मां...बस तुम्हारा नाम लेने भर से रूह को सुकून मिल जाता है...तुम्हें दूर से भी देख लूं तो फिर दुनिया में कुछ देखने की हसरत नहीं रहती...तेरी परछाई में भी मैं अपना वजूद ढूंढ लेता हूं...तेरी धुंधली तस्वीर में भी मुझे अपना अक्श साफ नजर आता है...तेरे आंचल की ओट मिल जाए तो जेठ की तपती दुपहरी हो या पौष की सर्द रात बिना उफ किए गुजार दूं...तू रख दे अगर हाथ सिर पर तो फिर जमाने से मुझे कुछ नहीं चाहिए...मैं तो तेरा स्पर्श पाकर ही निहाल हो उठता हूं।
सच में मां तुम ऐसी थीं...ऐसी हों और खुदा के वास्ते ऐसी ही रहना...। बचपन से मुझे लगता आया है कि भले ही तुम्हारे चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाए...बाल झक सफेद हों जाए...पर तुम्हारा प्यार कभी कम नहीं होगा। मां में कई बार सोचता हूं कि जब मैंने बचपन में तुतलाती जुबान से पहली बार तुम्हें 'मां' कहकर पुकारा तो तू शायद हँसी होगी या फिर मेरी नकल की होगी...यह तो तू ही जानें...पर मैं दावे से कह सकता हूं कि तेरी हँसी में भी सुखद अहसास था...तेरी नकल ने मुझे कुछ और शब्द सीखने को प्रेरित किया होगा।
जब मैंने चलने के लिए पहली बार जमीन पर कदम बढ़ाया तो मेरे नन्हें हाथों ने तेरी अंगुली जरूर थामी होगी...मुझे पल भर के लिए भी गिरने नहीं दिया होगा...या कभी लडख़ड़ाकर गिर भी गया तो तुमने आंसू नहीं आने दिए होंगे...। तुम्हारे हाथों का स्पर्श ही मेरी चोट पर मरहम का काम कर गया होगा...।
मां मैं तुम्हारे लिए तो वहीं नन्हा बच्चा हूं...और रहूंगा, पर दुनिया की नजर में मैं 23 होली, दिवाली और बसंत देख चुका हूं...मुझसे लोगों की अपेक्षाएं बढ़ गई हैं...पढऩे वाला हर बंदा सोच रहा होगा कि आज एकाएक मुझे तुम्हारी याद कैसे आ गई...तेरे नाम पर मेरी कलम क्यों चल पड़ी...।
बता दूं कि मां मैं तुझे शब्दों में ढालना चाहता हूं...तेरी यादों को फिर से दिल के करीब लाने की चाहत है मेरी...मुझे तेरा प्यार भरा स्पर्श आज भी याद है...तेरे हाथ की रोटी का कसेला स्वाद तो मैं कैसे भूल जाऊं...तेरी डांट-फटकार में भी प्यार छिपा होता था...जिसे भूल जाना मेरे बस की बात नहीं...।
मेरे बचपन में ही पिताजी के गुजरने का गम तो मुझे ताउम्र सालता रहेगा पर तुमने कभी उनकी कमी महसूस नहीं होने दी...मां होते हुए तुमने मुझे पिता का भी प्यार दिया...। आज मैं जहां भी हूं...जिस हाल में भी हूं...सब का श्रेय लेने का हक है...तुम्हें। सच कहूं तो मां तुझमें रब दिखता है...।
ये जो विशू ने शब्दों की लड़ियों में मां के लिए अपनी भावनाओं को पिरोया है, वो एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है सबके लिए। कमाल लिखा है। हमेशा ऐसा क्यों नहीं लिखता भाई। जोर आता है क्या लिखने में। और भी ऐसा ही भावपूर्ण लिखता चल।
ReplyDelete- आशीष जैन
achcha likha hai dada. aapki khabar bhi maine dekhi thi mother's day par
ReplyDeleterealy niece story
lage raho progress aapka intejar kar rahi hai