Wednesday, March 17, 2010

तन्हाई के आलम में...

मैं और मेरी तन्हाई अक्सर मिलकर बातें किया करते हैं...
कि ये प्यार क्यों होता है
प्यार में ये दर्द क्यों होता है
उस दर्द में भी हल्का मजा क्यों होता है
कोई अपना नहीं फिर भी उसका इंतजार क्यों होता है
मैं और मेरी तन्हाई अक्सर मिलकर बातें किया करते हैं....

क्यों भीग जाती है ये पलकें किसी की याद में
क्यों उदास हो जाता है ये दिल किसी की याद में
क्यों बेचैन हो जाता है ये मन किसी की याद में
क्यों नहीं मिलता वो सुकून हमें, तड़प है जिसकी याद में
मैं और मेरी तन्हाई अक्सर मिलकर बातें किया करते हैं...

क्यों हमारी नजर को तलाश एक नजर की है
क्यों हमारी चाहत को तलाश एक चाहत की है
क्यों हमारे दिल को तलाश एक हमसफर की है
क्यों हमारे दिल को तलाश एक अनदेखे सहारे की है
मैं और मेरी तन्हाई अक्सर मिलकर बातें किया करते हैं...

क्यों हर सवाल का जवाब नहीं मिलता हमको
क्यों खुदा से मांगा हर ख्वाब नहीं मिलता हमको
यदि जवाब मिलता है हमें तो वो क्यों पसंद नहीं हमको
क्या यह सच है कि प्यार में ऐसा ही होता है
मैं और मेरी तन्हाई अक्सर मिलकर बातें करते हैं...
कि ये प्यार क्यों होता है
प्यार में ये दर्द क्या होता है
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यह कविता मेरे दोस्त गिरीश जांगिड़ ने मुझे अहमदाबाद से मेल की है। वह एमबीए की पढ़ाई कर रहा है। हम दोनों अपने गांव की एक ही स्कूल में पढ़ा करते थे। एक दिन उसने मेरे ब्लॉग पर 'मैं और मेरी तन्हाई' शीर्षक से प्रकाशित पोस्ट पढ़कर कहा कि यह सब बातें काल्पनिक हैं। इनका वास्तविक जीवन से कोई लेना-देना नहीं। मैंने कहा कि कभी कल्पना करके देखना वास्तविक जीवन की झलक उसमें साफ दिखाई देगी। मैंने उसे 'मैं और मेरी तन्हाई' विषय पर लिखने को कहा। दो दिन बाद उसकी कविता मेरे सामने थी।
दोस्तों, क्या आपकों नहीं लगता कि इस कविता में कहीं ना कहीं किसी ना किसी की वास्तविकता छुपी हुई है। किसी का दर्द इससे बयां हो रहा है। काफी हद तक यह युवा दिलों की कहानी लग रही है। हम में से पता नहीं कितनों की यह आपबीती हो सकती है। प्यार में तन्हाई ना हो, भला ऐसा भी कभी हो सकता है।
दोस्तों, बिन मांगे एक छोटी सी सलाह देना चाहूंगा कल्पना का कभी मन में गला मत घोट देना, क्योंकि खुदा हर किसी को कल्पनाशील नहीं बनाता। कभी अपने मन को टटोलना कल्पना खुद आपके सामने होगी। यदि ऐसा होता है तो उसे शब्दों के पंख लगाने में देर मत करना। ताकि उड़ सके वो नीले गगन में।
दोस्तों, शायद आप यकीं नहीं करोगे कि मैंने तन्हाई को अपना सबसे अच्छा दोस्त बना रखा है। जब मैं तन्हा हो जाता हूं तो वह हर बार पूरी शिद्दत से मेरा साथ देती है। तन्हाई एक दिन बता रही थी कि उसके किसी भी दोस्त को उससे शिकायत नहीं है और ना ही कोई गिला-शिकवा।
दोस्तों मेरी तन्हाई को मैंने शब्द कुछ यूं दिए....
यहां पर देखें

http://vishwanathnews.blogspot.com/2010/02/blog-post_3007.html
आपकी भी कोई कल्पना हो तो जरूर लिखना

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