Friday, May 22, 2009

घटता रकबा, बढ़ती हिम्मत
चूरू, 22 मई। पशुओं के चरने के लिए छोड़ी गई भूमि में भूमाफिया चर रहे हैं। कई गांवों में गोचर का रकबा ही गायब हो गया है। वर्ष 2005-06 में जिले में 37 हजार 905 हेक्टेयर गोचर भूमि थी जिसमें से 82 हेक्टेयर भूमि अतिक्रमणकारियों के पेट में समा गई। इसी के चलते जिले में गोचर भूमि का रकबा 37 हजार 823 हेक्टेयर रह गया। कई तहसीलों में गोचर भूमि का नामोनिशान तक मिट गया है। गोचर भूमि उदरस्थ करने में वन विभाग भी पीछे नहीं है। विभाग को चारागाह विकास के लिए ग्राम पंचायतें पांच वर्ष की अवधि के लिए गोचर भूमि आवंंटित करती है। चारागाह का सम्पूर्ण विकास हो जाने के बाद भी वन विभाग आवंटित भूमि को लौटाता नहीं है। तारानगर की करीब 75 बीघा ऐसी ही भूमि पर वन विभाग कुंडली मारे बैठा है। यह भूमि पांच वर्ष पूर्व वन विभाग को आवंटित की गई थी।जिला कलेक्टर अर्जुन मेघवाल का कहना है कि जिले में वर्षों से गोचर भूमि पर बसे लोगों के कब्जों को नियमित कर दिया गया है। इससे गोचर की भूमि का रकबा कम हो गया है।
कागजों में हटते हैं अतिक्रमण
गोचर भूमि पर अतिक्रमण अपराध है। अतिक्रमणकारी पर जुर्माने के साथ तीन माह की सजा सुनाए जाने का भी प्रावधान भी है। सूत्रों के अनुसार केवल 12 फीसदी अतिक्रमणकारियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज होते हैं शेष से जुर्माना वसूलकर मामला रफा-दफा कर दिया जाता है। अधिकांश मामलों में मौके पर अतिक्रमण रहता है जबकि कागजों में उसे हटाया हुआ दिखा दिया जाता है।
क्या है गोचर भूमि
गोचर भूमि के संबंध में अक्सर लोगों में भ्रांति है कि गायों के चरने के लिए छोड़ी गई भूमि को गोचर भूमि कहते हैं। हकीकत में गोचर भूमि से तात्पर्य ऐसी भूमि से है जिसमें गांव के सभी पशुओं को चरने की आजादी होती है। राज्य के कई इलाकों में इसे ओरण भी कहा जाता है। गोचर भूमि और ओरण राज्य में पशुपालन की रीढ़ माना जाता रहा है।
गंभीर है समस्या
गोचर भूमि पर अतिक्रमण की समस्या गंभीर रूप ले चुकी है। अतिक्रमण के मामले साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं। गोचर भूमि बचाने के लिए सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। गत 12 माह में तहसील में 129 बीघा 12 बिस्वा से अतिक्रमण हटाए गए हैं।
-बागदान, तहसीलदार, तारानगर
नहीं हुई सजा
गोचर पर अतिक्रमण गंभीर समस्या है। हर साल गोचर से अतिक्रमण हटाए जाते हैं। अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती है। मेरे कार्यकाल में एक भी अतिक्रमणकारी को सजा नहीं हुई।
-रूलीराम, तहसीलदार, चूरू
जल्द लौटाएंगेविभिन्न योजनाओं के तहत गोचर भूमि ली गई है। इन भूमियों पर वृक्षारोपण भी किया गया है। तारानगर में 75 बीघा भूमि लौटाने के लिए तहसीलदार को पत्र लिखा है।
-मनफूल सिंह, सहायक वन संरक्षक, चूरू
----विश्वनाथ सैनी

Thursday, May 21, 2009

धोरों में पला, एवरेस्ट पर चला

चूरू, 21 मई। चाहे बर्फीली हवा हो या तूफान, खून जमा देने वाली सर्दी हो या ऑक्सीजन की कमी। हिमालय की वादियों की ये तमाम बाधाएं चूरू के सपूत गौरव शर्मा को माउण्ट एवरेस्ट फतह करने से नहीं रोक पाईं। जोश, जुनून और उत्साह से लबरेज गौरव ने दो महीने के अदम्य साहस के बाद आखिर 20 मई को इतिहास रच ही दिया। आइए आपकों भी रू-ब-रू करवाते हैं गौरव के बढ़ते कदमों से....
- 15 मार्च 09- चूरू से माउण्ट एवरेस्ट के लिए रवाना।- 18 मार्च 09- नेपाल की राजधानी काण्डमांडू
- 16 अप्रेल 09- बर्फीली रात में दो बजे खुम्बू ग्लेशियर पार कर प्रथम कैम्प में रखा कदम।
- 21 अप्रेल 09- इक्कीस हजार फीट ऊंचाई पर स्थित द्वितीय कैम्प पर रात दो बजे से चढ़ाई शुरू
- 28 अप्रेल 09- द्वितीय कैम्प में पांच दिन ठहरने के बाद वापस प्रथम कैम्प और 24 हजार फीट ऊंचाई पर स्थित तीसरे कैम्प की ओर बढ़ा।
- 11 मई 09- तीसरे कैम्प पर सफलतापूर्वक रखा कदम। 17 हजार 500 फीट ऊंचे बेस कैम्प पर चढ़ाई के लिए किया मौसम साफ होने का इंतजार।
- 17 मई 09- माउण्ट एवरेस्ट फतह करने से चंद कदम दूर। सुबह चार बजे बेस कैम्प से रवाना।
- 20 मई 09- सूर्योदय से पहले गौरव ने रचा इतिहास। सुबह साढ़े छह बजे धोरों के लाल के कदमों ने चूमीं एवेरेस्ट की चोटी।