष्यराज को अकेला छोड़कर प्रेक्टिस करना... कितना मुश्किल रहा?
बेटे से दूर जाने का मन नहीं करता, पर खेल के लिए सब कुछ करना पड़ता है। पर खुशी इस बात की है कि लक्ष्यराज संयुक्त परिवार में रहकर संस्कार सीख रहा है। वह अपनी दादी और चाची के पास भी बड़ा खुश रहता है।

खाली समय में क्या करती हैं?
मुझे पढ़ना पसंद है। प्रेक्टिस और घरेलू कामों के बाद समय मिलता है तो गीता, रामायण जैसी धार्मिक पुस्तकें पढ़ती हूं।

मैं हूं ऑलराउंडर
अपने आप को सेलिब्रिटी या आम गृहिणी की बजाय ऑलराउंडर कहना चाहूंगी। एक ऎसी ऑलराउंडर जो खेल, घर-परिवार और रेलवे की डयूटी को बखूबी पूरा करती हूं। जब घर पर होती हूं तो खाना बनाने और कपड़े धुलाने से लेकर बर्तन तक साफ करवा देती हूं। यह सब देख सास और देवरानियां मुझे घरेलू काम करने की बजाय आराम करके प्रशिक्षण की थकान मिटाने की सलाह देती नहीं थकतीं।

घर वालों का प्यार
देवर सतीश, विनोद और देवरानी ओम और राजबाला ने मेरे बेटे लक्ष्यराज को मम्मी-पापा का प्यार दिया। यही वजह है कि बेटे को एक वर्ष का छोड़कर मैं तैयारियो में जुट गई थी। 2004 के बाद तो साल-साल भर तक बेटे से दूर रही। बेटे के स्कूल में पैरेंट्स मीटिंग में कभी नहीं जा पाई, मगर देवर-देवरानियों ने कभी मेरी कमी महसूस नहीं होने दी। इसी वजह से मैंने बेटे की चिंता किए बगैर दिन-रात खेल पर ध्यान दिया। रही बात सास के रवैये कि तो यही कहूंगी कि उनके कोई बेटी नहीं है और मैंने बचपन में अपनी मां को खो दिया था। अब सास के रूप में मुझे मां और उन्हें मेरी जैसी बेटी मिल गई है। हमारा परिवार संयुक्त होने के बावजूद मुझे कभी किसी से गिला-शिकवा नहीं रहा। घर के प्रत्येक सदस्य का रवैया कुछ ऎसा है कि लगता है मैं ससुराल नहीं,बल्कि अभी भी मायके में ही रह रही हूं।

Wednesday, October 13, 2010

आए, खाए और चल दिए

चूरू सर्किट हाउस प्रबंधन बेबस
राजनीति व प्रशासन के 50 से अधिक दिग्गजों के लाखों बकाया
चूरू। 'आए, खाए और खिसके' का जुमला कई दिग्गज राजनेताओं और वरिष्ठ अफसरों पर सटीक बैठ रहा है। इन सब पर चूरू के सर्किट हाउस में ठहरने और भोजन की एवज में लाखों रुपए बकाया हैं। राजकीय अतिथि के रूप में बकाया राशि छोड़कर जाने वालों में तो पूर्व प्रधानमंत्री व पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर कई जाने-माने मंत्री तक शामिल हैं। ऐसे सांसद और आईएएस अधिकारियों की भी कमी नहीं, जो सर्किट हाउस के बिलों के भुगतान को अब तक गंभीरता से नहीं लिया है। यही नहीं बल्कि चूरू में तैनात रहे एक जिला कलक्टर, उपखण्ड अधिकारी और कोतवाल भी मुफ्त में खाना खाने से नहीं चूके। जनप्रतिनिधियों और हुक्मरानों की यह हकीकत पत्रिका की पड़ताल में सामने आई है।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार 1997 से 31 अगस्त 2010 तक की अवधि के दौरान राजकीय अतिथि, सांसद, मंत्री और अधिकारियों समेत कुल 57 व्यक्तियों के सर्किट हाउस में ठहरने और भोजन के बदले एक लाख 67 हजार 71 रुपए बकाया हैं। हालांकि राजकीय अतिथियों के बिलों की राशि का भुगतान करना सामान्य प्रशासन विभाग तथा चुनाव कार्य के चलते चूरू आने वाले आला अधिकारियों के बिलों का भुगतान करना जिला कलक्टर की जिम्मेदारी है। शेष को व्यक्तिगत रूप से भुगतान करना होता है। बकाया वसूली के लिए सर्किट हाउस प्रबंधन के समय-समय पर पत्र जारी किए जाने के बावजूद बकायादारों का आंकड़ा कम होने का नाम नहीं ले रहा है। स्थिति यह है कि बकाया वसूलने में सर्किट हाउस प्रबंधन पूरी तरह बेबस है।

बकाया एक नजर में
नाम---------------व्यक्ति----------बकाया
राजकीय अतिथि-------19------------27629
मंत्री व सांसद---------11------------32437
महामहिम राज्यपाल-----2--------------6071
कलक्ट्रेट चूरू---------9-------------72261
प्रशासनिक अधिकारी---14--------------25281
अन्य----------------2--------------3392
कुल----------------57------------167071
(आंकड़े सर्किट हाउस के अनुसार)

पूर्व प्रधानमंत्री गुजराल भी शामिल
सर्किट हाउस में ठहरने और भोजन की एवज में जिन पन्द्रह राजकीय अतिथियों के नाम से राशि बकाया है, उनमें पूर्व प्रधानमंत्री इन्द्रकुमार गुजराल, पूर्व उप राष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चोटाला, पूर्व केन्द्रीय खनिज मंत्री शीशराम ओला व पूर्व पेट्रोलियम मंत्री मणीशंकर अय्यर समेत अनेक नाम शामिल हैं। राजकीय अतिथियों में से सबसे अधिक राशि 13 हजार 709 रुपए हरियाणा के तत्कालीन (2003) शहरी विकास राज्य मंत्री सुभाष गोयल तथा सबसे कम 420 रुपए तत्कालीन (2001) राज्यसभा सांसद अुर्जन सिंह के बकाया है।

सांसद बुडानिया सबसे आगे
बकाया के मामले में राज्य सभा सांसद नरेन्द्र बुडानिया पहले पायदान पर हैं। सांसद बुडानिया को 4 नवम्बर 2001 से 13 दिसम्बर 2003 तक की अवधि के लिए सर्किट हाउस प्रशासन को 18 हजार 709 रुपए चुकाने हैं। जबकि सबसे कम 132 रुपए बीसूका के तत्कालीन (2003) उपाध्यक्ष करण सिंह यादव के नाम बकाया है। इनके अलावा दस हजार रुपए से अधिक बकाया राशि वालों में आईएएस अधिकारी टीके सिंह, आईआरएस बीके मोहंती, आईआरएस जीएम प्रकाश और आईएएस टी डब्लू बरगप्पा का नाम भी शामिल है।
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राजकीय अतिथि, प्रशासनिक अधिकारी और जनप्रतिनिधियों के यहां ठहरने और भोजन के करीब एक लाख 6 7 हजार 71 रुपए बकाया हैं। राजकीय अतिथियों के बकाया का भुगतान सामान्य प्रशासन विभाग तथा चुनाव कार्य से आने वाले अधिकारियों के बकाया का भुगतान कलक्ट्रेट की ओर से किया जाता है। संबंधित विभाग और व्यक्ति को बकाया चुकाने के लिए समय-समय पर पत्र भेजते रहते हैं।
-संतोष कुमावत, प्रबंधक, सर्किट हाउस, चूरू
चुनाव पर्यवेक्षकों के विश्राम और भोजन के बिलों की बकाया राशि का भुगतान हमें करना है। कितना बकाया है इसकी जानकारी नहीं है। पता करके ही बता सकूंगा। बजट के अभाव में भुगतान में देरी हो गई होगी। जल्द ही भुगतान करवा दिया जाएगा।
-विकास एस भाले, कलक्टर, चूरू

Monday, October 4, 2010

आईटी की राह में ढिलाई का 'वायरस'

भारत निर्माण राजीव गांधी सेवा केन्द्र :
गांधी जयंती को गुजरी डेडलाइन, 86 पंचायतों में तो काम ही शुरू नहीं हुआ, 31 मार्च नई तिथि निर्धारित
चूरू। ग्राम पंचायतों को तकनीकी रूप से मजबूत बनाने वाली भारत निर्माण राजीव गांधी सेवा केन्द्र (आईटी सेंटर) योजना की रफ्तार ढिलाई के वायरस की गिरफ्त में है। यही वजह है कि सेंटरों का निर्माण पूर्ण होने की पहली संभावित तिथि दो अक्टूबर (गांधी जयंती) गुजर गई, मगर जिले की 249 ग्राम पंचायतों में से 246 में सेंटर अभी भी सपना बना हुआ है। निर्धारित तिथि तक महज तीन पंचायतों में सेंटर निर्माण का काम पूर्ण हुआ है। 86 ग्राम पंचायतों में तो सेंटर का शुरू ही नहीं हो सका है। जिन ग्राम पंचायतों सेंटर निर्माणाधीन है, उनकी स्थिति भी संतोषजनक नहीं कही जा सकती है। अब रा'य सरकार के निर्देश जिला प्रशासन ने समस्त केन्द्रों का निर्माण कार्य पूर्ण करने की नई तिथि 31 मार्च 2011 तय की है, किन्तु नई तिथि तक कार्य पूर्ण होने की भी कोई गारण्टी नहीं है।

टेण्डर समेत कई रोड़े
आधिकारिक जानकारी के अनुसार सेंटरों के निर्माण की राह में उनकी टेण्डर प्रक्रिया ही रोड़ा साबित हो रही है। जिला प्रशासन ने सेंटरों की निर्माण सामग्री के लिए अप्रेल में टेण्डर प्रक्रिया शुरू की थी। सरपंचों की बजाय जिला कलक्टर की ओर से टेण्डर प्रक्रिया शुरू करने पर सरपंच शुरू से ही इसके खिलाफ थे। इसके अलावा कुछ पंचायतों में जगह उपलब्ध नहीं होने और सामग्री नहीं पहुंचाने से भी योजना के क्रियान्वयन में बाधा आ रही है। रही-सही कसर सरपंच व ग्रामसेवकों की पिछले दिनों हुई हड़ताल ने पूरी कर दी।

यहां भी रफ्तार धीमी
आईटी सेंटर निर्माण के लिए ग्राम पंचायत ही नहीं बल्कि पंचायत समिति मुख्यालयों पर भी रफ्तार धीमी है। जिले की छह पंचायत समितियों में से सुजानगढ़ व राजगढ़ में सेंटर का काम पूर्ण हो पाया है। चूरू व सरदारशहर में सेंटर का काम समाप्ति की ओर है। रतनगढ़ में सेंटर का काम छत से नीचे तथा तारानगर में छह डाले जाने के स्तर तक का काम पूर्ण हो गया है। गौरतलब है कि पंचायत समिति मुख्यालय पर सेंटर निर्माण पूर्ण करने की तिथि 15 अगस्त थी, जो डेढ़ माह पूर्व ही गुजर गई।

क्या है योजना
भारत निर्माण राजीव गांधी सेवा केन्द्र योजना के तहत प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक-एक सेंटर स्थापित किया जाएगा। प्रत्येक सेंटर पर महानरेगा से दस लाख रुपए खर्च करेंगे। सेंटर पर पांच कम्प्यूटर उपलब्ध करवाए जाएंगे, जहां गांव के युवाओं को
कम्प्यूटर का प्रशिक्षण दिया जा सकेगा और महानरेगा के कार्यों की ऑन डाटा फीडिंग हो सकेगी। साथ ही अन्य विभागों की योजनाओं के आंकड़े भी
पंचायत स्तर पर आसानी से तैयार किए जा सकेंगे। इसके अलावा ग्रामीणों को विभिन्न योजनाओं के आवेदन पत्र भरने की भी सुविधा मिलेगी।

163 सेंटर निर्माणाधीन
जिले की छहों पंचायत समितियों की 163 ग्राम पंचायतों में सेंटर निर्माणाधीन हैं। इनमें से 44 पंचायतों में सेंटर का काम नींव स्तर तक पूरा हो पाया है। 38 पंचायतों में दो से पांच फीट तक तथा 47 पंचायतों में छत के आस-पास तक का काम हुआ है। इनके अलावा 34 पंचायतों की सेंटरों का काम समाप्ति की ओर है।

आंकड़ों की जुबानी
पं. स~~~~~बनेंगेकाम शुरू नहीं
चूरू~~~~~~~35~~~~~ 4
सुजानगढ़~~~51 ~~~~~-
सरदारशहर~~~~~48~~~~~ 6
राजगढ़~~~~~~~55~~~~~ 41
तारानगर~~~~~~~28~~~~~ 12
रतनगढ़~~~~~~32~~~~~ 23
कुल~~~~~ 249 ~~~~~86
(आंकड़े जिला परिषद के अनुसार)
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यह सही है कि पंचायत समिति व ग्राम पंचायत मुख्यालय पर बनने वाले सेवा केन्द्रों के निर्माण की अंतिम तिथियां निकल गई हैं। फिर भी चूरू जिला योजना के क्रियान्वयन को लेकर प्रदेशभर में अव्वल है। शेष 8 6 ग्राम पंचायतों में भी जल्द ही काम शुरू हो जाएगा। पंचायतों में जगह नहीं मिलने, निर्माण सामग्री नहीं पहुंचने और ग्रामसेवकों व सरपंचों की हड़ताल समेत कारणों से देरी हुई है। अब सरकार से 31 मार्च तक का समय लिया गया है।नई तिथि तक समस्त केन्द्रों का कार्य पूर्ण होने की उम्मीद है।
-अबरार अहमद, मुख्य कार्यकारी अधिकारी,
जिला परिषद, चूरू

Sunday, October 3, 2010

दिल्ली की नजर चूरू के मौसम पर

[कॉमनवैल्थ गेम्स] रात को भी मौसम के आंकड़े जुटाए जा रहे हैं
चूरू। मौसम के लिहाज से महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले चूरू जिले पर एक बार फिर से दिल्ली की नजर है। तीन अक्टूबर से दिल्ली में शुरू हो रहे राष्ट्रमण्डल खेलों ने चूरू के मौसम की अहमियत बढ़ा दी है। मौसम की भविष्यवाणी करने के लिए दिन के साथ-साथ रात को भी मौसम के आंकड़े जुटाए जा रहे हैं। दिल्ली स्थित मौसम विभाग के निर्देश पर चूरू के मौसम केन्द्र में दस सितम्बर से शुरू हुई वैकल्पिक व्यवस्था बीस अक्टूबर तक जारी रहेगी।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार चूरू मौसम केन्द्र पर रोजाना तीन घंटे के अंतराल में तापमान, हवा का रुख, नमी और वायुदाब की जानकारी जुटाईजाएगी। सुबह और शाम को आसमान में बैलून छोड़कर छह किलोमीटर ऊपर की हवा की दिशा और रफ्तार की जानकारी जुटाई जाती है। लेकिन अब राष्ट्रमण्डल खेलों को हुए तीन घंटे की बजाय एक-एक घंटे के अंतराल में मौसम के हाल का पता लगाया जा रहा है। इसके अलावा दोपहर और रात को भी बैलून छोड़े जा रहे हैं।
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यह होगा फायदा
प्रदेश में चूरू स्थित मौसम केन्द्र अन्य केन्द्रों की तुलना में दिल्ली के अधिक नजदीक है। यहां पर बनने वाला मौसम तंत्र दिल्ली के मौसम को भी प्रभावित कर सकता है। आधिकारिक जानकारी के अनुसार प्रदेश में चूरू के अलावा बीकानेर, श्रीगंगानगर, जयपुर और कोटा समेत अन्य स्थानों से मौसम के आंकड़े जुटाए जा रहे हैं। इससे दिल्ली मौसम विभाग तीन घंटे की बजाय एक-एक घंटे के अंतराल में दिल्ली के आस-पास के मौसम का हाल बताने में सक्षम होगा।
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मुख्यालय के आदेश पर राष्ट्रमण्डल खेलों के लिए मौसम के आंकड़े जुटाने की वैकल्पिक व्यवस्था बीस अक्टूबर तक जारी रहेगी। अब तीन घंटे की बजाय प्रत्येक घंटे के अंतराल में मौसम के आंकड़े जुटाकर दिल्ली भेज रहे हैं।
-जिलेसिंह राव, प्रभारी अधिकारी, मौसम केन्द्र चूरू

Friday, September 24, 2010

तीसरी आंख भी रखेगी निगरानी

आरएएस की परीक्षा, प्रत्येक केन्द्र की होगी वीडियोग्राफी
चूरू। बोर्ड परीक्षाओं और मतदान प्रक्रिया की तर्ज पर अब आरएएस परीक्षा पर भी तीसरी आंख से निगरानी रखी जाएगी। प्रदेश में 29 सितम्बर को हो रही आरएएस परीक्षा के प्रत्येक केन्द्र पर इस बार से एक-एक वीडियोग्राफर तैनात किया जाएगा।
वीडियोग्राफर केन्द्र पर प्रश्न पत्र के लिफाफे खोलने से लेकर परीक्षा के बाद लिफाफे को फिर से सील किए जाने तथा औचक निरीक्षण समेत केन्द्र की समस्त गतिविधियों को कैमरे में कैद करेगा। परीक्षा के बाद प्रत्येक केन्द्र की वीडियोग्राफी की सीडी बनाकर आरपीएससी मुख्यालय अजमेर पहुंचाई जाएगी।
परीक्षा की गोपनीयता बरकरार रखने के लिए वीडियोग्राफी के अलावा भी कई कदम उठाए गए हैं। अब निजी परीक्षा केन्द्रों पर एक की बजाय दो पर्यवेक्षक तैनात किए जाएंगे। साथ ही छह परीक्षा केन्द्रों पर एक-एक फ्लाइंग स्क्वायड लगाएंगे।
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कम्प्यूटर से जारी होगा प्रवेश पत्र
आरपीएससी की ओर से मूल प्रवेश पत्र प्राप्त करने से वंचित रहे परीक्षार्थियों के लिए इस बार डुप्लीकेट प्रवेश पत्र जारी करने की भी नई व्यवस्था की गई है। आरपीएससी ने प्रत्येक जिले में विशेष सॉफ्टवेयर उपलब्ध करवाया है। जिसमें परीक्षार्थियों की सूची व जानकारी मय फोटो के उपलब्ध है। डुप्लीकेट प्रवेश पत्र चाहने वालेे परीक्षार्थियों को अपनी दो फोटो व पांच रुपए की डीडी के साथ परीक्षा कंट्रोल कक्ष में उपस्थित होना होगा। परीक्षार्थी की पुख्ता पहचान के बाद उसे कम्प्यूटर से मूल प्रवेश पत्र की प्रतिलिपि जारी कर दी जाएगी। पूर्व में अधिकारी अपने स्तर पर प्रमाणित कर डुप्लीकेट प्रवेश पत्र जारी करते थे।
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आरएएस परीक्षा को लेकर इस बार कई नए कदम उठाए गए हैं। प्रत्येक केन्द्र की समस्त गतिविधियों को वीडियो में कैद करने और निजी केन्द्रों पर दो-दो पर्यवेक्षक तैनात करने का निर्णय किया है। साथ ही डुप्लीकेट प्रवेश पत्र भी कम्प्यूटर से जारी करेंगे।
-डॉ. केके पाठक, सचिव, आरपीएससी, अजमेर

Tuesday, September 21, 2010

ब्लॉक स्तर पर होगी मौसम की भविष्यवाणी

जयपुर समेत चार जिलों में लगेंगे अत्याधुनिक राडार,
मौसम विभाग के डीजीएम अजीत त्यागी चूरू आए
चूरू। देश में अब ब्लॉक स्तर तक मौसम की भविष्यवाणी की जा सकेगी। इसके लिए मौसम केन्द्रों को हाइटेक करने की दिशा में कदम बढ़ा दिए गए हैं। चुनिंदा मौसम केन्द्रों पर डोप्लर वैदर राडार लगाए जाने के साथ ही करीब दो हजार स्थानों पर स्वचालित मौसम केन्द्र स्थापित किए जा रहे हैं।
मौसम विभाग नई दिल्ली के डीजीएम डॉ. अजीत त्यागी ने सोमवार को पत्रिका से बातचीत में यह जानकारी दी। डॉ. त्यागी चूरू में स्वचालित मौसम केन्द्र का उद्घाटन करने आए हुए थे। उन्होंने बताया कि जयपुर मौसम केन्द्र में जनवरी 2011 के अंत तक डोप्लर वैदर राडार काम करना शुरू कर देगा। जिससे प्रदेश में चार सौ किलोमीटर की परिधि के मौसम का सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा। 12 जिलों में स्वचालित मौसम केन्द्र स्थापित कर दिए गए हैं जबकि शेष 21 जिलों में मौसम केन्द्र जल्द स्थापित होंगे। देशभर में 50 डोप्लर वैदर राडार और दो हजार स्वचालित मौसम केन्द्र की योजना बनाई गई है। जिसके प्रथम चरण का काम शुरू हो गया है। दूसरे चरण का आगाज 2012 में होगा।

सुपर कम्प्यूटर बनेंगे मददगार
डॉ. त्यागी ने बताया कि डोप्लर वैदर राडार और स्वचालित मौसम केन्द्र से आंकड़े सीधे दिल्ली, पुणे व मुम्बई में तुरंत प्राप्त किए जा सकेंगे, जहां सुपर कम्प्यूटर से आंकड़ों का विस्तृत अध्ययन एवं विश्लेषण कर ब्लॉक स्तर तक के तापमान, हवा, बारिश व नमी आदि की भविष्यवाणी की जा सकेगी। फिलहाल मौसम विभाग जिला स्तर तक के मौसम का हाल बताने में सक्षम है।

कोटा में भी लगेगा राडार
डॉ. त्यागी ने बताया कि प्रदेश में श्री गंगानगर और जैसलमेर में डोप्लर वैदर राडार लगा हुआ हैं, मगर दोनों ही पुरानी तकनीक से काम कर रहे हैं। अत्याधुनिक राडार सबसे पहले जयपुर में लगेगा। इसके बाद कोटा का नम्बर आएगा। साथ ही श्रीगंगानगर और जैसलमेर स्थित पुराने राडार को भी बदला जाएगा।

पल-पल के मौसम पर होगी पकड़
चूरू में स्वचालित मौसम केन्द्र शुरू
चूरू। जिला मुख्यालय स्थित मौसम केन्द्र हाइटेक हो गया है। यहां पर सोमवार से स्वचालित मौसम केन्द्र ने काम करना शुरू कर दिया है। अब जिले के पल-पल के मौसम पर केन्द्र की पकड़ हो जाएगी। मौसम विभाग नई दिल्ली के डीजीएम डॉ. अजीत त्यागी व मौसम विभाग जयपुर के निदेशक एसएस सिंह ने सुबह दस बजे केन्द्र का फीता काटकर विधिवत उद्घाटन किया। डॉ. त्यागी ने बताया कि चूरू मौसम केन्द्र पर तीन घंटे के अंतराल में ही मौसम की जानकारी ले पाना संभव हो पा रहा था जबकि मौसम की भविष्यवाणी करने के लिहाज से चूरू देशभर में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ऐसे में यहां पर लम्बे समय से स्वचालित मौसम केन्द्र की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। अब दस मिनट के अंतराल में मौसम का हाल जाना जा सकेगा।
प्रदेश के 12 जिलों में स्वचालित मौसम केन्द्र स्थापित करने में चूरू को भी प्राथमिकता से लिया गया है। निदेशक एसएस सिंह ने बताया कि स्वचालित मौसम केन्द्र शुरू होने पर पाला पडऩे, ओले गिरने व भारी बारिश आदि का सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा। चूरू केन्द्र प्रभारी जिलेसिंह राव ने डॉ. त्यागी व सिंह को केन्द्र का निरीक्षण करवाया। इस मौके पर सहायक मौसम वैज्ञानिक जयपुर एनके मल्होत्रा, आरएस सिहाग, गोपाल लाल वर्मा आदि उपस्थित थे।

Friday, September 17, 2010

सरपंची के फेर में बच्चे हुए जवां

दो सरपंचों समेत तीन के निर्वाचन अवैध घोषित करने की सिफारिश
शिकायत की जांच में हुआ खुलासा, जन्मतिथि के बनाए फर्जी दस्तावेज

चूरू। जिले में दो सरपंच और एक उप सरपंच की पंचायती छिनने के आसार हैं। जिला प्रशासन ने तीनों के निवार्चन अवैध घोषित करने की आलाधिकारियों को सिफारिश की है। तीनों पर चुनाव घोषणा पत्र में संतान संबंधित वास्तविक तथ्य छिपाने का आरोप है। पंचायत चुनाव के बाद जिला प्रशासन को मिली शिकायतों की जांच में तीनों को प्रथम दृष्टया दोषी माना गया है।
तीनों ने अपनी पंचायती चलाने के लिए न केवल अपने बच्चों की वास्तविक उम्र काफी बढ़ा दी बल्कि नई जन्मतिथि के फर्जी दस्तावेज भी तैयार करवा लिए। शिकायतों की गहन जांच के बाद जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अबरार अहमद ने संभागीय आयुक्त बीकानेर को सरदारशहर पंचायत समिति की ग्राम पंचायत मेहरासर चाचेरा की सरपंच सुवा कंवर, पिचकराई ताल की सरपंच मंजू देवी पारीक और चूरू पंचायत समिति की ग्राम पंचायत जसरासर के वार्ड पंच पूर्णाराम के निर्वाचन को अवैध घोषित करने की सिफारिश की है। इनके अलावा सुजानगढ़ व सादुलपुर पंचायत समिति के एक-एक सरपंच के खिलाफ जांच जारी है।

केस-एक
सरदारशहर पंचायत समिति की ग्राम पंचायत मेहरासर चाचेरा की सरपंच सुवा कंवर ने अपनी पांचवीं संतान पुत्र भूपेन्द्र उर्फ भवानी सिंह की वास्तविक जन्मतिथि छिपाई है। शिवाजी पब्लिक शिक्षण संस्थान मेहरासर चाचेरा और नेहरू बाल निकेतन उप्रावि भोजरासर के रिकॉर्ड में भूपेन्द्र की जन्मतिथि 5 दिसम्बर 1999 है जबकि सुवा कंवर ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में जन्मतिथि 21 अप्रेल 94 अंकित की गई है।

केस-दो
सरदारशहर तहसील की ग्राम पंचायत पिचकराईताल की सरपंच मंजू देवी पारीक ने अपनी चौथी संतान पुत्र आनंद की जन्मतिथि में हेरफेर किया है। चुनाव घोषणा पत्र में आनंद की जन्मतिथि ग्राम पंचायत से जारी जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर 10 दिसम्बर 1991 अंकित की गई है। जबकि जन्म प्रमाण पत्र चुनाव के बाद 18 फरवरी 2010 को जारी करवाया गया। रामावि और ज्ञान ज्योति उप्रा शिक्षण संस्थान बरजांगसर के रिकॉर्ड के मुताबिक आनंद की जन्मतिथि 4 दिसम्बर 1996 है।

केस-तीन
तीसरा मामला चूरू पंचायत समिति की ग्राम पंचायत जसरासर के वार्ड पंच पूर्णाराम के निर्वाचन का है। पूर्णाराम बाद में उप सरपंच चुन गए थे। इन्होंने चुनाव घोषणा पत्र मेंं अपनी छठी संतान पुत्री गायत्री का जन्म 6 अपे्रल 198 5 व सातवीं संतान पुत्री बनारसी का जन्म 13 अप्रेल 198 8 को होना बताया है। जबकि गांव धीरावास के राजकीय माध्यमिक विद्यालय के रिकॉर्ड के मुताबिक गायत्री की वास्तविक जन्मतिथि 15 सितम्बर 1998 व बनारसी की जन्मतिथि 10 अक्टूबर 1999 है।

इनकी जांच जारी
इनके अलावा सुजानगढ़ पंचायत समिति की गोपालपुरा ग्राम पंचायत के सरपंच अमराराम मेघवाल व सादुलपुर ग्राम पंचायत के सरपंच न्यांगल छोटी के निर्वाचन पर भी तलवार लटक रही है। जिला प्रशासन को दोनों सरपंचों के खिलाफ संतान सम्बन्धित तथ्य छुपाने की शिकायत मिली है। जिसकी संबंधित विकास अधिकारी से जांच करवाई जा रही है।
क्या है नियम
राजस्थान पंचायत राज निर्वाचन नियम 1994 में निर्धारित तिथि 27 नवम्बर 1995 के बाद किसी के तीसरी संतान पैदा होने पर वह चुनाव लडऩे का अपात्र हो जाता है। इसके बावजूद अगर चुनाव जीतता है तो शिकायत मिलने पर उसका निर्वाचन अवैध घोषित किया जा सकता है।

इनका कहना है...
दो सरपंच व एक उप सरपंच के खिलाफ प्राप्त शिकायतों की बीडीओ व बीईईओ से विस्तृत जांच करवाई गई। जांच रिपोर्ट के आधार पर तीनों के निर्वाचन को अवैध घोषित किए जाने की संभागीय आयुक्त को सिफारिश की गई है। दो सरपंचों के खिलाफ प्राप्त शिकायत की जांच जारी है।
-अबरार अहमद, सीईओ, जिला परिषद चूरू

Wednesday, September 1, 2010

घर का बीज पडोसी रहे सींच

चूरू। घर का जोगी जोगणा आन गांव का सिद्ध वाली कहावत चूरू जिले के गांव गुडाण निवासी प्रगतिशील किसान महावीर सिंह आर्य पर सटीक बैठ रही है। किसान आर्य की ओर से तैयार की गई गेहूं की नई किस्म 'महा किसान क्रांति' व 'महा किसान वरदान' को प्रदेश में भले ही पहचान नहीं मिल पाई हो, मगर पडोसी राज्य उत्तर-प्रदेश व हरियाणा के किसानों के लिए ये किस्में वरदान साबित हो रही हैं। किसान इन किस्मों के बीजों की बुवाई कर मालामाल हो रहे हैं। यूपी के मुजफ्फनगर, एलम, बागपत, कासिमपुर, खेडी, निरपुदा व सिसोली तथा हरियाणा के भिवानी, लुहारू, बहल व दादरी इलाके के सैकडों खेत क्रांति व वरदान किस्म से लहलहा चुके हैं।
इस बार रबी के सीजन में उत्तर प्रदेश के करीब 250 तथा हरियाणा के 20 किसानों ने इन किस्म के गेहूं की बम्पर पैदावार हासिल की है। रबी की फसल के आगामी सीजन में उत्तर प्रदेश में दोनों किस्में काम लेने वाले किसानों की संख्या दोगुनी होने का अनुमान है। जानकारी के अनुसार आर्य की ओर से तैयार गेहूं की दोनों ही किस्म यूपी की स्थानीय किस्म पीवीडब्ल्यू 377 व यूपी 2338 किस्म तथा हरियाणा की 306 किस्म से पैदावार समेत चारा व रोग प्रतिरोधक क्षमता में अघिक उन्नत साबित हो रही है। इससे हरियाणा में किसान 35 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की तुलना में 50 से 60 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तथा यूपी के किसान 45-50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर के मुकाबले 60 से 70 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पैदावार प्राप्त कर रहे हैं।

पड़ोसी राज्यों के खेतों में यूं पहुंचा बीज
वर्ष 2007-08 में झुंझुनूं जिले के पिलानी में लगे किसान मेले में महावीर सिंह आर्य ने दोनों ही किस्म के बीजों की प्रदर्शनी लगाई थी। मेले में आए यूपी के मुजफ्फरनगर जिले के गांव एलम के किसान सुनील ने आर्य से बीस किलोग्राम बीज खरीदे थे। सुनील में यूपी में दो बीघा में बुवाई की और पहली बार नौ क्विंटल पैदावार हासिल की। इससे कम समय में ही दोनों किस्मों ने मुजफ्फर नगर समेत आस-पास के कई जिलों में पहचान बना ली। इसी प्रकार वर्ष 2008-09 में हरियाणा के भिवानी जिले के दिगावा में एनएचआरडीएफ की ओर से लगाए गए मेले में आर्य ने दोनों ही किस्मों की प्रदर्शनी लगाई। हरियाणा के कई किसानों ने आर्य से इनके बीज खरीदे। इसके बाद दोनों ही राज्यों के किसान आर्य से लगातार सम्पर्क में रहे और समय-समय पर गुडाण आकर बीज प्राप्त किए।

हम दिलाएंगे पहचान
चूरू के किसान की ओर से तैयार गेहूं की नई किस्मों का यूपी व हरियाणा में बडे पैमाने पर उपयोग होना हम सब के लिए गर्व की बात है। प्रदेश के किसानों का इनसे लाभान्वित नहीं होना दुर्भाग्यपूर्ण है। इस संबंध में पहले जानकारी नहीं थी। आपने इस ओर ध्यान दिलाया है। गेहूं की इन किस्मों की प्रदेशभर में भी पहचान हो, इसके लिए उच्च अघिकारियों से चर्चा की जाएगी।
-होशियार सिंह, उपनिदेशक, कृषि विभाग, चूरू

दिनोंदिन बढती मांग
गेहूं की उन्नत किस्में तैयार करने में बीते दो दशक से काम रहा हूं। महा किसान क्रांति व महा किसान वरदान नामक किस्म सबसे अघिक सफल रही हैं। दोनों ही किस्मों के पेटेंट की प्रक्रिया चल रही है। इसकेे लिए राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान अहमदाबाद की टीम भी कई बार गुडाण आ चुकी है। हरियाणा व यूपी में दोनों किस्मों की मांग दिनोंदिन बढती जा रही है।
-महावीर सिंह आर्य, किसान, गांव गुडाण, राजगढ (चूरू)

500 किसान बोएंगे
ढाई वर्ष पूर्व मुजफ्फनगर के किसान सुनील ने राजस्थान के किसान महावीर सिंह आर्य से लाई दो नई किस्मों की जानकारी दी थी। दोनों ही किस्म हमारी स्थानीय किस्मों से अघिक पैदावार देती हैं। पिछले कई साल से मैं दोनों को काम में ले रहा हूं। इस बार हमारे यहां के करीब पांच सौ किसान क्रांति व वरदान किस्म के गेहूं की बुवाई की तैयारी कर रहे हैं।
-नरेन्द्र सिंह (किसान), निरपुदा, जिला बागपत, उत्तर प्रदेश

पर्याप्त बीज का अभाव
गेहूं की महा किसान क्रांति व महा किसान वरदान किस्म का उपयोग करने से हमें स्थानीय किस्म से 15-25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक अघिक पैदावार प्राप्त होती है। गुडाण निवासी प्रगतिशील किसान आर्य से एक किसान मेले में बीज खरीदा था। हरियाणा के कई जिलों में इन किस्मों की मांग बढ रही है, मगर आर्य पर्याप्त मात्रा में बीज उपलब्ध नहीं करा पा रहा है।
-हीरानंद श्योराण (किसान), गांव पहाडी, जिला भिवानी, हरियाणा

Friday, August 13, 2010

बारिश ने बरसाए 'रिकॉर्ड'

गत वर्ष से 20 एमएम अधिक बरसात
दस वर्षों के औसत से 46 एमएम कम

चूरू। जिले में इस बार मानसून नित नए रिकॉर्ड कायम कर रहा हैं। गत वर्ष की कुल बारिश का रिकॉर्ड तो सभी ब्लॉकों में टूट चुका है जबकि आधा सावन और पूरा भादो अभी बाकी है। जिले में अब 46 एमएम बरसात और होती है तो इस बार गत दस वर्षों की औसत बारिश का रिकॉर्ड भी टूट जाएगा।
जिले के छहों ब्लॉकों में इस बार अब तक 1 हजार 718 एमएम बारिश हो चुकी है, जो वर्ष 2009 से 119 एमएम, वर्ष 2002 से 745 एमएम तथा वर्ष 2000 से 321 एमएम अधिक है। मौसम विभाग के अनुसार जिले में जून से सितम्बर के अंत तक मानसून सक्रिय रहता है। इस बार शुरुआत से ही अच्छी बारिश हो रही है।
जिले में बीते चौबीस घंटों के दौरान चूरू व सरदारशहर में झमाझम हुई। सरदारशहर में बुधवार रात करीब 50 एमएम पानी बरसा जबकि चूरू में दोपहर को 4.4 एमएम बारिश रिकॉर्ड की गई है। जिले के शेष इलाकों में कहीं बादल छाए रहे तो कहीं बूंदाबांदी हुई। दिन का अधिकतम तापमान 34.3 व न्यूनतम तापमान 26.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।

इस बार की बारिश
ब्लॉक वर्षा
चूरू 296
सरदारशहर 201
रतनगढ़ 318
सुजानगढ़ 236
राजगढ़ 259
तारानगर 408
औसत 286.33
(वर्षा एमएम में, भू- राजस्व शाखा के अनुसार)

गत दस वर्ष की स्थिति
साल -----------वर्षा
2000--------- 233
2001 ---------372
2002 ---------162
2003 ---------414
2004 ---------309
2005 ---------355
2006 ---------297
2007 ---------405
2008 --------506
2009 --------266
तारानगर पर अधिक मेहरबान
जिले में इस बार अब तक बदरा तारानगर ब्लॉक पर सबसे अधिक मेहरबान हुए हैं। यहां पर 408 एमएम बारिश हो चुकी है, जो तारानगर में वर्ष 2000, 02, 03, 06 व 09 के दौरान हुई कुल बारिश से अधिक है। उधर, अब तक सबसे कम 201 एमएम बारिश सरदारशहर ब्लॉक में रिकॉर्ड की गई है।

फसलों में कीट व रोग का प्रकोप
अच्छी बारिश के चलते खेतों में खरीफ फसलें लहलहाने लगी हैं। कीट व रोगों ने भी फसलों को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है। कृषि विभाग के उपनिदेशक डॉ. होशियार सिंह के नेतृत्व में एक टीम ने गुरुवार को चूरू तहसील के गांव बीनासर व देपालसर आदि के खेतों का दौरा किया तो मंूग,मोठ ग्वार में रोग का प्रकोप पाया गया। हालांकि कीट व रोग अभी शुरुआती चरण में है, इसलिए फसलों को खास नुकसान नहीं हो रहा है। टीम ने किसानों को कीट व रोगों से बचाव की सलाह दी है। टीम में कृषि अधिकारी भारत भूषण शर्मा, कृषि विज्ञान केन्द्र के डॉ. मुकेश शर्मा, जीएस पुण्डीर आदि शामिल थे।

Wednesday, August 11, 2010

अंग्रेजी की राह में 'कांटे'

महाविद्यालय हलचल :
लोहिया महाविद्यालय में अंग्रेजी का एक भी व्याख्याता नहीं
चूरू. विदेशी भाषा सीख कर कॅरियर बनाने की सोच रहे राजकीय लोहिया महाविद्यालय के सैकड़ों विद्यार्थियों का सपना टूटता नजर आ रहा है। समस्या यह है कि नए सत्र का आगाज हो चुका है मगर महाविद्यालय में अंग्रेजी का एक भी व्याख्याता नहीं है। ऐसे में अनिवार्य अंग्रेजी और अंग्रेजी साहित्य के विद्यार्थियों की राह में 'कांटेÓ दिखाए दे रहे हैं। नए सत्र में अंग्रेजी की कक्षाएं शुरू करने को लेकर महाविद्यालय प्रबंधन की भी चिंता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। उधर, डाइट में सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों को अंग्रेजी में अधिक पारंगत करने के लिए स्थापित लिंग्वा लैब प्रशिक्षक के अभाव में बंद पड़ी है। यहां पर इस साल मार्च में ही प्रशिक्षक का पद खाली हो गया था। लोहिया महाविद्यालय की लिंग्वा लैब का हाल ऐसा ही है। अंग्रेजी का व्याख्याता उपलब्ध नहीं होने के कारण पिछले साल अक्टूबर से लैब पर ताला लगा हुआ है। महाविद्यालय ने अंग्रेजी व्याख्याता नियुक्त किए जाने का प्रस्ताव आयुक्तालय को भेजा है। प्रस्ताव पर अमल जब होगा तब होगा इस शिक्षा सत्र में तो विद्यार्थियों के लिए अंग्रेजी पढऩे की राह में बाधा ही है।

तीनों पद खाली
जिले के इस एक मात्र मॉडल कॉलेज में अंगे्रजी व्याख्याताओं के कुल तीन पद स्वीकृत हैं, इनमें से एक पद करीब दस साल से खाली पड़ा है जबकि पिछले साल अक्टूबर में उप प्राचार्य पद पर प्रमोशन पाकर व्याख्याता जीएस महला राजकीय रूईया महाविद्यालय रामगढ़ शेखावाटी में तथा एचआर ईसराण राजकीय महाविद्यालय सरदारशहर चले गए। तब से लोहिया महाविद्यालय में अंग्रेजी पढ़ाने वाला कोई नहीं है। इससे विद्यार्थी अंग्रेजी पढऩे से वंचित हो रहे हैं।

लैब पर जड़ा ताला
महाविद्यालय में करीब चार वर्ष पूर्व स्थापित लिंग्वा लैब पर वर्तमान में स्टाफ के अभाव में ताला लगा हुआ है। लैब में माइक्रोफोन, हैडफोन, ऑडियो कैसेट आदि उपकरण धूल फांक रहे हैं। महाविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य के विद्यार्थियों की संख्या तकरीबन पांच सौ के आस-पास है। साथ ही तीनों संकायों में अनिवार्य विषय के रूप में अंग्रेजी चुनने वाले विद्यार्थी भी सैकड़ों में हैं।

डाइट में लिंग्वा लैब को प्रशिक्षक का इंतजार
डाइट में राजकीय प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों में अंग्रेजी विषय पढ़ाने का स्तर सुधारने के उद्देश्य से नवम्बर 2008 में लिंग्वा लैब की स्थापना की गई। जिले के एक हजार 460 प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों में से अब तक180 को ही प्रशिक्षित किया गया है। 24 शिक्षकों को एक साथ प्रशिक्षण देने की क्षमता वाली यह लैब 23 मार्च 2010 के बाद से बंद पड़ी है। यहां पर प्रशिक्षक के रूप में तैनात सेवानिवृत अंग्रेजी व्याख्याता ओमप्रकाश तंवर व हीरालाल महर्षि बीएड महाविद्यालयों में चले गए। तब से डाइट में अंग्रेजी का कोई प्रशिक्षण शिविर नहीं लगाया जा रहा है।

क्या है लिंग्वा लैब
लिंग्वा लैब का नाम लैंगवेज से पड़ा है। लैब का उद्देश्य विद्यार्थियों का उच्चारण सुधार कर अंग्रेजी बोलने की झिझक दूर करना है। लैब में विद्यार्थियों को अंगे्रजी की विशेष अभ्यास पुस्तिका से देखकर अंग्रेजी में अपनी भाषा टेप रिकॉर्डर में रिकॉर्ड करनी पड़ती है, जिसे हैडफोन के जरिए सुनने पर एक विशेष मशीन की मदद से उच्चारण आसानी से सुधारा जा सकता है। यह प्रक्रिया इतनी सरल है कि इससे कम समय में फटाफट अंग्रेजी बोलनी सीखी जा सकती है।

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अंग्रेजी का एक भी व्याख्याता नहीं है। इस समस्या की ओर आयुक्तालय का ध्यान दिलाया जा चुका है। जल्द ही व्याख्याताओं की तबादला सूची जारी होने वाली है। यहां के खाली पद भी भरे जाने की उम्मीद है। किसी कारणवश यदि ऐसा नहीं हुआ तो वैकल्पिक व्यवस्था से पढ़ाएंगे।
-एमडी गोरा, प्राचार्य, लोहिया महाविद्यालय, चूरू
लैब से जिलेभर के शिक्षक लाभान्वित हो सकते हैं। फिलहाल प्रशिक्षक के अभाव में लैब बंद कर रखी है। सर्व शिक्षा अभियान के माध्यम से प्रशिक्षक तैनात किए जाने हैं।
-सत्यनारायण स्वामी, प्रभारी, लिंग्वा लैब, डाइट, चूरू

प्रवेश तो दे देंगे, बैठाएंगे कहां?

महाविद्यालय हलचल :
जिले के मॉडल कॉलेज में कमरों का टोटा, सेक्शन बढऩे से बढ़ी परेशानी
चूरू. महाविद्यालयों में हाल ही सीटें बढ़ाए जाने से भले ही विद्यार्थी खुशी से फूले नहीं समा रहे हों मगर चूरू के राजकीय लोहिया महाविद्यालय प्रबंधन के लिए बढ़ी हुई सीटें कोढ़ में खाज साबित हो रही हैं। दरअसल जिले के सबसे बड़े और मॉडल कॉलेज का दर्जा प्राप्त इस महाविद्यालय में विद्यार्थियों को बैठाने के लिए पर्याप्त कक्षा कक्ष नहीं हैं। लम्बे समय से पर्याप्त कक्षा कक्षों की समस्या से जूझ रहे लोहिया महाविद्यालय में इस बार कला संकाय में 160 व वाणिज्य संकाय में 80 सीटें बढऩे से विद्यार्थियों को बैठाने को लेकर समस्या खड़ी हो गई है। फिलहाल महाविद्यालय में कक्षाएं लगाने के लिए आवश्यकता की तुलना में कम कक्ष ही उपलब्ध हैं। महाविद्यालय में तीन संकायों के यूजी व पीजी के विद्यार्थियों की संख्या चार हजार के आस-पास है। वाणिज्य संकाय की कक्षाएं सुबह 8 बजे, कला संकाय की 9 बजे व विज्ञान संकाय की 10 बजे शुरू होती हैं। दोपहर 12 बजे बाद तो महाविद्यालय में विकट स्थिति पैदा हो जाती है। विद्यार्थियों को बैठने के लिए कमरे खाली नहीं मिलते।

कितनी है आवश्यकता
महाविद्यालय में यूजी कक्षाओं के कुल चालीस सेक्शन हैं। इनमें तीनों संकाय के प्रथम वर्ष के 18, द्वितीय वर्ष के 12, तृतीय वर्ष के 10 सेक्शन शामिल हैं। इसके अलावा एमकॉम में एबीएसटी, ईएफएम, बीएडएम, एमए में राजनीतिक विज्ञान व इतिहास और एएससी में केमिस्ट्री, बॉटनी और जूलॉजी के कक्षाओं के लिए कम से कम 16 कक्षा कक्षों की आवश्यकता है। महाविद्यालय को प्रभावी शिक्षण व्यवस्था बनाए रखने के लिए 56 कक्षा कक्षों की दरकार है।

क्या है उपलब्धता

महाविद्यालय की ऊपरी व निचली मंजिल पर कुल 87 कमरें बने हुए हैं। इनमें से प्राचार्य, विभागाध्यक्ष, स्टाफ, प्रयोगशालाएं, लेखा शाखा, स्टोर, नॉलेज सेंटर, पुस्तकालय, कॉमन रूम, कम्प्यूटर फेसिलिटी सेंटर, एनएसएस व एनसीसी आदि के लिए पचास से अधिक कमरे आवंटित हैं। कक्षा कक्ष के रूप में 35-40 कमरे काम लिए जा रहे हैं। महाविद्यालय के छह कमरों में विधि महाविद्यालय संचालित है।

क्या है समाधान
महाविद्यालय में कक्षा कक्षों की संख्या बढ़ाने के लिए किसी संकाय का अलग से ब्लॉक बनवाने की यूजीसी से मांग की जा सकती है। इसके अलावा महाविद्यालय के छात्रावास में वैकल्पिक व्यवस्था भी की जा सकती है। जानकारी के अनुसार महाविद्यालय के पास स्थित छात्रावास में कुल 128 कमरे हैं। विद्यार्थियों के रहने के लिए छात्रावास का आधा परिसर ही काम आ रहा है। छात्रावास में कम छात्र संख्या वाली कक्षाएं लगाए जाने पर भी विचार किया जा सकता है।

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महाविद्यालय ने निश्चित रूप से कक्षा कक्षों की कमी है। फिर भी शिक्षण व्यवस्था किसी प्रकार से प्रभावित नहीं होने दी जा रही है। इस बार आवश्यकता पड़ी तो पोर्च व गैलेरी में कक्षाएं संचालित कर लेंगे। इसके अलावा छात्रावास के खाली कमरे काम में ले लेंगे।
-एमडी गोरा, प्राचार्य, लोहिया महाविद्यालय, चूरू

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महाविद्यालय में छात्र संख्या चार हजार के आस-पास रहती है। मगर कक्षा कक्षों का हमेशा से अभाव ही रहा है। छात्रावास के खाली कमरों को काम लिया जा सकता है। हालांकि छात्रावास के कमरे अपेक्षाकृत छोटे हैं मगर उनमें पीजी की कक्षाएं आसानी से संचालित की जा सकती हैं।
-भंवर सिंह सामौर, पूर्व प्राचार्य, लोहिया महाविद्यालय,
२0 जुलाई 2010

Wednesday, August 4, 2010

पढ़ाई का पीटे 'ढोल', गुणवत्ता में 'गोल'

चूरू. जिले के सरकारी विद्यालय बच्चों को पढ़ाने का भले ही 'ढोल' पीट रहे हो मगर पढ़ाई से गुणवत्ता 'गोल' होती जा रही गणित, विज्ञान और अंग्रेजी जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर पकड़ नहीं बना पा रहे हैं। विद्यालयों की यह कड़वी सच्चाई क्वालिटी इंश्योरेंश परीक्षण में सामने आई है। जिलेभर के एक हजार 55 राजकीय उच्च प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालयों में कक्षा छह सात के 32 हजार 146 विद्यार्थियों की इस साल दस से बारह जनवरी को विशेष परीक्षा हुई, जिसमें विद्यार्थियों से गणित, अंग्रेजी व विज्ञान विषय के प्रश्न हल करवाए गए। आधिकारिक जानकारी के अनुसार परीक्षण के परिणामों को हाल ही अंतिम रूप दिया गया है। जिले को 59 प्रतिशत अंकों के साथ 'सीÓ ग्रेड में रखा गया है। जिलेभर के 86 विद्यालय तो उत्तीर्ण होने योग्य अंक भी हासिल नहीं कर पाए हैं। इन्हें आठ से 35 प्रतिशत तक अंक प्राप्त हुए हैं। 150 विद्यालयों को डी ग्रेड मिली हैं। महज 123 विद्यालयों को 8 0 या इससे अधिक प्रतिशत अंक हासिल हुए हैं। जिले में 96 प्रतिशत अंक प्राप्त कर सुजानगढ़ के गांव सारोठिया का राजकीय माध्यमिक विद्यालय तथा सरदारशहर के गांव रायपुरिया का राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय संयुक्त रूप से प्रथम स्थान पर रहे। तारानगर के गांव राजपुरा का राजकीय माध्यमिक विद्यालय फिसड्डी रहा।
माध्यमिक स्कूल भी फेल
पढ़ाई के मामले में राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय अधिक फिसड्डी रहे हैं मगर राजकीय माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालयों की स्थिति भी अच्छी नहीं कही जा सकती। जिले में एक दर्जन से अधिक माध्यमिक स्तर के विद्यालय परीक्षण में खरे नहीं उतर पाए हैं। सुुजानगढ़ में गांव शोभासर, छापर, जैतासर, ईंयारा, चूरू में आसलखेड़ी, खींवासर, सिरसला, बालरासर आथुना, हरिया देवी दूधवा, राजगढ़ में भोजाण, पहाड़सर, जसवंतपुरा, बैरासर छोटा, ददरेवा, तारानगर में धीरवास बड़ा, राजुपरा, तारानगर, कोहिणा, सरदारशहर में दूलरासर तथा रतनगढ़ में परसनेऊ, राजलदेसर, जांदवा, लोहा व भुखरेड़ी में स्थित माध्यमिक स्तर के विद्यालय को निम्न ग्रेड मिली है।

ऐसे हुई परीक्षा
एसएसए के तहत क्वालिटी इंश्योरेंस परीक्षण हुआ। राजस्थान प्रारम्भिक शिक्षा परिषद जयपुर के स्तर पर प्रश्न तैयार कर विद्यालयों में पहुंचाए गए। बेरोजगार प्रशिक्षक अध्यापक व कार्यरत सरकारी शिक्षकों ने विद्यालयों में जाकर कक्षा छह व सात के विद्यार्थियों की परीक्षा ली। कॉपियों की जांच ब्लॉक पर बीआरसीएफ कार्यालय में अनुभवी शिक्षकों से करवाई गई।

किसके कितने फेल
ब्लॉक स्कूल
सुजानगढ़ 9
चूरू 27
राजगढ़ 15
तारानगर 11
सरदारशहर 10
रतनगढ़ 14

यह रहा पैमाना
ग्रेड----- प्राप्तांक
ए----- 80 या इससे अधिक प्रतिशत
बी----- 65 से 79 प्रतिशत
सी----- 50 से 64 प्रतिशत
डी----- 36 से 49 प्रतिशत
ई----- 36 प्रतिशत से नीचे
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क्वालिटी इंश्योरेंश परीक्षण के जरिए जिलेभर के एक हजार से अधिक स्कूलों के 32 हजार 146 विद्यार्थी की परीक्षा लेकर गुणवत्ता परखी गई। परीक्षण के परिणाम को हाल ही अंतिम रूप दिया गया है। जिले को सी ग्रेड मिली है। न्यून परिणाम वाले विद्यालय में जनवरी व फरवरी में अतिरिक्त कक्षाएं लगाई जाएंगी।
-जगदीश प्रसाद गोदारा, कार्यक्रम सहायक, एसएसए चूरू

Sunday, July 18, 2010

छात्र घोलने लगे 'राजनीति' का रंग

[ छात्रसंघ चुनाव 2010 ] :
छात्र संगठन हुए सक्रिय,
चुनाव की प्रारम्भिक तैयारियां शुरू
चूरू. महाविद्यालयों में अगले माह प्रस्तावित छात्रसंघ चुनावों का रंग घुलने लगा है। चुनाव को लेकर जहां छात्रों के घुंघरू बंध गए हैं वहीं छात्र संगठनों की सक्रियता बढ़ गई है। संगठनों ने चुनाव की प्रारम्भिक तैयारियां शुरू कर दी है। कोई सदस्यता अभियान शुरू करने जा रहा है तो कोई पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाकर चुनावी रणनीति बनाने की तैयारी में हैं। छात्र संगठन महाविद्यालयों में सीटें बढ़ाने की मांग को लेकर गुरुवार तक धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। अब सीटें बढ़ाए जाने पर संगठनों में चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। जिले में सक्रिय एसएफआई, एनएसयूआई व एबीवीपी समस्त सरकारी महाविद्यालयों में अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी में हैं। हालांकि महाविद्यालय प्रबंधन को चुनाव के संबंध में अभी तक कोई अधिकृत जानकारी नहीं मिली है। ऐसे में महाविद्यालय प्रबंधन असंमजस की स्थिति में है।

एसएफआई
स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इण्डिया (एसएफआई) की रविवार को चूरू के शिक्षक भवन में जिला कमेटी की प्रथम बैठक होगी। इसमें लोहिया कॉलेज इकाई के साथ चुनाव रणनीति को लेकर विस्तृत चर्चा होगी। पार्टी की सरदारशहर इकाई की बैठक सोमवार को होगी। जिलाध्यक्ष दीपचंद बलौदा ने बताया कि पार्टी की तारानगर में बैठक हो चुकी है। सुजानगढ़ में पार्टी कम सक्रिय होने के कारण वहां पर बाद में बैठक होगी।
एबीवीपी
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) चुनावों को लेकर 19 जुलाई से सदस्यता अभियान शुरू करेगी। इस बार साढ़े तीन हजार नए सदस्यों के साथ सदस्यों की कुल संख्या दस हजार तक पहुंचाने का लक्ष्य है। फिलहाल फतेहपुर में सीकर, चूरू, झुंझुनूं के कार्यकर्ताओं का दो दिवसीय अभ्यास शिविर चल रहा है। जिला प्रमुख ओमप्रकाश महर्षि के अनुसार अगस्त में उम्मीदवार तय किए जाएंगे।
एनएसयूआई
छात्रसंघ चुनाव की तैयारियों को लेकर एनएसयूआई भी पीछे नहीं है। पार्टी की जिला कार्यकारिणी की बैठक में प्रभारी नियुक्त किए जाएंगे। प्रभारियों की रिपोर्ट के आधार पर उम्मीदवारी तय होगी। जिलाध्यक्ष भींवाराम मेघवाल के अनुसार चुनाव रणनीति बनाने के लिए पार्टी पदाधिकारी पूरी तरह सक्रिय हो गए हैं। जिला कार्यकारिणी की बैठक का समय और स्थान मंगलवार तक निर्धारित किया जाएगा।

यह रहेगा कार्यक्रम
राज्य सरकार ने छात्रसंघ चुनाव कार्यक्रम घोषित कर दिया है। 16 अगस्त को मतदाता सूचियां प्रकाशित की जाएंगी। 19 अगस्त तक नामांकन पत्र दाखिल किए जा सकेंगे। 20 अगस्त को नाम वापस लिए जा सकेंगे। 21 अगस्त को अंतिम सूची प्रकाशित होगी। 25 अगस्त को सुबह आठ से दोपहर एक बजे तक वोट डाले जाएंगे।
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चुनाव के संबंध में उच्च अधिकारियों से अभी तक कोई लिखित जानकारी नहीं आई है। टीवी और अखबारों से ही पता चला है कि 25 अगस्त को चुनाव हंै।अधिकृत सूचना मिलने पर महाविद्यालय स्तर पर चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी जाएंगी।
-एमडी गोरा, प्राचार्य, राजकीय लोहिया महाविद्यालय, चूरू

Thursday, July 15, 2010

बिना धुएं का खाना हुआ 'धुआं'

चूरू । जिले के एक हजार से अघिक सरकारी स्कूलों में मिड डे मील कार्यक्रम के तहत बच्चों को बिना धुएं का भोजन खिलाए जाने का सरकार का सपना धुआं होता जा रहा है। स्कूलों में रसोई गैस की उपलब्धता अब तक सुनिश्चित नहीं हो पाई है। इसके लिए भले ही रसद विभाग, शिक्षा विभाग व गैस वितरिकों के अलग-अलग दावे-प्रतिदावे रहे हों, मगर स"ााई है कि इस लक्ष्य को पाने में किसी ने भी स"ो मन से कतई प्रयास नहीं किए हैं।
रसद विभाग की मानें तो उन्हें इस संबंध में गैस वितरिकों की ओर से कनेक्शन मुहैया नहीं करवाने की पहले कभी शिकायत ही नहीं मिली । रसद विभाग इस बारे में आगे खोज-खबर कब लेगा यह तो पता नहीं लेकिन गैस वितरकों का यह कहना है कि उन तक कनेक्शन लेने के लिए स्कूलों ने गंभीर प्रयास ही नहीं किए।
उधर, स्कूलों का तर्क है कि आवेदन करने के बाद वितरकों से कई बार सम्पर्क साधा गया किन्तु कनेक्शन देने में उन्होंने रूचि एवं तत्परता नहीं दर्शाई। रसोई गैस के अभाव में भोजन पकाना टेढी खीर साबित हो रहा है।


कब-कब जारी की राशि
शिक्षा विभाग ने रसोई गैस कनेक्शन के लिए मिड डे मील कार्यक्रम से जुडे 136 विद्यालयों के खातों में 1 अक्टूबर 2008 को पांच-पांच हजार रूपए के हिसाब से 6 लाख 80 हजार रूपए जमा करवाए थे। इस साल मार्च में 575 स्कूलों को 23 लाख रूपए जारी किए गए। वर्तमान में किसी भी स्कूल को गैस कनेक्शन नहीं मिल पाया है। कुछ विद्यालयों को छोडकर शेष विद्यालयों ने तो रसोई गैस पाने की दिशा में कदम ही नहीं बढाए हैं।


1231 स्कूलों में समस्या
जिले के 1 हजार 8 8 5 स्कूल में 2 लाख 933 विद्यार्थी मिड डे मील का पोषाहार पा रहे हैं। इनमें दस फीसदी स्कूलों ने अपने स्तर पर रसोई गैस की व्यवस्था कर रखी है जबकि 46 6 स्कूलों में अन्नपूर्णा सहकारी समितियो के माध्यम से पोषाहार पहुंचाया जा रहा है। शेष एक हजार 231 स्कूलों में शाला विकास प्रबंध समिति लकडी व गोबर के उपले से पोषाहार पकाने को मजबूर है।


जोखिम के साथ बीमारी भी
स्कूलों में चूल्हे पर लकडी व गोबर के उपलों से भोजन पकाने पर धूएं के कारण विद्यार्थियों का दम घुटता है। इससे विद्यार्थियो के बीमारियों की चपेट में आने की आशंका भी बनी रहती है। साथ ही पकाने के बाद चूल्हे में लकडियां जलती रहने के कारण छोटे ब"ाों का विशेष्ा ध्यान रखना पडता है।


यह होता है पकाना
कार्यक्रम के तहत कक्षा एक से आठवीं तक के विद्यार्थियों को मध्यान अवकाश में भोजन परोसा जाता है। सप्ताह में चार दिन रोटी-सब्जी व दाल-रोटी तथा दो दिन मीठे या नमकीन चावल तथा दाल-खिचडी खिलाई जाती है।
नवम्बर 2009 में कनेक्शन के लिए आवेदन किया था। आज तक कनेक्शन नहीं मिला। एजेंसी का तर्क है कि कनेक्शन के दस्तावेज संभाग मुख्यालय बीकानेर भेज दिए गए। बीकानेर से कर्मचारी आकर कनेक्शन जारी करेंगे।
-छगनलाल शर्मा, संस्था प्रधान, राउप्रावि नम्बर आठ, चूरू



संस्थाओं को गैस कनेक्शन एग्जम्पटेड श्रेणी में दिया जाता है। जो संभाग स्तरीय ऑफिस से जारी किया जाएगा। करीब 25 विद्यालयों के मामले बीकानेर भिजवाए हुए हैं। स्कूलों को जल्द ही कनेक्शन दिलवाया जाएगा।
-श्यामसुन्दर बगडिया, संचालक, बगडिया गैस एजेंसी, चूरू

स्कूलों में रसोई गैस कनेक्शन नहीं मिलने की जानकारी आज ही बैठक में मिली है। एजेंसियों व शिक्षा अघिकारियों से इस संबंध में चर्चा कर आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।
-हरलाल सिंह, रसद अघिकारी, चूरू


गत शनिवार को गांव श्योपुरा के राजकीय बालिका उच्च प्राथमिक विद्यालय का निरीक्षण किया तो उपलों से पोषाहार पकाया जा रहा था। दो साल से गैस कनेक्शन का इंतजार है। इस संबंध में मंगलवार को आयुक्त को भी पत्र लिखा गया है।
-युनूस अली, सहायक प्रभारी, मिड डे मील कार्यक्रम, चूरू

Tuesday, July 13, 2010

एक बार बीमा तीन साल लाभ

गाय बीमा-भैंस बीमा योजना
चूरू। गाय और भैंस का बीमा करवाने के लिए पशुपालकों को विभाग के हर साल चक्कर नहीं लगाने पडेंगे। अब पशुओं का तीन साल तक का बीमा एक ही बार में करवाया जा सकेगा। यह सब चालू वित्तीय वर्ष से शुरू हुई गाय बीमा-भैंस बीमा योजना के तहत होगा। इससे पूर्व पशुपालक कामधेनू व भैंस बीमा योजना के अन्तर्गत पशुओं का एक बार में एक ही साल का बीमा करवा सकते थे।
खास बात यह है कि योजना से अघिकतम पशुपालक लाभान्वित हो सकेंगे, क्योंकि पूर्व में एक वर्ष तक का बीमा होने पर दूसरे वर्ष का लक्ष्य भी उन्हीं पशुओं का बीमा करके पूर्ण कर दिया जाता था। अब तीन वर्ष तक का बीमा एक साथ होने पर बीमा का लक्ष्य पूरा करने के लिए हर वर्ष नए पशुओं का बीमा करना होगा।

बीमा का लक्ष्य
राजस्थान लाइव स्टॉक डवलपमेंट बोर्ड के माध्यम से लागू की गई योजना के अन्तर्गत चालू वित्तीय वर्ष के दौरान प्रदेशभर में 85 हजार पशुओं के बीमा का लक्ष्य रखा गया है। चूरू में तीन हजार व सीकर और झुंझुनूं में पांच-पांच हजार पशुओं का बीमा किया जाना है।

बार-बार नहीं लेने पडेंगे प्रमाण पत्र
पूर्व में पशुपालकों को बीमा करवाने के लिए प्रति वर्ष चिकित्सकों से पशु का स्वास्थ्य प्रमाण पत्र लेना पडता था। अब तीन साल में एक ही बार लिए गए प्रमाण पत्र से काम चल सकेगा।

सालभर का प्रीमियम बचेगा
नई योजना से पशुपालकों को आर्थिक लाभ भी होगा। पशुपालक एक साल के बीमा प्रीमियम की राशि बचा सकेंगे। पूर्व में गाय का बीमा कराने पर प्रीमियम के रूप में प्रतिवर्ष 300 रूपए तथा भैंस का बीमा कराने पर प्रतिवर्ष 600 रूपए जमा कराने पडते थे। अब तीन साल का बीमा प्रीमियम क्रमश: 600 व 1200 रूपए एक साथ एक ही बार जमा होंगे।
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योजना के तहत पशुओं का बीमा करना शुरू कर दिया है। योजना से किसानों को कई लाभ होंगे। एक बार बीमा करवाने के बाद तीन साल तक चिंता मुक्त हो सकेेगे। जिले में चालू वित्तीय वर्ष में तीन हजार गाय व भैंस का बीमा करना है।
-विजय मोहन चौधरी, उपनिदेशक, पशुपालन विभाग, चूरू

Monday, July 12, 2010

कल्याण की राह में अधिकारी रोड़ा

[सशस्त्र झण्डा दिवस आज] झण्डा दिवस के ध्वज व स्टीकरों के लाखों बकाया
चूरू। शहीदों की शहादत पर गर्व महसूस करने वाले अधिकारी ही उनके परिवार और आश्रितों के कल्याण की राह में बाधा बने हुए हैं। बात भले ही गले नहीं उतर रही हो, परन्तु सरकारी कार्यालयों में धूल फांकते सशस्त्र सेना झण्डा दिवस के स्टीकर और ध्वज देख इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। आलम यह है कि अधिकांश अधिकारी शहीदों के आश्रितों को संभल प्रदान करने मेंं कतई गंभीर नहीं है। झण्डा दिवस के मौके पर पत्रिका टीम ने जिला सैनिक कल्याण अधिकारी कार्यालय के रिकॉर्ड खंगाले तब अधिकारियों का यह दूसरा चेहरा सामने आया।
जिलेभर में 63 अधिकारी शहीदों के आश्रितों के कल्याण के 11 लाख 62 हजार 750 रुपयों पर कुंडली मारे बैठे हैं। अधिकारियों को इस राशि के स्टीकर और ध्वज 1996 से 2009 के दौरान वितरित किए गए थे। ऐसे में अधिकारियों के भरोसे शहीदों के परिवारों का मनोबल बढ़ाने की सोचना बेमानी होगा। हालांकि प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी जिलेभर के 96 अधिकारियों को 100 से 6000 स्टीकर व ध्वज वितरित किए जाएंगे। लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ अगर कोई कदम नहीं उठाया गया तो इस साल के स्टीकरों और ध्वज को भी सरकारी कार्यालयों में धूल फांकने में देर नहीं लगेगी।

बढ़ता बकाया का आंकड़ा
वर्ष ---------बकाया
1996-------- 2000
1997-------- 2000
1998-------- 500
1999-------- 2300
2000-------- 1200
2001-------- 400
2003-------- 13000
2004-------- 3000
2005-------- 5700
2006-------- 26920
2007-------- 43600
2008-------- 476800
2009-------- 585330
कुल----------11,62,750

सर्वाधिक लापरवाह डीटीओ
कल्याण की राह में रोड़ा बनने वाले अधिकारियों में बकाया के लिहाज से जिला परिवहन अधिकारी पहले पायदान पर हैं। डीटीओ पर वर्ष 2008 के एक लाख 97 हजार रुपए तथा वर्ष 2009 के दो लाख 25 हजार रुपए बकाया हैं। पीएचईडी के एसई व एसपी पर बकाया का आंकड़ा एक लाख को पार कर चुका है। बकाया के मामले में अन्य अधिकारियों की स्थिति भी ज्यादा अच्छी नहीं है।

क्या झण्डा दिवस
देश की आन, बान और शान के लिए जान की बाजी लगाने वाले शहीद की याद और सेवारत सैनिकों के साथ राष्ट्र की एकजुटता दर्शाने के उदे्श्य से प्रतिवर्ष सात दिसम्बर को देशभर में झण्डा दिवस मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न विभागों को विशेष प्रकार के ध्वज व स्टीकर वितरित किए जाते हैं। जिन्हें वाहनों पर लगाकर या जन समूह को वितरित कर राशि जुटाई जाती है। यह राशि जिला सैनिक कल्याण कार्यालय के माध्यम से अमल गमैटेड फण्ड में भेजी जाती है। जिसका उपयोग युद्ध विकलांग एवं शहीदों के परिवारों का पुर्नवास, सेवानिवृत व सेवारत सैनिकों एवं उनके परिवारों के लिए संचालित कल्याणकारी योजनाओं में किया जाता है।

यूं जमा होगी राशि
इस वर्ष प्रति स्टीकर दस रुपए तथा प्रति वाहन पताका (ध्वज) पचास रुपए निर्धारित किए गए हैं। स्टीकर व ध्वज से एकत्रित की गई राशि अधिकारियों को नकद, ड्राफ्ट या चेक के माध्यम से जिला सैनिक कल्याण अधिकारी कार्यालय में जनवरी तक जमा करानी होगी।

अधिकारियों के वेतन में से काटेंगे
इस वर्ष स्टीकर एवं ध्वज का वितरण करने के एक माह ही इसकी समीक्षा की जाएगी। वर्षों पुराने बकाया की भरपाई संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतन में से काटकर करेंगे। इस बार बचे हुए स्टीकर व ध्वज को कार्यालय में रखने की बजाय सैनिक कल्याण अधिकारी कार्यालय वापस लौटा देंगे।
-विकास एस भाले, जिला कलक्टर एवं जिला सैनिक बोर्ड के अध्यक्ष, चूरू

सिमटेंगे बिखरे गांव

पंचायत स्तर पर रायशुमारी
विश्वनाथ सैनी @ चूरू। एक होकर भी अनेक नाम से पहचाने जाने वाले जिले के कई राजस्व गांवों को एक नाम और एक पहचान दी जाएगी। प्रशासनिक स्तर पर उपजे इस विचार को हकीकत में बदलने के लिए पंचायत स्तर पर रायशुमारी शुरू हो चुकी है। ग्रामीणों की सर्व सहमति बनी और राजनीतिक स्वीकृति मिली तो इन गांवों की कायाकल्प हो जाएगी। जिले के करीब 148 राजस्व गांव व्यवहारिक तौर पर 64 गांव ही हैं। छोटे-छोटे भू-भागों में बंटे होने तथा जाति व गौत्र विशेष के नाम से पैतृक पहचान पाने के कारण ये गांव एक होकर भी अनेक बने हुए हैं।
उदाहरण के तौर पर चूरू तहसील का गांव धीरासर रिकॉर्ड में धीरासर बीकान, धीरासर शेखावतान व धीरासर चारणान नाम से दर्ज है। कई गांव दिशा के नाम पर उतरादा व दिखनादा, आथुना व आगुना जैसे नामों में विभक्त हैं। इसी प्रकार कुछ गांव क्षेत्रफल के लिहाज से बैरासर बडा, छोटा, व मझला में बंट गए। एकीकरण की प्रक्रिया में गांव धीरासर के विभाज्य नाम बीकान, शेखावतान व चारणान हटा दिए जाएंगे। ऎसे ही बडा, छोटा हटा कर गांव बैरासर नाम से ही जाना जाएगा। राजस्व रिकॉर्ड में गांव का नाम एक ही रहेगा। भविष्य में गांव के मूल नाम के आधार पर ही उसका जमाबंदी रिकॉर्ड प्राप्त किया जा सकेगा।

देंगे मिश्रित नाम
जिन राजस्व गांवों का नाम गांव के वास्तविक नाम से मिलता-जुलता नहीं है। उन्हें एकीकरण में एक मिश्रित नाम दिया जाएगा। जैसे सुजानगढ तहसील के गांव देवाणी में शामिल राजस्व गांव रामपुर को मर्ज करने पर गांव का नया नाम देवाणी-रामपुर होगा। इस तरह की स्थिति का सामना रतननगर, छापर, बीदासर व सुजानगढ नगरपालिका क्षेत्र में शामिल राजस्व गांवों के नए नाम को लेकर भी होगी। रतननगर में थैलासर, छापर में पाण्डोराई, नरबदाबास, चेतावास, बीड छापर, बीदासर में दडीबा व चक दडीबा आदि ऎसे ही राजस्व गांव शामिल हैं।

क्या रहेगी प्रक्रिया
गांवों के एकीकरण के संबंध में ग्रामीणों की राय जानने के लिए संबंघित पंचायतों को पत्र भेजे हैं। पंचायतों से सहमति मिलने के बाद एकीकरण के प्रस्ताव राजस्व मण्डल अजमेर को भिजवाए जाएंगे। जहां से प्रस्ताव राज्य सरकार के पास भेजा जाएगा। इस पर राजनीतिक चिंतन व मंथन होने पर सरकार की ओर से अघिसूचना जारी होगी।

होंगे लाभ
-आबादी के हिसाब से गांव का कद बढेगा
-गांव को भविष्य में बैंकिंग व संचार सुविधाएं मिल सकेंगी
-पानी, बिजली, शिक्षा, चिकित्सा सुविधाएं होंगी बेहतर
-प्रशासनिक व्यवस्थाएं सुदृढ बनाई जा सकेंगी
-सरकारी योजनाओं का होगा प्रभावी क्रियान्वयन
-यातायात व आवागमन साधनों में होगा इजाफा
-गांव नगरपालिका बनने के कगार पर पहुंच जाएगा
-सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ होगी
कुछ नुकसान भी
- राजस्व गांव के नाम मिलने वाली अतिरिक्त सुविधा छिनेगी
-राजस्व जमाबंदी का रिकॉर्ड एक ही स्थान पर रहेगा
-सरकारी कर्मचारियों की संख्या कम होगी
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गांवों के एकीकरण की दिशा में कदम बढा दिए हैं। 64 वास्तविक गांवों में उनके मिलते-जुलते नामों के 148 राजस्व गांवों को एकीकरण के लिए चिह्नित किया है। पंचायतों को इस संबंध में पत्र भेजे हैं। पंचायतों की सहमति मिलते ही राजस्व मण्डल को एकीकरण के प्रस्ताव भेजेंगे। इससे ग्रामीणों को नुकसान की तुलना में फायदे अघिक होंगे।
-डा. केके पाठक, जिला कलक्टर, चूरू

Wednesday, June 23, 2010

ऊपर वाले से जोड़ लो कनेक्शन

दोस्तों, बचपन में हमने दो ही कनेक्शनों का नाम सुना था। एक पानी का और दूसरा बिजली का। पानी के कनेक्शन को लेकर घर में हल्ला तब होता था जब नल से पानी की बजाय हवा आकर रह जाती थी। उस वक्त बाबा पानी महकमे के अधिकारियों को न केवल खूब खरी-खरी सुनाते बल्कि पानी का कनेक्शन ही बदलने तक का मानस बना लेते थे।
बिजली का कनेक्शन तो हर चार-छह महीने बाद घर में बवाल मचा ही देता था। सैकड़ों में आने वाला बिजली का बिल अचानक हजारों में आता देख परिवार में हर किसी को जोर का झटका धीरे से लगता। घर में तीन लट्टू और एक पंखे पर खर्च की गई बिजली के पेटे डेढ़ हजार से अधिक का बिल आने पर बाबा बिल की राशि में संशोधन कराने के लिए महकमे के एईएन, जेईएन व कभी-कभी तो एसई तक पर भड़ास निकाल आते। अधिकारी एक ही जवाब देते कि आपका विद्युत मीटर धीमे चलता है। पिछले कई माह के बिलों की राशि इस बार जुड़कर आ गई। ऐसा वाकया कई बार होने पर बाबा ने एक बार तो बिजली का कनेक्शन ही कटवा दिया था। हालांकि बाद में बिल में संशोधन भी हो गया और हमारा घर रोशन भी।
खैर, छोड़ो उस वक्त हम निकर पहना करते थे, लेकिन पतलून पहननी शुरू की तब एक और कनेक्शन का नाम सुना। वो था टेलीफोन का कनेक्शन। मोहल्ले में एक फैक्ट्री मालिक ने पहली बार टेलीफोन का कनेक्शन लिया तो उन्होंने हर घर में मिठाई बांटी। वो बात बात में ऐसा महसूस कराते कि पूरी दुनिया से उनका घर बैठे कनेक्शन जुड़ गया। मोहल्ले में किसी के भाई, बेटे या रिश्तेदार का उनके टेलीफोन पर फोन आ जाता तो वे ऐसे बुलाने जाते जैसे फोन नहीं बल्कि वो व्यक्ति खुद चलकर उनसे बात करने आया हो।
भाई, मुद्दे की बात तो यह है कि अल्ला की मेहरबानी से हम पढ़ लिख लिए और दो पैसे कमाने भी लगे। मगर पिछले दिनों कालू कसाई की छोरी को छेड़ने के एक झूठे मामले में हम फंस गए। तब हमें हमारे तीन साल पुराने एक भायले ने एक और कनेक्शन के बारें में बताया। और वो था डीटीजी। पड़ गए ना सोच में। डीटीजी यानि डायरेक्ट टू गॉड।
जी, हां दोस्तों जिसने डीटीजी को जान लिया उसने मानों जिंदगी की आधी जंग जीत ली। ऊपर वाले से अगर सीधा जुड़ाव हो तो हमारी बिजली-पानी की तो क्या जीवन की बड़ी से बड़ी परेशानी को हल होते देर नहीं लगती। बशर्त उस अदृश्य शक्ति से हमारा कनेक्शन मजबूत हो यानि उसके प्रति अटूट आस्था और श्रद्धा में कोई कमी नहीं हो। उसने हमारे जीवन में जो होना है और जो ना होना है...वह पहले ही तय कर रखा है। किसी अनहोनी की आशंका में दिल घबरा जाए तो सब कुछ ऊपर वाले पर छोड़ दो। और इस विश्वास के साथ आगे बढ़ जाओ कि लाइफ में जो होगा अच्छा होगा...और जो नहीं हो रहा वो भी अच्छा हो रहा है...हमारे साथ कभी गलत नहीं होगा क्योंकि ऊपर वाले के साथ अपना कनेक्शन अच्छा है।

Thursday, June 17, 2010

एक शाम ग्रामीणों के नाम

पंचायतों में लगेगी चौपाल, अधिकारी सुनेंगे गांव की समस्या
चूरू. गांव की मुख्य समस्याओं के समाधान को लेकर ग्रामीणों को अब अधिकारियों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे, क्योंकि अधिकारी खुद ग्रामीणों के बीच एक शाम बिताकर समस्याओं का समाधान करेंगे। इसके लिए प्रशासन की ओर से ग्राम पंचायत मुख्यालय पर शाम को चौपाल लगाई जाएगी। गांव की अधिकांश समस्याओं का समाधान मौके पर ही होगा जबकि शेष समस्याओं को सरकार के पास भेजा जाएगा।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार जिले की कुल 249 ग्राम पंचायतों में से पांच-सात का एक समूह बनाया जाएगा। प्रत्येक समूह पर एक दिन शाम को चौपाल लगाकर अधिकारी ग्रामीणों से रू-ब-रू होंगे। चौपाल का नेतृत्व उपखण्ड अधिकारी, तहसीलदार व नायब तहसीलदार में से कोई एक करेगा। इनके अलावा चौपाल में बिजली, पानी, चिकित्सा, नरेगा व शिक्षा विभाग आदि के अधिकारी तथा सरपंच व ग्राम सेवक और पटवारी भी मौजूद रहेंगे।
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दिन में करेंगे समीक्षा
चौपाल से पूर्व दिन में विभिन्न विभागों के अधिकारी व कर्मचारी गांव में जाकर योजनाओं की समीक्षा करेंगे। शाम को चौपाल में ग्रामीणों के साथ समस्याओं के समाधान पर विस्तार से चर्चा करेंगे। नरेगा श्रमिकों को काम नहीं मिलने, भुगतान में देरी होने, पेयजल किल्लत, विद्यालय में स्टाफ लगाने जैसी समस्याओं का तत्काल समाधान किया जाएगा जबकि विद्यालय, स्वास्थ्य केन्द्र आदि की क्रमोन्नति के प्रस्ताव राज्य सरकार को भिजवाए जाएंगे।
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इनका कहना है...गांवों में चौपाल लगाने की तैयारियां शुरू कर दी हैं। दो ग्राम पंचायतों का कार्यक्रम भी तय कर लिया है। जिले की समस्त ग्राम पंचायतों में चौपाल लगाएंगे। इससे गांव की समस्याओं का समाधान आसानी से किया जा सकेगा।
-डा.केके पाठक, जिला कलक्टर, चूरू

Wednesday, June 16, 2010

गड़बड़ी के सारे सुराख बंद

राज्य में 15 अगस्त से लागू होगा ई-मस्टररोल
सबसे पहले चूरू ने किया था जारी
चूरू। महात्मा गांधी रोजगार गारण्टी योजना में मस्टररोल के जरिए होने वाली गड़बड़ी के सारे सुराख जल्द ही बंद हो जाएंगे। अब मस्टररोल में ना तो श्रमिकों के फर्जी नाम लिखे जा सकेंगे और ना ही हाजिरी में कांट-छांट की जा सकेगी। यह सब ई-मस्टररोल से संभव होगा। ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग आगामी 15 अगस्त से प्रदेशभर में ई-मस्टररोल व्यवस्था लागू करने जा रहा है।
राज्य में पहली बार ई-मस्टररोल गत वर्ष सितम्बर में चूरू जिला प्रशासन की ओर से अपने सुजानगढ़ ब्लॉक में जारी किया गया था। चूरू जिले में ई-मस्टररोल की सफलता के बाद विभाग ने इसे प्रदेश के अन्य जिलों में भी लागू करने का निर्णय किया है। विभाग ने ग्राम सेवक, ग्राम रोजगार सहायक, मेटों व अन्य संबंधित व्यक्तियों को ई-मस्टररोल व्यवस्था का प्रशिक्षण देने के लिए समस्त जिलों को मार्गदर्शिका भी भेजी है।
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अक्टूबर से होगा अनिवार्य
महानरेगा में 16 अगस्त से शुरू होने वाले पखवाड़़े से जिले की एक पंचायत समिति में ई-मस्टररोल जारी करना होगा। वहां पर पायलट के रूप में यह व्यवस्था 15 सितम्बर तक चलेगी। इस अवधि के अनुभव के आधार पर एक अक्टूबर से शुरू होने वाले पखवाड़े से सम्पूर्ण जिले में ई-मस्टररोल जारी होंगे।
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यूं कसी जाएगी लगाम
फिलहाल नरेगा में श्रमिकों की मांग के आधार पर पंचायत समिति कार्यालय से कार्य का नाम व अवधि अंकित कर मस्टररोल जारी किए जाते हैं। जिनमें मेट मस्टररोल में श्रमिकों के नाम दर्ज कर हाजिरी भरता है। मस्टररोल में श्रमिकों के फर्जी नाम व हाजिरी में गड़बड़ी कर नरेगा की राशि डकारने के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। ई-मस्टररोल भी साधारण मस्टररोल की तरह ही होगा, लेकिन इसे जारी करते समय श्रमिक का नाम, परिवार का बीपीएल नम्बर, मुखिया का नाम और काम की अवधि कम्प्यूटर से दर्ज की जाएगी।
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बैकलॉग भी नहीं रहेगा
ई-मस्टररोल जारी होने से मैनेजमेंट इंर्फोमेशन सिस्टम (एमआईएस) में मस्टररोल डाटा फीडिंग का बैकलॉग भी नहीं रहेगा। साधारण मस्टररोल से कम्प्यूटर में श्रमिकों के तमाम डाटा फीड करने में करीब डेढ़ माह तक बैकलॉग रहता है। जिससे नरेगा में बजट जारी होने में देरी होती है। ई-मस्टररोल में श्रमिकों की अधिकांश सूचनाएं पहले से ही दर्ज होने के कारण पखवाड़ा पूर्ण होने के दूसरे ही दिन एमआईएस में डाटा फीड किए जा सकेंगे।
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महानरेगा में ई-मस्टररोल लागू करने के संबंध में समस्त जिलों को दिशा-निर्देश दिए गए हैं। अगस्त व सितम्बर में इसे पायलट के रूप में लागू कर एक अक्टूबर से अनिवार्य किया जाएगा।इससे निश्चित रूप से मस्टररोल में की जाने वाले गड़बडिय़ां रोकी जा सकेगी।
-तन्मय कुमार, आयुक्त, महानरेगा

मस्टररोल के माध्यम से नरेगा में गड़बड़ी की बढ़ती शिकायतों को देखते हुए पिछले साल सितम्बर में चूरू ने सुजानगढ़ ब्लॉक में राज्य में पहला ई-मस्टररोल जारी किया था। बाद में इसका सॉफ्टवेयर जोधपुर को भी उपलब्ध करवाया गया। अब यह व्यवस्था प्रदेशभर में लागू होने जा रही है।
-डा.केके पाठक, जिला कलक्टर, चूरू

Tuesday, June 15, 2010

पढाई होगी रूचिकर

चूरू । कला संकाय में इतिहास हो या विज्ञान में शरीर की संरचना या फिर वाणिज्य में वर्षो पुरानी लेखा पद्धतियां। सरकारी विद्यालयों में विद्यार्थी इन सबके बारे में किताबों में पढने के साथ कम्प्यूटर पर इनसे संबंघित फोटो, विजुअल, डायग्राम व ग्राफ आदि भी देख सकेंगे।शिक्षा निदेशालय ने माध्यमिक स्तर के हजारों विद्यालयों में नए सत्र की पढाई के साथ इस नई व्यवस्था को शुरू करने की तैयारी कर ली है।
राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत नई व्यवस्था के प्रस्तावों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। प्रस्तावों को केन्द्र सरकार की मंजूरी मिलने के बाद विद्यालयों में नई व्यवस्था से संबंघित सामग्री खरीदी जाएगी। इसमें विभिन्न विषयों से संबंघित सीडी शामिल हैं।
शुरूआत साढे चार हजार स्कूलों से
नई व्यवस्था की शुरूआत प्रदेश के उन साढे चार हजार माध्यमिक विद्यालयों से होगी, जिनमें कम्प्यूटर की सुविधा उपलब्ध है। प्रदेश में फिलहाल ढाई हजार सरकारी विद्यालय कम्प्यूटर शिक्षा से जुडे हुए हैं। आगामी दो-ढाई माह में आईसीटी प्रोजेक्ट के जरिए दो हजार विद्यालयों को कम्प्यूटर शिक्षा से और जोडा जाएगा।
अपने स्तर पर खरीदेंगे सामग्री
निदेशालय की ओर से संबंघित विद्यालयों को नई व्यवस्था में शामिल किए गए विषय की सूची उपलब्ध करवाई जाएगी। विद्यालय प्रबंधन को अपने स्तर पर कम्प्यूटर से पढाई की सामग्री खरीदनी होगी। इसमें पत्र-पत्रिकाओं के लिए उपलब्ध करवाए जाने वाला बजट काम में लिया जा सकेगा।
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साढे चार हजार सरकारी विद्यालयों में तीनों संकायों में पढाई की नई व्यवस्था लागू करने की तैयारियां शुरू कर दी है। नए सत्र से इसकी शुरूआत की उम्मीद है। इससे विद्यार्थी संबंघित विषय को रूचि लेकर समझ सकेंगे। साथ ही कम्प्यूटर का भी ज्ञान हो जाएगा।
-भास्कर ए सावंत, निदेशक, माध्यमिक शिक्षा, बीकानेर

Monday, June 14, 2010

लिंग्वा लैब सिखाएगी अंगे्रजी

शिक्षा संभाग मुख्यालयों पर होगी सुविधा
निदेशालय ने बनाया प्रस्ताव

चूरू।
नए शिक्षा सत्र में सरकारी विद्यालयों के बच्चे फर्राटेदार अंग्रेजी बोल सकेंगे। इसके लिए बच्चों को अलग से इंग्लिश स्पीकिंग का कोर्स करने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। यह सब लिंग्वा लैब से संभव होगा। शिक्षा निदेशालय ने शिक्षा संभाग मुख्यालय पर एक-एक लिंग्वा लैब खोलने की तैयारी शुरू कर दी है। राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के अन्तर्गत खुलने वाली लिंग्वा लैबों के प्रस्तावों को अंतिम रूप दे दिया गया है। तीस जून से पूर्व समस्त प्रस्ताव स्वीकृति के लिए केन्द्र सरकार को भिजवाए जाएंगे। सब कुछ ठीक रहा तो नए शिक्षा सत्र में सभी लिंग्वा लैब शुरू हो जाएंगी। प्रत्येक लैब में एक साथ कम से कम तीस विद्यार्थियों को प्रशिक्षण दिया जा सकेगा।
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राज्य में सात लैब
शिक्षा संभाग मुख्यालय चूरू, जयपुर, जोधपुर, भरतपुर, कोटा, उदयपुर व अजमेर पर स्थित माध्यमिक विद्यालय में लिंग्वा लैब खोली जाएंगी। प्रस्ताव को मंजूरी मिलते ही विद्यालय का चयन किया जाएगा। लैब में संबंधित विद्यालय समेत आस-पास के कई सरकारी विद्यालयों के बच्चे अंगे्रजी बोलने का प्रशिक्षण प्राप्त कर सकेंंगे।
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ऐसे सही होगा उच्चारण
लैब में जरूरत के हिसाब से विभिन्न विशेष मशीनें उपलब्ध करवाई जाएगी। जिनमें रिकॉर्डर की भी सुविधा होगी। विद्यार्थी मशीन के सामने बैठकर अंग्रेजी में बोले गए शब्दों व वाक्यों को हैडफोन के जरिए फिर से सुन सकेंगे। साथ ही मशीन अंग्रेजी में बात भी करेगी, जिससे विद्यार्थी अपना उच्चारण सुधार सकेंगे।
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इनका कहना...
शिक्षा में नवाचारों के तहत लिंग्वा लैब खोलने की योजना तैयार कर ली है। लैब के प्रस्ताव इसी माह केन्द्र सरकार को भेजे जाएंगे। नए शिक्षा सत्र से लैबों की शुरुआत की उम्मीद है। योजना सफल रही तो अन्य विद्यालयों में भी इसे लागू करने पर विचार करेंगे।

-भास्कर ए सावंत, निदेशक, माध्यमिक शिक्षा, बीकानेर

Sunday, June 6, 2010

वन्य जीवों को भाए धोरे

वन्यजीव गणना-2010 : आंकड़ा दस हजार के पार
विश्वनाथ सैनी @ चूरू। थळी की आबो-हवा वन प्राणियों को खासी रास आ रही है। यही कारण है कि धोरों में वन्यजीवों का कुनबा बढ़ गया है। जिले के वन क्षेत्र में वन प्राणियों का आंकड़ा दस हजार पार हो चुका है।
इस की वन्यजीव गणना में गत वर्ष की तुलना में 900 से अधिक नए वन्यजीव सामने आए हैं। जंगली बिल्ली के अलावा किसी भी वन प्राणी की संख्या में कमी नहीं आई है। सबसे अधिक इजाफा साण्डा की संख्या में हुआ है।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार जिले के कुल 71 सौ हैक्टेयर वन क्षेत्र में दस हजार 336 वन्यजीव विचरण कर रहे हैं। इनमें 934 वन्यजीव इस बार बढ़े हैं। इस साल 28 व 29 अप्रेल को जिले में वन्यजीवों को गिना गया था।
वन क्षेत्र में जलस्रोतों व वन्यजीवों के आने-जाने के मुख्य रास्तों पर वनकर्मियों ने चौबीसों घंटे नजर रख गणना की थी। वन्यजीव गणना की रिपोर्ट को विभाग ने हाल ही अंतिम रूप दिया है।
अभयारण्य में आधे से ज्यादा
जिले के कुल वन क्षेत्र के करीब दस फीसदी हिस्से में फैले विश्व प्रसिद्ध कृष्ण मृग तालछापर अभयारण्य में आधे से ज्यादा वन्य जीवों ने डेरा डाल रखा है। वन अधिकारियों की मानें तो अभयारण्य व उसके आस-पास के क्षेत्र में छह हजार 329 विचरण करते देखे गए हैं। अभ्यारण्य में इस बार कृष्ण मृगों की संख्या 1910 से बढ़कर 2025 हो गई है। कृष्ण मृगों की संख्या और भी बढ़ सकती थी, लेकिन गत वर्ष मई के अंतिम सप्ताह में बारिश व तेज तूफान के कारण छह दर्जन से अधिक कृष्ण मृग अकाल मौत का शिकार हो गए।
बढऩे के कारण
वन अधिकारी जिले में वन्यजीवों की संख्या बढऩे को अच्छा संकेत मान रहे हैं। अधिकारियों की मानें तो वन क्षेत्र में सघन पौधरोपण, जन जागरुकता एवं वनकर्मियों की सतर्कता से वनजीव खुद को पहले से अधिक सुरक्षित महसूस करने लगे हैं। इस बार ईको रिस्टोरेशन के तहत भी वन क्षेत्रों में वन्यजीवों के लिए विशेष कार्य करवाए जाने की कवायद की जा रही है।
आंकड़ों की जुबानी
वन्यजीव---------2009--------- बढ़े
काले हरिण-------1910---------115
मरु लोमड़ी-------116-----------०8
चिंकारा-----------2663---------42
नीलगाय---------976------------60
मरु बिल्ली------०4--------------15
गिद्ध-------------42-------------०6
चील/बाज----------71--------- 70
साण्डा---------3489---------620
जंगली बिल्ली131----------- ०2 (घटे)
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वन्यजीवों की संख्या बढऩा अच्छा संकेत है। विभाग भी यही प्रयास करता है कि वन्यजीवों को जिले में अनुकूल वातावरण मिले। इस बार ईको रिस्टोरेशन के तहत भी वन क्षेत्र में वन्यजीवों को पानी उपलब्ध करवाने समेत कई काम करवाए जाने प्रस्तावित हैं।
-केसी शर्मा, डीएफओ, चूरू

Wednesday, June 2, 2010

सशक्तीकरण खुद से शुरू

राजस्थान के चूरू में पैदा हुई मंजु राजपाल अभी भीलवाडा जिले की कलेक्टर हैं। अपने बेहतरीन काम के बलबूते बेस्ट कलेक्टर का अवार्ड पाने वाली मंजु से खास बातचीत।

क्या बचपन से ही आईएएस बनने का ख्वाब था
मैं पढाई में बचपन से होनहार थी। तभी प्रशासनिक सेवा में जाना तय कर लिया था। पोस्ट गे्रजुएट (अर्थशास्त्र) में गोल्ड मैडल हासिल किया। इसके बाद कभी किसी दूसरे क्षेत्र के बारे में सोचा तक नहीं। मैंने ठान लिया था कि प्रशासनिक सेवा में जाकर रहूंगी। पहली बार आरएएस बनी। फिर आईआरएस और उसके बाद छठी रैंक हासिल करके आईएएस बनने का ख्वाब पूरा हुआ।

सपनों को पूरा करने में परिवार की मदद।
परिवार का सपोर्ट नहीं मिलता तो शायद यहां नहीं होती। हमारे परिवार में लडके इतना नहीं पढ पाए, लेकिन हम लडकियों ने पढकर आगे बढना चाहा तो सबने हौसला बढाया। मैंने सिविल परीक्षा की तैयारी चूरू जैसे छोटे शहर में रहकर की। यह सब परिवार की सोच और सहयोग से ही मुमकिन हुआ।

प्रशासनिक जिम्मेदारी निभाने के दौरान कोई मुश्किल क्षण।
डूंगरपुर में कलेक्टर रहते हुए (2006 में) मैंने जिन चुनौतियों सामना किया, वो आज भी स्मृतियों में है। पूरा इलाका बाढ के पानी से घिर गया था। चारों ओर हाहाकार मच गया। लोग डूब रहे थे। उन्हें बचाने वाला कोई नहीं था। उच्च अघिकारियों से हमारा संपर्क टूट चुका था। उस दौरान बाढ पीडितों को चिकित्सा और राशन सुविधा मुहैया करवाने के साथ-साथ उन्हें यकीन दिलाना जरूरी था कि प्रशासन उनके साथ है। हमने रातों-रात सारी व्यवस्था दुरूस्त की। पीडितों तक समय पर भोजन सामग्री पहुुंचाई और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर भेजा।

फील्ड में ज्यादातर लोगों की क्या मांगें रहती हैं
लोगों की मांगें क्षेत्र विशेष निर्भर पर करती हैं। भीलवाडा में रोजगार की कोई कमी नहीं है, मगर यहां लोग पानी को लेकर सबसे अघिक परेशान रहते हैं। डूंगरपुर में सबसे बडी समस्या रोजगार की थी। सीकर में लोग शिक्षित हैं। वहां लोगों में प्रशासनिक सिस्टम को लेकर अच्छी समझ है। यही कारण है कि सीकर जिले में लोग कोई विशेष्ा मांग करने की बजाय सिस्टम में बदलाव चाहते हैं।

प्रशासनिक काम के बीच जनप्रतिनिघियों के बेवजह दखल के बारे में राय।
इस मामले में अब तक भाग्यशाली हूं। कहीं भी इस तरह की समस्या का सामना नहीं करना पडा। मेरा मानना है कि जनता की पहली पहुंच जनप्रतिनिघि हंै। जनता की समस्या प्रशासन के पास चाहे सीधी आए या जनप्रतिनिघि के माध्यम से, प्रशासन को इसे अपने काम में दखलअंदाजी नहीं मानना चाहिए। वैसे भी प्रशासन का लक्ष्य जनता की समस्याओं का समाधान करना है। इस बीच जनप्रतिनिघियों का सुझाव और मार्गदर्शन मिले तो बेहतर होगा।

जीवन की सबसे बडी खुशी।
करीब चार साल पहले डूंगरपुर में एक साथ दो से ढाई लाख लोगों को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के माध्यम से रोजगार दिलाया तो बडी खुशी हुई। दरअसल डूंगरपुर ट्राइबल एरिया है। वहां रोजगार काफी कम था। लोग पलायन करने को मजबूर थे, लेकिन अघिक पढे-लिखे नहीं होने के कारण दूसरों शहरों में भी अच्छा रोजगार नहीं मिल पा रहा था। मुझे खुशी इस बात की है कि डूंगरपुर में नरेगा की शुरूआत मेरे समय में हुई।

महिलाओं से क्या कहना चाहेंगी
महिलाओं को तय करना चाहिए कि जिन कठिन परिस्थितियों से उन्हें गुजरना पडा है, उस स्थिति से उनकी बेटी को न गुजरना पडे। इसका एकमात्र रास्ता शिक्षा है। शिक्षा से ही महिलाएं आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बन सकती हैं। वैसे भी सशक्तीकरण खुद से आता है। बाल विवाह और अशिक्षा महिलाओं के लिए सबसे बडी चुनौतियां हैं।

Saturday, May 29, 2010

'गजलर' बुझाएंगे प्यास

पांच स्थानों का चयन, सालभर मिल सकेगा पानी
विश्वनाथ सैनी @ चूरू।
वन्यजीवों को भीषण गर्मी में प्यास बुझाने के लिए अब जंगल में ज्यादा नहीं भटकना पड़ेगा। वन विभाग ने वन्यजीवों के पानी के लिए होने वाले पलायन को रोकने तथा वन सम्पदा को संरक्षित और संवद्धित बनाने के लिए महती योजना बनाई है।
जयपुर के डेली न्यूज़ में छपी खबर

इसके तहत वन क्षेत्रों में पानी के ऐसे कुण्ड विकसित किए जाएंगे जहां बरसात का पानी एकत्र कर वन्य जीवों को सालभर पानी उपलब्ध कराया जा सकेगा। विशेष तौर पर बनने वाले कुण्डों को गजलर कहा जाएगा।
शुरुआती चरण में तालछापर कृष्णमृग अभयारण्य समेत वन क्षेत्र में पांच स्थानों का गजलर के लिए चयन किया गया है। योजना सफल रही तो इनकी संख्या बढ़ाई जाएगी। समस्त गजलर राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के माध्यम से विभाग की ईको रिस्टोरेशन योजना के तहत बनेंगे। विभाग ने गजलर के प्रस्ताव हाल ही मुख्यालय को भिजवाए

हैं।

चालू वित्तीय वर्ष में इनका निर्माण कार्य शुरू होने की उम्मीद है।
वन क्षेत्र में वन्यजीवों के लिए वर्तमान में बने जलस्रोतों की तुलना में गजलर में 35 से 40 हजार लीटर से अधिक पानी संग्रहित किया जा सकेगा। बारिश के पानी से एक बार गजलर भर जाने पर सालभर तक पानी की कमी नहीं रहेगी। बारिश नहीं हुई तो टैंकर के जरिए गजलर को भरा जा सकेगा।

बूंद-बूंद आ सकेगी काम
गजलर का डिजाइन इस तरह तैयार किया गया है, जिससे बारिश के पानी की बूंद-बूंद वन्यजीवों के काम आ सकेगी। बारिश का पानी सबसे पहले चालीस हजार लीटर क्षमता के एक कुण्ड में जमा होगा। कुण्ड ऊपर से बंद होगा, लेकिन उसके पास बनने वाले विशेष घाट में कुण्ड का पानी पहुंचेगा, घाट पर पानी की उपलब्धता कुण्ड में भरे पानी के दबाव के अनुपात में कम-ज्यादा होती रहेगी। इससे पानी की छीजत नहीं होगी।जहां वन्यजीव हलक तर कर सकेंगे।

चयन का रखा खास आधार
वन विभाग ने गजलर निर्माण के चयन का खास आधार रखा है। गजलर उन स्थानों पर बनाया जाएगा जहां वर्तमान में वन सम्पदा की स्थिति खराब है। पेड़-पौध, झाड़, खरपतवार, घास आदि विकसित नहीं हो पा रही है। साथ ही वहां पानी के अभाव में वन्यजीवों को विचरण नहीं हो पाता है। गजलर के निर्माण से वन्यजीव पानी पीने तो वहां पहुंचेंगे ही साथ ही पानी होने पर आस-पास के क्षेत्र में बीजारोपण के माध्यम से पौध, घास आदि विकसित कर क्षेत्र को हराभरा किया जा सकेगा।

कटाई व चराई पर प्रतिबंध
नए सिरे से विकसित किए गए क्षेत्र में पौधों व पेड़ों की कटाई व चराई पर प्रतिबन्ध रहेगा। इनक्षेत्रों को तारबंदी कर सुरक्षित किया जाएगा। ग्रामीण इलाकों से लगते क्षेत्र में पक्की दीवार का निर्माण कराया जाएगा।

चयनित वन क्षेत्र
-लीलकी बीड़
-सांखू बीड़
-तालछापर कृष्णमृग अभयारण्य
-तारानगर बीड़
-ढाणी लालसिंह पुरा बीड़

जिले में वन्यजीव
काले हरिण -2025
चिंकारा -2705
नीलगाय -1036
जंगली बिल्ली -129
मरु लोमड़ी -124
गिद्ध -48
चील/बाज -141
साण्डा -4109

इनका कहना है...
महानरेगा के माध्यम से ईको रिस्टोरेशन योजना के तहत गजलर निर्माण के प्रस्ताव मुख्यालय को भेजे हैं। प्रस्ताव को मंजूरी मिलते ही निर्माण कार्य शुरू करवा देंगे। जिले में गजलरों की शुरुआत पांच स्थानों से होगी।
-केसी शर्मा, डीएफओ, चूरू