Tuesday, April 20, 2010

अजब 13 की गजब कहानी

ग्राम से गदर तक रहा साथ

राशिफल और अंकों के फेर में पडऩा मुझे कतई पसंद नहीं। मेरे शब्दकोष में दोनों के कोई मायने नहीं हैं। खासकर पत्रकारिता जैसे चुनौतिपूर्ण क्षेत्र में कॅरियर बनाने की जद्दोजहद शुरू करने के बाद से मैंने अपने आप में यह बदलाव महसूस किया है। मेरा मानना है कि राशिफल और शुभ अंक हमें दिमागी तौर पर संतुष्ट या विचलित कर सकते हैं। इससे ज्यादा दोनों में कुछ नहीं रखा।
दोस्तों हाल ही मैंने ग्राम से 'ग्राम गदर' (पुरस्कार) तक कľ सफर तय किया तो महीने के तेरहवें दिन ने मुझे शुभ अंक के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया।
मुझे अब लगने लगा है कि मेरे कॅरियर और 13 तारीख का चोली-दामन का सा साथ हो गया है। यह सब एकाएक नहीं हुआ, बल्कि पिछले चार साल से ऐसा हो रहा है। यह जरूर है कि इसका अहसास मुझे हाल ही हुआ है। कॅरियर के हर छोटे-बड़े फैसलों में महीने का तेरहवां दिन अहम भूमिका निभा रहा है।
वर्ष 2006 में स्नातक पूरी करने के बाद पत्रकारिता को बतौर कॅरियर चुना तो जयपुर स्थित द माइंडपूल स्कूल ऑफ जर्नलिज्म में 13 जुलाई को दाखिल हुआ। उस वक्त जिंदगी में 13 के अंक ने पहली बार प्रवेश लिया और अब तक बखूबी साथ दे रहा है।
पत्रकारिता का छह माह तक किताबी ज्ञान लेने के बाद संस्थान ने मुझे राजस्थान पत्रिका के सीकर संस्करण में खबरनवीब बनने भेजा। यहां पर 13 फरवरी 2007 से प्रशिक्षण का आगाज हुआ। सीकर में एक माह भी नहीं बीता कि संस्थान ने राजस्थान पत्रिका के बंगलौर संस्करण में प्रशिक्षण लेने का फरमान सुना दिया।
सात मार्च 2007 को झुंझुनूं जिले की नवलगढ़ तहसील के गांव झाझड़ से बंगलौर के लिए रवाना हुआ। कुछ दिन पूना में चचेरे भाई के पास रुककर 12 मार्च को बंगलौर पहुंचा। बंगलौर के बारे में जैसा लोगों से सुना वो उससे भी अधिक सुन्दर था। पहले दिन किराए का मकान देखने तथा सफर की थकान मिटाने के कारण विधिवत रूप से 13 मार्च को बंगलौर संस्करण ज्वाइन कर सका।
बंगलौर में पत्रकारिता के काफी गुर सीखे। खुद को दक्षिण भारतीय संस्कृति में ढालने का प्रयास kइया. साथ ही कन्नड़ और अंग्रेजी भाषा पर भी पकड़ बनानी चाही। इन सब के बीच कब छह माह बीत गए पता ही नहीं चला। आखिर मैंने प्रशिक्षण पूरा होते ही बंगलौर छोड़ दिया। यह भी इत्तेफाक ही था कि जिस दिन बंगलौर से जयपुर के लिए रवाना हुआ, वह दिन अगस्त माह का तेहरवां दिन था।
इसके बाद अक्टूबर 07 में अगला पड़ाव फिर से सीकर संस्करण होते हुए राजस्थान पत्रिका के चूरू ब्यूरो कार्यालय में डाला। यहां जो कुछ सीखने को मिला, दूसरी जगह वह शायद ही मिलता। चूरू में रहकर न केवल मैंने ग्रामीण पत्रकारिता को करीब से जाना बल्कि विधानसभा, लोकसभा, निकाय और पंचायत चुनाव भी देखे। चुनावों में हर दृष्टिकोण से खबरें बनाईं। साथ ही ग्रामीण पत्रकारिता से भी जुड़ाव रहा।
समय का पहिया घूमा और 2010 में त्रकारिता के तीन साल पूरे कर लिए। इस साल अप्रेल में कट्स इंटरनेशनल की ओर से गांवों में जल संरक्षण एवं प्रबंधन विषय पर उत्कृष्ठ लेखन के कारण मुझे प्रतिष्ठित पुरस्कार ग्राम गदर के लिए चुन लिया गया। दोस्तों मेरे कॅरियर का सबसे खुशनसीब यह दिन 13 अप्रेल था। अब तो शायद आपको भी यकीन हो गया होगा मेरी अजब कहानी में 13 का अंक कुछ गजब ढा रहा है।

4 comments:

  1. भाई 13 की कहानी इधर सब समझे हैं, मनहूस नम्‍बर माना जावे यह अज्ञानियों में, खेर तुम्‍हें बता दूं इस पोस्‍ट का URL में भी 13 है
    http://vishwanathnews.blogspot.com/2010/04/13.html

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  2. ये एक संयोग मात्र भी हो सकता है..छोडिये!!!पुरूस्कार की पुनः बधाई..

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  3. पुरस्कार के लिए ढेरों बधाइयां और शुभकामनाएं...

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  4. चलो आप भी वाजपेयी जी की जमात में शामिल हुए।


    खैर----


    पुरस्‍कार के लिए ढेरों बधाई, शुभकामनाएं की और आगे बढ़ें।

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