Sunday, January 30, 2011

हर दूसरा शिक्षक लापरवाह

[शिक्षा अधिकारी भी गंभीर नहीं]
शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के कार्यक्रमों के प्रति बेरुखी
चूरू। शिक्षक संघों के सम्मेलन, आंदोलन व धरना-प्रदर्शन हो तो शिक्षकों की फौज खड़ी नजर आती है, परन्तु शिक्षा में नवाचार, आधुनिक तकनीक और अध्यापन में दक्षता बढ़ाने की बात आए तो शिक्षक पीठ दिखाने से नहीं चूकते। राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान उदयपुर की ओर से जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) में चलाए जा रहे कार्यक्रमों से इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है।
पिछले ढाई साल में चूरू जिले के पचास फीसदी शिक्षक इन कार्यक्रमों को गंभीरता से नहीं लिया है। कार्यक्रमों के प्रति केवल शिक्षक ही नहीं बल्कि शिक्षा अधिकारी और खुद डाइट प्रबंधन भी लापरवाह है। शिक्षा अधिकारी कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में उपस्थित नहीं हुए जबकि डाइट प्रबंधन ने अनेक कार्यक्रम आयोजित ही नहीं किए। डाइट कार्यालय से सूचना के अधिकार के तहत सूचना मांगने पर यह खुलासा हुआ है।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार एक अप्रेल 2008 से 30 नवम्बर 2010 के दौरान प्रशिक्षण, कार्यगोष्ठी एवं प्रसार के 474 कार्यक्रमों में 12 हजार 128 शिक्षकों, बीईईओ व एबीईईओ को बुलाया गया, लेकिन 6 हजार 75 ने ही उपस्थिति दर्ज करवाई। उधर, डाइट प्रबंधन में ढाई साल में प्रस्तावित 555 कार्यक्रमों में से 81 कार्यक्रम आयोजित नहीं किए।

क्या हैं कार्यक्रम
डाइट में प्रतिवर्ष समय-समय पर प्रशिक्षण, कार्यगोष्ठी एवं प्रसार कार्यक्रम के माध्यम से शिक्षकों तथा शिक्षा अधिकारियों को कार्यानुभव, मूल्यांकन, पाठ्य पुस्तकों की समीक्षा, क्षेत्रीय सम्पे्रषण, अध्यापन दक्षता, योजनाएं बनाने, स्कूल प्रबंधन, इनोवेटिव नॉलेज और शिक्षा की आधुनिक तकनीक की विस्तृत जानकारी एवं प्रशिक्षण दिया जाता है। जिसका लाभ अप्रत्यक्ष रूप से बच्चों को होता है। कार्यक्रम के लिए लाखों रुपए भी खर्च किए जाते हैं। जिनमें संभागियों को आने-जाने का किराया भी देय है।

एक हजार से अधिक अधिकारी लापरवाह
ब्लॉक प्रारम्भिक शिक्षा अधिकारी तथा अतिरिक्त ब्लॉक प्रारम्भिक शिक्षा अधिकारियों को उनके ब्लॉक के विद्यालयों से जुड़ीं तमाम योजनाएं बनाने एवं विद्यालयों के बेहतर संचालन के लिए विभिन्न कार्यक्रमों से लाभान्वित किया जाता है। इसके लिए एक अप्रेल 2008 से तीस नवम्बर 2010 के दौरान एक हजार 881 शिक्षा अधिकारियों को डाइट बुलाया गया परन्तु एक हजार 32 शिक्षक आनाकानी कर गए।

आंकड़ों की जुबानी
कार्यक्रम ~~~~बुलाए~~~~आए
प्रशिक्षण ~~~~८५७६~~~~ ४१८५
कार्यगोष्ठी~~~~ 2478 ~~~~१३८२
प्रसार~~~~ १०७४~~~~ ५०८
कुल ~~~~१2128 ~~~~६०७५
(आंकड़े एक अपे्रल 09 से 30 नवम्बर 10 तक)

पूरा नहीं हुआ लक्ष्य
वर्ष~~~~ प्रस्तावित~~~~ आयोजित
2008-09 ~~~~२४४~~~~२३०
2009-10 ~~~~१९४ ~~~~१७३
2010 ~~~~११७ ~~~~७१
कुल ~~~~555~~~~ 474
(कार्यक्रमों में प्रशिक्षण, कार्यगोष्ठी व प्रसार शामिल)

इनका कहना है...
यह सही है कि अनेक शिक्षक डाइट में लगाए जा रहे कार्यक्रमों को गंभीरता से नहीं ले रह हैं। कार्यक्रम में प्रस्तावित संभागियों की सूची समस्त बीईईओ को भेजते हैं। कई बार तो बीईईओ शिक्षकों को कार्यक्रम में भाग लेने के लिए पाबंद नहीं करते जबकि कई शिक्षक खुद लापरवाह हैं। कार्यक्रम समाप्ति के बाद अनुपस्थित शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई के लिए डीईओ व बीईईओ को लिखा जाता है।
-महावीर सिंघल-डाइट, प्राचार्य, चूरू
--------
शिक्षकों को कार्यक्रम में भाग लेने के लिए केवल आने-जाने का किराया देय है। ठहरने का भत्ता नहीं दिया जाता। ऐसे में एकाध शिक्षक कार्यक्रम से नदारद रहता है। हजारों शिक्षकों के अनुपस्थित रहने के बारे में आपने बताया है। लापरवाह शिक्षकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेंगे।
-हीरालाल आर्य, जिला शिक्षा अधिकारी(प्रारम्भिक), चूरू

Thursday, January 6, 2011

'भूगोल' मे छिपी ठण्ड की 'केमिस्ट्री'

चूरू। सर्दियो में हाड कंपकंपा देने वाली ठण्ड और गर्मियों में भीषण गर्मी की विशेषता प्रदेशभर में एकमात्र चूरू जिले में देखने को मिलती है। यह कोई इत्तफाक नहीं है, बल्कि जिले की भौगोलिक परिस्थितियां इसकी जिम्मेदार है। पारा जमाव बिन्दू की ओर जाना, ठण्ड के तेवर तीखे होना और नश्तर चुभती सर्द हवाओं के चलने की सारी केमिस्ट्री जिले के भूगोल में छिपी है।
इसलिए शून्य से नीचे तक जाता है पारा
प्रदेश के बीकानेर, श्रीगंगानगर, जैसलमेर व बाडमेर आदि जिलों की तरह चूरू भी मैदानी है। ऎसे में यहां पर सूर्य से आने वाला विकिरण धरातल से परावर्तित होकर तेजी से वायुमण्डल में चला जाता है। वायुमण्डल में जल वाष्प की अघिक मौजूदगी परावर्तित विकिरण को रोक कर तापमान बढाने में सहायक होती है। लेकिन चूरू के वायुमण्डल में मौजूद वायु शुष्क होने के कारण परावर्तित विकिरण बिना किसी रूकावट के ऊपर चला जाता है, जिससे यहां अन्य जिलों की तुलना में पारा नीचे दर्ज होता है।
जल्दी ठण्डी होती मिट्टी
प्रदेश के मरूस्थलीय जिलों में चूरू सबसे पूर्व में स्थित है। इसलिए पश्चिम से आने वाली हवाओं के साथ बालू मिट्टी के बारिक कण भी यहां आकर जमा होते हैं। ये कण आपस में पूरी तरह से जुडे रहते हैं और सूर्य के ताप को ज्यादा गहराई तक जाने से रोकते हैं। ऎसे में धरातल का ऊपरी भाग जितना जल्दी गर्म होता है उतना ही जल्दी ठण्डा हो जाता है। जिले की मिट्टी की ऊष्मा ग्रहण करने की क्षमता अन्य जिलों की तुलना में कम होेने के कारण ठण्ड के तेवर अघिक तीखे रहते हैं।
जम्मू से आती शीतलहर
चूरू की स्थिति देशान्तरीय रूप में जम्मू कश्मीर के भागों से दक्षिण में स्थित है। उत्तरी भारत के बर्फबारी वाले क्षेत्रों से चलने वाली शीतलहर जिले में सीधी पहंुचती हैं। जो नश्तर चुभती हैं। हालांकि जम्मू-कश्मीर व चूरू के बीच प्रदेश के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ जिले भी स्थित हैं, लेकिन यहां पर नहरी पानी की उपलब्धता के कारण आद्रüता अघिक रहती है। जिससे तापमान अमूमन शून्य से नीचे नहीं जा पाता है। चूरू से पश्चिम में बीकानेर स्थित है, परन्तु वहां अघिक प्रदूष्ाण के चलते तापमान चूरू की अपेक्षा अघिक रहता है। उधर, उत्तरी हवाओं के रास्ते से बाडमेर व जैसलमेर की दूरी ज्यादा है। ऎसे में उत्तरी हवाओं से सबसे अघिक प्रभावित चूरू ही होता है।
भौगोलिक स्थिति जिम्मेदार
चूरू की भौगोलिक परिस्थितियां ही ठण्ड की जिम्मेदार है। यहां की वायु में अघिक शुष्कता व मिट्टी की ऊष्मा ग्रहण करने की क्षमता कम होने तथा उत्तरी भारत से आने वाली सर्द हवाएं सीधी पहुंचने की वजह से सर्दी अघिक पडती है। चूरू और इसके पडोसी जिलों की भौगोलिक स्थितियों में काफी अंतर है।-डॉ। रविन्द्र कुमार बुडानिया, व्याख्याता (भूगोल), लोहिया महाविद्यालय, चूरू
'केमिस्ट्री'