Friday, October 2, 2009

पंचायतीराज का स्वर्णिम सफर

देश में में पंचायतीराज व्यवस्था ने पचास वर्ष का सफर तय कर लिया है। आज राजस्थान का नागौर जिला पंचायतीराज की स्थापना का साक्षी बन खुद को एक बार फिर से गौरवान्वित महसूस कर रहा है। पंचायतीराज का स्वर्ण जयंती समारोह नागौर के उस ऐतिहासिक मैदान में मनाया जा रहा है, जहां देश के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने दो अक्टूबर 1959 को पंचायतीराज की नींव रखी थी। समारोह में नेहरू की तरह दो बार प्रधानमंत्री बनने का गौरव हासिल करने वाले डा. मनमोहन सिंह व यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत राजनीति की कई जानी-मानी हस्तियां शिरकत करेंगी। स्वतंत्रता के बाद देश में कई बदलाव हुए। कई नई व्यवस्थाएं लागू हुई। आखिर पंचायतीराज व्यवस्था की जरूरत क्यों महसूस की गई और इसे किस तरह अंतिम रूप दिया गया। मन को कुरेदते इन सवालों का जवाब खोजा तो पाया कि आजादी के बाद देश के समग्र विकास में अधिकतम लोगों को सहभागी बनाने के लिए विकेन्द्रीकरण की नीति अपनाई गई। पंचायतीराज भी उसी दिशा में उठाया गया एक कदम था।जब देश में पंचवर्षीय योजना लागू करने पर विचार किया जा रहा था तब ग्रामीण क्षेत्र में जनता का सक्रिय सहयोग एवं सहभागिता सुनिश्चित करना आवश्यक समझा गया। इस आवश्यकता ने भी पंचायतीराज को आधार प्रदान किया।लोकतंत्र में अटूट विश्वास रखने वाले पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम शुरू किया। लेकिन इसमें ग्रामीण विकास की बजाय सरकारी मशीनरी के विकास पर अधिक जोर देने के कारण कार्यक्रम विफल हो गया। परिणाम स्वरूप सरकार ने 1957 में पंचायतीराज के संबंध में बलवंतराय मेहता समिति का गठन किया।समिति ने अपनी रिपोर्ट में लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण और सामुदायिक विकास कार्यक्रम को सफल बनाने का उल्लेख करते हुए पंचायतीराज की नींव रखने की सिफारिश की। नौ सितम्बर 1959 को राजस्थान विधानसभा ने राजस्थान पंचायत समिति एवं जिला परिषद बिल पारित कर विकेन्द्रीकृत व्यवस्था लागू की। इसके बाद दो अक्टूबर को राजस्थान को देश में लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की शुरुआत करने का गौरव प्राप्त हुआ।आंकड़ों की जुबानीवर्तमान में राजस्थान में सात संभाग, 33 जिले, 32 जिला परिषदें, 192 उपखण्ड, 243 तहसीलें, 237 पंचायत समितियां है। 237 पंचायत समितियों में से हाल ही छह पंचायत समितियों को फिर से ग्राम पंचायतों का दर्जा दे दिया गया है। लिहाजा ग्राम पंचायतों की संख्या 9195 हो गई हैं। पंचायतीराज के 2010 में होने वाले चुनावों से पूर्व चल रही परिसीमन की प्रक्रिया में ग्राम पंचायतों की संख्या 12 हजार के लगभग हो जाएगी।महिलाओं की भागीदारी कमचूरू जिले में पंचायतराज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी काफी कम है।हर स्तर पर पुरुषों का वर्चस्व है। जिला परिषद के कुल 26 सदस्योंं में महज आठ महिलाएं हैं। वर्तमान में जिले की छह पंचायत समितियों में प्रधान के पद पर मात्र दो महिलाएं काबिज हैं। जिले की 249 ग्राम पंचायतों में से भी अधिकांश की बागडोर पुरुषों के हाथ में है।सरपंच या कठपुतली?देश में पंचायतीराज की नींव रखे जाने के पचास वर्ष बाद भी कई महिला सरपंच पति की कठपुतली बनी हुई हैं। गत वर्ष अपे्रल में चूरू पंचायत समिति की एक सरपंच से रूबरू होने का मौका मिला। दोपहर में फोटोग्राफर के साथ सरपंच के घर पहुंचा। सरपंच के घर पर मौजूद एक रिश्तेदार से जब उनके बारे में पूछा तो जवाब मिला कि वे किसी काम से बाहर गए हैं। शाम तक आएंगे। रिश्तेदार से सरपंच के मोबाइल नम्बर लेकर बात की तो माजरा समझ में आया। दरअसल घर, रिश्तेदारी और गांव में महिला की बजाय उनके पति को सरपंच माना जाता है। बाद में पता चला कि असल सरपंच तो घर पर ही हैं।नए दौर में किया प्रवेश देश की लगभग तीन चौथाई आबादी गांवों में रहती है। गांवों के विकास पर ही काफी हद तक भारत का विकास निर्भर है। यहां महात्मा गांधी का कथन बिल्कुल सटीक बैठता है कि यदि गांव नष्ट होते हैं तो भारत नष्ट हो जाएगा। भारत के पिछले इतिहास पर यदि नजर डालें तो देखेंगे कि गांव के आपसी झगड़ों का निपटारा गांवों की पंचायतें करती थीं। पंचों का फैसला सर्वमान्य होता था। मोर्यकाल में गांव के चुने हुए लोगों की सभा, ग्रामसभा कहलाती थी। जिसका प्रधान ग्रामिक होता था। मुगलकाल में भी गांव, शासन की सबसे छोटी इकाई था। गांव का प्रधान अधिकारी वहां का मुखिया होता था, जिसे मुकद्दम कहते थे। अंग्रेजी राज में गांव की पंचायतें धीरे-धीरे समाप्त हो गईं। गांवों का समस्त कार्य प्रांतीय सरकारें करने लगीं। 18 8 2 में लॉर्ड रिपन ने स्थानीय शासन की स्थापना का प्रयास किया। लेकिन वह सफल नहीं हो सका।स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं की जांच के लिए 18 8 2 व 1907 में ब्रिटिश शासकों ने शाही आयोग का गठन किया। 1920 में संयुक्त प्रान्त, असम, बंगाल, बिहार, पंजाब व मद्रास में पंचायतों की स्थापना के लिए कानून बनाए गए। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में नया संविधान लागू होने के साथ ही पंचायतीराज अर्थात ग्रामीण स्थानीय शासन ने नए दौर में प्रवेश किया।
प्रस्तुतकर्ता विश्वनाथ सैनी
प्रतिक्रियाएँ:


1 टिप्पणियाँ:
चेतना के स्वर said...
achchi khabar likh dali hai dada congratsisko bhi padhna or thoda sa batanahttp://chetna-ujala.blogspot.com/2009/10/blog-post.html
October 27, 2009 3:13 PM

No comments:

Post a Comment