Friday, February 26, 2010

तुमको ना भूल पाएंगे अलसीसर

शेखावाटी की हवेलियाँ और उन पर बनी चित्रकारी आपको राजस्थान के शाही अंदाज से रूबरू करवाती हैं।
मरूधरा के धोरों के बीच रचा बसा झुंझुनू जिले का अलसीसर अपनी ऐतिहासिक हवेलियों, कुए-बावडी, छतरिया, जोहड़, और मंदिरों की स्थापत्य कला के दम पर पर्यटन स्थल के रूप में उभर रहा है. सात संदर पार से पर्यटक यहाँ की कला और संस्कृति को निहारने के लिए आते हैं. जब पर्यटक यहाँ आकर ग्रामीण झोंपडियाँ, परम्परागत चारपाई, पत्थर की बैंचों पर बैठता है, तो उसको के रहन सहन का आनद मिलता है. भ्रमण कार्यक्रम में किसानों के पर्यटकों को दही बिलोना, दूध निकलना, रोटी बनाना, सूट काटना, दरी बुनाई, फसल कटाई, निराई व गुडाई दिखाई जाती है. विदेशी पर्यटक यहाँ के ग्रामीण में रच-बस जाते है. यही कारण हिया कि वे यहाँ के शादी- विवाह में बाकायदा शामिल होकर कन्यादान तक रस्म तक निभाते हैं. पर्यटक अलसीसर के रीति रिवाज, तीज त्योंहार, शादी, बाण-बिंदोरी व धार्मिक में दिल खोलकर शामिल होते हैं. इससे लोक संस्कृति को तो बढावा मिल ही रहा है साथ ही ग्रामीणों कि आजीविका का माध्यम भी बन रहे हैं. यहाँ पर ऐतिहासिक हवेलियों में बनी दो बड़ी होटलों समेत तीस से अधिक ऐसे हैं जो बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. यह बात दीगर है कि जिले के पर्यटन स्थल के रूप में अलसीसर कभी भी प्रसिद्ध नहीं हुआ है लकिन पर्यटकों का जमावडा इसे पर्यटन स्थल के रूप में इंगित करता है.विवाह समारोह में नाचते-गाते जागरण में भजनों पर थिरकते व तीज-त्योहारों का ग्रामीणों के साथ मिलकर लुफ्त उठाते पर्यटक अलसीसर कि गलियों में आसानी से देखे जा सकते हैं. गागा नवमी को बीहड़ में लगने वाले मेले मेले में भी पर्यटक अच्छी तादाद में आते हैं. दस फीसदी से अधिक पर्यटक यहाँ कि हवेलियों कि कलात्मक शैली के साथ-साथ विवाह समारोह व जागरण में शामिल होने को तवज्जो देते हैं. जागरण चाहे सत्यनारायण मंदिर में हो या किसी मोह्हले में पर्यटक पूरी तरह से शरीक होते हैं।
इसलिए आते है पर्यटक
खेतानोकि हवेली में मुनीम रह चुके हरिराम चौमाल के मुताबिक अलसीसर में लक्खाराम, मालीराम, फूलचंद खेतान, झाबरमल सेठ, तेजपाल सेठ, गणेश नारायण, पूनियां, इंदरसिंह व रामदेव झुंझुनू वालों कि हवेली, छतु सिंह कि छतरियां, लक्ष्मीनाथ और सत्यनारायण मंदिर, झाबरमल, सीताराम व रामाजसराया के कुए तथा मरोदियों का तलब आदि दर्शनीय स्थल है. इनमें झाबरमल और लखाराम जी की हवेलियाँ के कमरों की दीवारों पर की गयी चित्रकारी पर्यटकों को काफी लुभाती है. मीठिया कुवे पर बनीं छतरियों के शिलालेख और कुए के अन्दर साठ फीट तक कि गयी चित्रकारी को देख पर्यटक दांतों टेल ऊँगली दबा लेते हैं
पर्यटकों कि शादी
होटल के सामने से बारात गुजर रही हो तो पर्यटक बारात में शामिल होने से नहीं चूकते. पर्यटन स्थलों के साथ साथ पर्यटकों को यहाँ कि आबो हवा भी काफी लुभाती है. गत दो वर्षों में दो विदेशी जोड़े अलसीसर कि ज़मी पर राजस्थानी परंपरा से सात फेरे लेकार जीवनसाथी बन चुके हैं. बताया जाता है कि दोनों जोडों ने वेबसाइट पर अलसीसर की कलात्मक शैली को देख ग्रामीण रीति रिवाज़ से शादी करने की सोची।
आय का जरिया
कस्बे में आने वाले पर्यटक न केवल होटलों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रहे हैं बल्कि ग्रामीणों कि आय का जरिया भी बन चुके हैं. होटल इन्द्रविलास के मेनेजर के.सी. शर्मा बताते हैं कि पर्यटक यहाँ से मसाले, साहित्य, हेंडी क्राफ्ट उत्पाद, ग्रामीण कपडे, कैर, सांगरी व् मिटटी के बर्तन खरीदना अधिक पसंद करते हैं. पशुपालकों और वाहन मालिकों को भी अच्छी आय होती है।
जुडाव सहकारी बैंक का
अलसीसर में पर्यटन की अपार संभावनाओं को देखते हुए केंद्रीय सहकारी बैंक पर्यटकों से जुड़कर आय बढाने की कवायद शुरू कर चूका है. अलसीसर ग्राम सेवा सहकारी समिति कि और से यहाँ पर ग्रामीण और आधुनिक शैली को मिलाकर अष्टकोंनीय झोपडा बनाया गया है. झोपडे के अन्दर व सामने ग्रामीण परिवेश के सामान रखे गए हैं. पर्यटकों को इसमें आराम करने कि सुविधा दी जायेगी तथा कालबेलिया नृत्य व कठपुतलियों का खेल दिखाया जायेगा।
सर्वाधिक पर्यटक जर्मनी के
जिला मुख्यालय से पच्चीस किलोमीटर दूर स्थित यह क़स्बा सड़कों के माध्यम से प्रदेश के विभिन्न जिलों से जुड़ा हुआ है. यहाँ पर जयपुर, दिल्ली और बीकानेर होते हुए हर साल जर्मनी, फ्रांस, स्वीजरलैण्ड, इटली, स्पेन, इंग्लैंड और अमेरिका के हाजोरों पर्यटक आते हैं. हर दूसरे दिन 25 से 30 पर्यटकों का दल यहाँ पहुँच जाता है. अलसीसर आने वाले पर्यटक में अधिक संख्या जर्मनी के पर्यटकों कि होती है।
कैसे पंहुचे
जयपुर, चूरू और झुंझुनू से अलसीसर बस से आसानी से पहुंचा जा सकता है. चूरू से 40 किमी, झुंझुनू से 25 किमी, जयपुर से 210 किमी।
2008 में राजस्थान पत्रिका के परिवार परिशिष्ट में प्रकाशित लेख
प्रस्तुतकर्ता विश्वनाथ सैनी

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